लेकिन दुबारा सत्ता में आनें के एक साल पहु्रचते पहु्रचते सरकार के हाथ पाव ढीले हो रहे हैं। उसे संसद में अपने सांसदों की उपस्थिति को लेकर चौकन्ना रहना पड़ता है और बार बार उनकी गिनती करती रहनी पड़ती है। महिला आरक्षण राज्य सभा से पारित करवाने के बाद समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। उनकी समर्थन वापसी के बाद लोकसभा में सत्तारूढ़ सांसदों की सदस्य संख्या 272 हो गई है, जो बहुमत से एक कम है।

जाहिर है, महिला आरक्षण पेश करने के बाद संसद में केन्द्र सरकार की स्थिति कमजोर हो गई है। सिर्फ उसे अपने सांसदों के ही नहीं, बल्कि यूपीए के अन्य घब्क दलों के सांसदों की उपस्थिति सुनिश्चत कराने की भी चिंता सताती रहती है। उसकी चिंता का आलम यह है कि कांग्रेस ने अपने सभी सांसदों को निर्देश दे रखे हैं कि वे संसद के सत्र के दारान दिल्ली नहीं छोड़ें और कार्यवाही के समय आवश्यक रूप से उपस्थित रहें।

मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों को भी कहा गया है कि सत्र के दौरान वे किसी दूसरे देश की यात्रा पर न जाएं। उन्हें संसद में उपस्थित रहने की सख्त हिदायत दी गई है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री के अलावा कोई अन्य मंत्री विदेश की यात्रा पर नहीं है। डीएमके कोटे से मंत्री बने अलझगीर इसके अपवाद हैं, जो मालदीव में छुट्टियां मना रहे हैं। उन्होंने तो अपनी विदेश यात्रा के लिए प्रधानमंत्री से इजाजत तक नहीं ली।

करुणानिधि से बात की जा रही है, ताकि वे विदेश से जल्दी लौटें और वित्तीय विधेयक पास होने के दिन लोकसभा में आवश्यक रूप से मौजूद रहें। वित्तीय विधेयक पास होना अथवा इसके खिलाफ किसी कटौती प्रस्ताव का पराजित होना सरकार के अस्तित्व के लिए आवश्यक माना जाता है। यही कारण है कि उस दिन लोकसभा में उपस्थित रहने के लिए केन्द्रीय श्रम मंत्री को विदेश की अपनी तय यात्रा स्थगित करनी पड़ी।

केन्द्र सरकार लोकसभा में बहुमत से एक कम है, इसके कारण मनमोहन सिंह सरकार को बचाने के लिए युपीए के सभी घटक दलों को चिता करनी पड़ रही है। सरकार की कमजोर स्थिति के कारण ही परमाणु दायित्व विधेयक पर उसे अपने पैर पीछे करने पड़े। उसके कारण ही उसे खाद्य सुरक्षा विधेयक पर भी फजीहत का सामना करना पड़ रहा है। राज्य सभा में सरकार महिला आरक्षण विधेयक को इसलिए पारित करवा पाई, क्योंकि विपक्ष भारी तादाद में इसके पक्ष में था, लेकिन अब यही सरकार लोकसभा में इसे पेश करने की हिम्मत नहीं जुटा रही है, क्योंकि वहां महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने वालों की संख्या ज्यादा है और यूपीए की एक प्रमुख घटक तृणमूल कांग्रेस भी प्रस्तावित रूप में महिला आरक्षण विधेयक का विरोध करने लगी है।

लोकसभा में सरकार वित्त विधेयक को पारित कराने के लिए चिंतित है और इसी बीच आइपीएल का विवाद भी खड़ा हो गया है। इसके कारण शशि थरूर को सरकार से बाहर जाना पड़ा। मनमाहन सिंह ने थरूर को इस्तीफा इसीलिए दिलाया, क्योंकि सरकार के पास संसद में संख्या की समस्या है और वह थरूर के कारण इस समस्या को और भी नहीं बढ़ाना चाहते थे। आइपीए घोटाले के छींटे एनसीपी के शरद पवार और प्रफुल्ल पटेल पर भी पड़ रहे हैं। लेकिन एनसीपी के पास 8 सांसद हैं और उन सासंदों का समर्थन सरकार को बचाने के लिए आवश्यक है। यही कारण है कि उन दोनों को सरकार से हटाया नहीं जा सकता।

शरद पवार के लिए भी कांग्रेस के साथ बने रहना जरूरी है। यही कारण है कि जब प्रणव मुखर्जी और पी चिदंबरम ने उन्हें आइपीएल घोटाले से संबंधित कुछ दस्तावेज दिखाए, तो उन्होंने ललित मोदी का समर्थन करना बंद कर दिया और उन्हें आइपीएल के आयुक्त और अध्यक्ष पद से हटाने की मुहिम में शामिल हो गए।

अपने संकट से मुक्त होने के लिए सरकार विपक्ष में बिखराव पैदा करने की कोशिश कर रही है। विपक्ष महंगाई के मसले पर एक है और उसकी इस एकता को तोड़ना उसके लिए आसान नहीं दिख रहा है। राष्ट्रीय लोकदल जैसी छोटी पार्टियों से सरकार संपर्क में है और उनका प्रत्यक्ष या परोक्ष समर्थन पाने की कोशिश सरकार कर सकती है। (संवाद)