सोनिया गांधी के अंतरिम अध्यक्ष बने हुए भी एक साल पूरे हो गए हैं, लेकिन अभी अध्यक्ष पद को लेकर संशय बना हुआ है। सोनिया का स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता। वह ज्यादा चहलकदमी नहीं कर सकती हैं। वे चुनावी सभाओं को भी संबोधित नहीं कर सकतीं। शायद इसीलिए वे पूर्ण रूप से कांग्रेस की अध्यक्ष भी नहीं बनना चाहतीं और कांग्रेस में सबकुछ अनिश्चितता के माहौल में चल रहा है। इसका नतीजा उसे भुगतना पड़ रहा है। मध्यप्रदेश में उसकी सरकार चली गई। माधव राव सिंधिया ने विद्रोह कर दिया और वे अपने बीसेक समर्थक विघायकों के साथ कांग्रेस से बाहर हो गए। उन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता था और थे भी, लेकिन उन्हें रोकने की सार्थक कोशिश राहुल ने समय पर नहीं की।
उन्हें लगा कि वे चूंकि कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर नहीं हैं, इसलिए वे क्या कर सकते हैं। सिंघिया को लगा कि उनके मित्र राहुल कांग्रेस के अंदर उनके हितों की रक्षा नहीं कर सकते, इसलिए ऐसे मित्र के भरोसे राजनीति करना बेकार है, इसलिए वे भाजपा में चले गए। राहुल के एक अन्य दोस्त सचिन पायलट भी उसी रास्ते पर हैं। हालांकि इस बार उन्होंने राजस्थान सरकार बचाने की कोशिश की और शायद उसके कारण ही वह सरकार फिलहाल बची हुई भी है, लेकिन वे पार्टी के अंदर अपनी किसी प्रकार की भूमिका नहीं देखते। हां, विपक्षी नेता के रूप में मोदी सरकार पर हमला करने में वे देश कि किसी भी नेता से पीछे नहीं हैं। यानी उन्होंने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति से भले अपने को अलग कर रखा हो, लेकिन देश की राजनीति से वे एक विपक्षी नेता के रूप में पूरी तरह से जुड़े हुए हैं और मोदी सरकार को जबतब प्रभावी तरीके से कटघरे में खड़ा करते रहे हैं।
तो बात कांग्रेस अध्यक्ष की हो रही थी। सोनिया के अंतरिम अध्यक्ष बने हुए साल भर हो गए। अंतरिम अध्यक्ष का पहला काम तो एक नियमित अध्यक्ष का चुनाव कराना होता है, लेकिन सोनिया गांधी ने अपना यह फर्ज पूरा नहीं किया। वे न तो खुद नियमित अध्यक्ष बनी हैं और न ही चुनाव करवाकर किसी और को अध्यक्ष बनने दिया है। वे अभी भी इंतजार कर रही हैं कि राहुल गांधी अध्यक्ष बने रहने को तैयार हो जाएंगे। कांग्रेस के एक नेता शशि थरूर ने कहा है कि राहुल का अध्यक्ष के रूप में चुनाव 5 वषों के लिए यानी 2022 तक के लिए हुआ था। यदि वे फिर अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लें, तो अभी दुबारा चुनाव कराने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी, लेकिन राहुल अध्यक्ष बनेंगे, इसके कोई संकेत नहीं हैं और सोनिया गांधी नहीं चाहतीं कि कांग्रेस का अध्यक्ष पद उनके परिवार से बाहर किसी और के पास जाय। उनके परिवार में उनके अलावा राहुल और प्रियंका हैं, लेकिन उनका लगाव राहुल के प्रति ही है। यदि वे चाहें, तो प्रियंका भी पार्टी अध्यक्ष बन सकती हैं, लेकिन कांग्रेस की खराब हालत और राजनीति की जटिलता को देखते हुए प्रियंका गांधी इस पद को सफलता से नहीं संभाल सकती। इसलिए कांग्रेस के पास अब एक ही रास्ता है कि वह परिवार से बाहर के नेता को अध्यक्ष पद पर बैठाए।
