विवाद दो कारणों से है। पहला कारण तो है मुहूर्त का। शंकराचार्य, ज्योतिष और अन्य मंदिर निर्माण से जुड़े अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि भूमिपूजन का समय अशुभ है। वे कह रहे हैं कि भादों के महीने में किसी नये निर्माण के लिए भूमिपूजन नहीं होते। राममंदिर एक वैष्णव मंदिर है। राम को विष्णु का अवतार माना जाता है। अनेक वैष्णवार्चाय भी इस मंदिर के लिए भूमिपूजन के समय पर आपत्ति प्रकट कर रहे हैं। उनकी आपत्ति को दरकिनार किया जाना उचित नहीं है, क्योंकि आपत्ति करने वाले अनेक लोग तो ऐसे हैं जिनका राजनीति से कुछ लेना देना नहीं और उनमें से जिनका राजनीति से लेना देना है, उनमें से ज्यादा तो आरएसएस के हिन्दुत्व ब्रांड की राजनीति का समर्थन ही करने वाले हैं।
दूसरा कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र द्वारा भूमिपूजन कराए जाने से हैं। वे विरोध इस बात का कर रहे हैं कि श्री मोदी विवाहित होने के बावजूद अपनी पत्नी का परित्याग कर चुके हैं और विवाहित व्यक्ति यदि मंदिर के भूमिपूजन जैसा अनुष्ठान करता है, तो उसे अपनी पत्नी के साथ ही करना पड़ेगा, क्योंकि हिन्दू संस्कृति में पत्नी का अर्द्धांगिनी कहा जाता है। बिना स्त्री के विवाहित व्यक्ति को पूर्ण नहीं माना जाता। वैसे नरेन्द्र मोदी की पत्नी अभी जिंदा हैं और वे चाहें, तो अपनी पत्नी को बुलाकर इस अनुष्ठान का हिस्सा बना सकते हैं। लेकिन यह तो व्यक्ति से जुड़ा मसला है, पर भूमिपूजन के मूहुर्त के लिए चल रहा विवाद वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है।
अदालती आदेश से उस स्थल पर चल रहे हिन्दू मुस्लिम विवाद को हल कर लिया गया। इस विवाद को हल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कानून का कम, बल्कि अपनी संवैघानिक हैसियत का ज्यादा प्रयोग किया। भारतीय लोकतंत्र में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अंतिम है, उसे कोई पसंद करे या नहीं करे। सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला होता है, उसे मानना ही पड़ता है, भले आपको यह लगता है कि वह फैसला सही नहीं है। तो इस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने हिन्दू मुस्लिम विवाद को हल कर दिया। उसके बाद हिन्दू और बौद्ध विवाद खड़ा हुआ। बौद्ध भी उस विवाद को पिछले 30 साल से उठा रहे थे। उनका कहना था वहां बौद्ध विहार था। बुद्ध के समय में ही राजा प्रसेनजित के दरबार में बावरी नाम के एक विद्वान हुआ करते थे, जो बुद्ध से प्रभावित होकर बौद्ध भिक्षु बन गए थे। बावरी ने ही वहां एक विहार बनाया था, जिसका नाम उनके नाम पर बावरी विहार था और बावरी विहार के स्थल पर बनने के कारण उस स्थान पर बनी मस्जिद का नाम बावरी मस्जिद था, जो बाद में बाबरी मस्जिद कही जाने लगी और मुसलमानों ने भी उसका नाम बाबर से जोड़ना शुरू कर दिया।
