वे उन व्यक्तित्वों में से थे जिन्होंने अपने पिता की आज्ञा मानते हुए सत्ता का परित्याग किया था। जबकि इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जब पुत्रों ने सत्ता की खातिर अपने पिता, भाइयों और अन्य संबधियों की हत्या की थी। इसके ठीक विपरीत भगवान राम ने न सिर्फ गद्दी को त्याग दिया वरन् पिता की आज्ञा से सत्ता से बहुत-बहुत दूर रहने के लिए 14 वर्षों का वनवास भी स्वीकार किया।
परंतु यहां इस बात का उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि भाजपा के नेतृत्व के सोच के अनुसार सत्ता हथियाने के लिए साम, दाम, दंड भेद का उपयोग बिना झिझक के करना चाहिए। हमने लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई है जिसमें सत्ता प्राप्ति के लिए सिर्फ जनता की सहमति चाहिए और सहमति मिलने के बाद उसका सम्मान करना चाहिए। परंतु पिछले दिनों जो मध्यप्रदेश में हुआ और इस समय जो राजस्थान में हो रहा है वह भगवान राम के आदर्शों के ठीक विपरीत ळें
यदि भाजपा और संघ परिवार भगवान राम को अपना आदर्श और प्रेरणा स्रोत मानता है तो उसे मतदाताओं के निर्णय का सम्मान करना चाहिए और निर्वाचित सरकार को अस्थिर करने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
भगवान राम के चिंतन की एक और विशेषता थी- उन्हें घृणा और वैमनस्य की भावना छू तक नहीं गई थी।
कैकयी, जिन्होने उन्हें सत्ताच्युत करने में प्रमुख भूमिका निभाई, रावण, जिन्होंने उनकी पत्नी का अपहरण किया, मंथरा, जिन्होंने उनके विरूद्ध विषवमन किया और ऐसे कई अन्य पात्र और कुपात्र जिन्होंनें भगवान राम को असीमित क्षति पहुंचाई उनके प्रति भी उनके मन में तनिक भी मनोमालिन्य नहीं था। जब वे वनवास से वापिस आए तो उन्हांने सबसे पहले कैकयी के चरण छुए। हृदय की विशालता का इससे बड़ा उदाहरण नहीं हो सकता। शिलान्यास के अवसर पर दिए गए अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि राम मंदिर राष्ट्र को जोड़ने का उपक्रम है। यह उपक्रम उसी समय पूरा होगा जब प्रधानमंत्री यह घोषित करें कि ‘‘मैं स्वयं किसी से घृणा नहीं करूंगा और न ही किसी को करने दूंगा‘‘। वे यह घोषणा भी करें कि ‘‘मैं बदले की भावना से कोई कदम नहीं उठाऊंगा‘‘।
उन्होंने अपने भाषण में यह भी कहा कि ‘‘हमें सभी की भावनाओं का ध्यान रखना है। हमें सबके साथ से, सबके विश्वास से, सबका विकास करना है‘‘। आशा है वे अपने इस आश्वासन पर पूरी तरह से अमल करेंगे।
एक और अनुरोध। जितने राम भक्त हनुमान हैं उतने ही राम भक्त महात्मा गांधी थे। हमें राम के उस स्वरूप को मानना चाहिए जो बापू ने माना था। गांधी जी ने राम को उन समस्त मानव मूल्यों का प्रतीक माना था जिनके आधार पर मानव सभ्यता टिकी हुई है। महात्मा गांधी ने भगवान राम का उपयोग सर्व धर्म समभाव के संदेश के विस्तार के लिए किया था। गांधी जी ने कहा था ‘‘मेरा राम, हमारी प्रार्थना के समय का राम वह ऐतिहासिक राम नहीं है जो दशरथ का पुत्र और अयोध्या का राजा था। वह तो सनातन, अजन्मा, अद्वितीय राम है। मैं उसी की पूजा करता हूं। उसी की मदद चाहता हूं।‘‘
महान शायर डॉ अल्लामा इकबाल ने तो राम को इमाम-ए-हिन्द कहा था। उनकी नज्म यहां उद्धत कर रहा हूंः
इस देस में हुए हैं हजारों मलक-सरिश्त
मशहूर जिन के दम से है दुनिया में नाम-ए-हिंद
है राम के वजूद पे हिन्दोस्ताँ को नाज
अहल-ए-नजर समझते हैं इस को इमाम-ए-हिंद
एजाज इस चराग-ए-हिदायत का है यही
रौशन-तर-अज-सहर है जमाने में शाम-ए-हिंद
तलवार का धनी था शुजाअत में फर्द था
पाकीजगी में जोश-ए-मोहब्बत में फर्द था
(मलक- देवता, सरिश्त- ऊँचे आसन पर, एजाज- चमत्कार, चिरागे-हिदायत- ज्ञान का दीपक, तिराज सहर- भरपूर रोशनी वाला सवेरा, शुजाअत- वीरता, फर्द- एकमात्र, पाकीजगी- पवित्रता)
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को उसी राम का अनुयाई होना चाहिए और अनैतिक तरीके से सत्ता पर कब्जा नहीं करना चाहिए। (संवाद)
राम सत्ता के त्याग के प्रतीक हैं
लेकिन भाजपा के लिए सत्ता ही सबकुछ है
एल एस हरदेनिया - 2020-08-08 11:03
अब चूंकि राम मंदिर का शिलान्यास सबकी सहमति से हो चुका है इसलिए आवश्यकता इस बात की है कि हम भगवान (राजा भी) राम के गुणों को, उनके व्यक्तित्व की विशेषताओं को पहिचाने और उनसे प्रेरणा लें। राम का सबसे महत्वपूर्ण गुण सत्ता के प्रति मोह का अभाव था। सच पूछा जाए तो वे सत्ता के त्याग के प्रतीक हैं।