पर कांग्रेस अभी भी दोराहे पर खड़ी है। एक पार्टी के रूप में उसे पता नहीं चल रहा है कि वह क्या करे। उसके पास नेताओं का घोर अभाव हो गया है। मनमोहन सिंह और एके अंटोनी बहुत उम्रदराज हो गए हैं। कैप्टन अमरींदर सिंह पंजाब का मुख्यमंत्री पद छोड़कर पार्टी का अध्यक्ष पद लेने का तैयार नहीं होंगे। दिग्विजय सिंह और पी चिदंबरम जैसे नेता उसके पास है, जिनका कद पार्टी के अध्यक्ष बनने का है और उम्र भी उनके पास है, लेकिन चिदंबरम पर मुदकमे चल रहे है और दिग्विजय सिंह की स्वीकार्यता पार्टी में कम है। युवा नेताओं में कोई भी अपना कद ऊचा करने में सफल नहीं हुआ है। जाहिर है, कांग्रेस के पास नेताओं की भी भारी कमी हो गई है, जो पार्टी का अध्यक्ष पद संभालने का कद रखता हो।
लेकिन कांग्रेस को निर्णय लेना ही होगा। सोनिया यदि परिवार के मोह से नहीं उबरती, तो कांग्रेस को ही सोनिया के मोह उस उबरना होगा। यह सच है कि कांग्रेस के नेता एक दूसरे को अध्यक्ष मानने के लिए आसानी से तैयार नहीं होंगे, लेकिन वैसा नहीं होने पर चुनाव करवाया जाना चाहिए। क्या पता चुनाव के बाद अध्यक्ष पद पर बैठने वाला व्यक्ति कांग्रेस की डूबती नैया को बचा ले। फिलहाल तो यही लग रहा है कि सोनिया इसी तरह पद पर बनी रही, तो कांग्रेस को डूबने से कोई बचा नहीं सकता। राहुल गांधी विपक्ष के नेता की भूमिका निभा रहे हैं और नया अध्यक्ष बनने के बाद भी वह अपनी यह भूमिका निभाते रहेंगे। नये अध्यक्ष के लिए यह अच्छी बात होगी कि राहुल कांग्रेस पार्टी के अंदर के घटनाक्रमों से अपने को दूर ही रखेंगे, लेकिन इससे पार्टी के अंदर उनके कद पर असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि नरेन्द्र मोदी के विकल्प के रूप में वे भारतीय राजनीति में अपने आपको स्थापित कर चुके हैं। यदि पार्टी मजबूत हुई, तो वे मोदी को और भी मजबूती से चुनाती देंगे, लेकिन फिलहाल तो समस्या सोनिया गांधी ही हैं, जिन्हें लगता है कि यदि एक बार पार्टी का अध्यक्ष परिवार से बाहर का बना तो परिवार की पार्टी पर पकड़ समाप्त हो जाएगी। (संवाद)
अध्यक्ष पद को लेकर कांग्रेस अभी भी दोराहे पर
सोनिया गांधी को परिवार मोह त्यागना होगा
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-08-10 08:48
एक साले से ज्यादा हो गया है, लेकिन कांग्रेस के अध्यक्ष का मसला अभी भी हल नहीं हुआ है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में हार के बाद राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था और वे चाहते थे कि पार्टी उनके परिवार से बाहर का अध्यक्ष चुन ले। अगला अध्यक्ष कौन हो, उसका नाम भी वे नहीं बता रहे थे। इसलिए संदेश जा रहा था कि वे नाटक कर रहे हैं और कांग्रेसियों से आरजू मिन्नत करवा कर कांग्रेस के पद पर बने रहेंगे। लेकिन वे न तो अध्यक्ष पद पर बने रहने के इच्छुक थे और न ही किसी को उस पर पद नामांकित करने को तैयार थे। लंबे इंतजार के बाद सोनिया गांधी को कांग्रेस कार्यसमिति ने अंतरिम अध्यक्ष घोषित कर दिया और तब से वे ही इस पद को संभाल रही है।