बहरहाल, अयोध्या विवाद धार्मिक और कानूनी से ज्यादा एक राजनैतिक विवाद रहा है और हमारे देश की राजनीति में बौद्धों की कोई हैसियत नहीं है। यही कारण है कि उनके दावे को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया। न तो राजनीतिज्ञों ने उनके दावे को गंभीरता से लिया और न ही अदालत ने। लेकिन मंदिर निर्माण के लिए जब खुदाई होने लगी, तो बुद्ध की मूर्तियां निकलने लगीं। अशोक के लाट भी निकलने लगे और धम्मचक्र भी निकलने लगे। राममंदिर से जुड़ा शायद कुछ भी नहीं निकला। उसके बाद बौद्ध नई याचिका लेकर एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे, जहां उनको लताड़ मिली। इस तरह से सुप्रीम कोर्ट ने बौद्ध दावों को भी खारिज कर अपनी तरफ से मामले को पूरी तरह सुलटा दिया।
हालांकि अभी भी छिटपुट तौर पर बौद्ध राममंदिर के वहां निर्माण का विरोध कर रहे हैं, लेकिन यह मामला राजनैतिक है और राजनीति में उनकी कोई हैसियत नहीं है, इसलिए उस विरोध से कुछ होने जाने वाला भी नहीं है। पर भूमि पूजन के मूहुर्त पर छिड़ा विवाद आगे भी जारी रह सकता है। उसके जारी रहने का कारण भी धार्मिक कम, बल्कि राजनैतिक ही ज्यादा रहेगा।
यहां स्मरण दिलाना जरूरी है कि ऑपरेशन ब्लू स्टार के दौरान अकाल तख्त क्षतिग्रस्त हो गया था और उसे सरकार ने फिर से बना दिया था। पर उसके बाद सिखों ने सरकार द्वारा निर्मित अकाल तख्त का ध्वंस कर दिया था और फिर खुद उसे बना दिया था। राममंदिर के निर्माण शुरू होने के समय उसे याद इसलिए किया जाना चाहिए कि हिन्दुओं का एक वर्ग शायद इस मंदिर को स्वीकार करने से इनकार कर दे और देश की राजनैतिक परिस्थितियां पलटने पर मंदिर के फिर से निर्माण की बात करे।
अभी स्थिति हिन्दू बनाम हिन्दू विवाद की बनती जा रही है। महाराष्ट्र के एक हिन्दूवादी नेता भिड़े अपनी शर्ते डाल रहे हैं और कह रहे हैं कि यदि उनकी शर्त नहीं मानी जाती है तो उस मंदिर से उनका कोई मतलब नहीं रह जाएगा। उमा भारती भी अपना एक अलग कारण बताकर उस कार्यक्रम का बहिष्कार कर रही हैं। अब अनुमान लगाइए कि यदि भाजपा की सरकार चली जाए और कांग्रेस की सरकार आ जाए, तो शंकराचार्य स्वरूपानदं सरस्वती और अन्य हिन्दू धार्मिक नेता मंदिर के पुनर्निमाण की बात करें, तो फिर क्या होगा? मंदिर निर्माण के लिए पैसे की कमी भी नहीं होगी। हमेशा अरबों रुपया देने के लिए लोग तैयार रहेंगे। अब यदि अकाल तख्त से प्रेरणा लेकर इस सरकार द्वारा निर्मित मंदिर की जगह फिर से मंदिर के निर्माण के लिए तब आंदोलन चले तो क्या होगा?
जाहिर है, जिस तरह से घड़ी के शुभ और अशुभ का ख्याल किए बिना यह मंदिर बनाया जा रहा है, उसके कारण न केवल धार्मिक बल्कि राजनैतिक विवाद भी बने रहेंगे। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह अशुभ घड़ी की बात बहुत जोरशोर से उठा रहे हैं और कल उनकी पार्टी सत्ता में आ जाए, तो फिर उनसे हम क्या उम्मीद कर सकते हैं? जाहिर है, मुसलमानों और बौद्धां से विवाद जीतने के बावजूद मंदिर निर्माण करने वाले ट्रस्ट ने हिन्दू बनाम हिन्दू विवाद के लिए रास्ता बना दिया है। इससे बचा जाना चाहिए था। (संवाद)
अयोध्या भूमि पूजन के मूहुर्त का मामला
यह ‘हिन्दू बनाम हिन्दू’ के लंबे विवाद का कारण बन सकता है
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-08-04 10:15
अयोध्या में राममंदिर निर्माण के लिए हो रहे भूमिपूजन को लेकर जो विवाद हो रहा है, उसे टाला जाना चाहिए था। यह एक ऐसा विवाद है, जो मंदिर के निर्माण के दौरान ही नहीं, बल्कि उसके बाद भी लोगों के दिलोदिमाग को मथता रहेगा।