बहरहाल, उनकी मौत से चिराग के प्रति ऐसी कोई सहानुभूति लहर नहीं पैदा होने वाली है कि उनकी पार्टी को मिलने वाले वोट एकाएक बढ़ जाएंगे। वैसे भी जाति राजनीति से ग्रस्त बिहार में रामविलास की अपील उनकी अपनी जाति के लोगों तक ही सीमित रह गई थी। उनकी जाति के लोगों की आबादी प्रदेश की कुल आबादी का 5 प्रतिशत है और उनमें भी नक्सली प्रभाव वाले इलाके में उनकी जाति के लोग सीपीआई(माले) को वोट देते रहे हैं और रामविलास पासवान के पक्ष में दो से ढाई फीसदी वोट जाति समर्थन के करना मिलता होगा।

इस बार उनकी पार्टी किसी अन्य पार्टी के साथ गठबंधन में नहीं है और वे घोषणा कर रहे हैं कि भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ अपना उम्मीदवार नहीं देंगे। उसके अलावा अन्य क्षेत्रों में जहां नीतीश कुमार और जीतनराम मांझी के उम्मीदवार होंगे, वहां ही वे अपने उम्मीदवार खड़े करेंगे। पहले चरण का नामांकन हो भी चुका है और इस चरण में उन्होंने ऐसा ही किया है। आने वाले चरणों में भी वे ऐसा कर सकते हैं और यदि भाजपा के साथ उनकी कुछ और बात हुई, तो वैसा नहीं भी कर सकते हैं।

बिहार चुनाव में चिराग की राजनीति के कारण एक विचित्र स्थिति पैदा हो गई है। उनकी लोक जनशक्ति पार्टी केन्द्र में सता एनडीए का हिस्सा है, लेकिन बिहार में नहीं है। केन्द्र की सरकार में उनके पिता मंत्री थे। ऐसी स्थिति में नीतीश कुमार द्वारा यह मांग करना वाजिब होता कि पासवान को सरकार से बाहर किया जाय और भाजपा घोषणा करे कि चिराग की पार्टी केन्द्र में भी एनडीए का हिस्सा नहीं है। लेकिन रामविलास की बीमारी के कारण भाजपा ऐसा नहीं कर सकती थी। बीमार रामविलास को न तो इस्तीफा देने के लिए कहा जा सकता था और न ही उन्हें मंत्रिमंडल से बर्खास्त किया जा सकता था। ऐसा करना अमानवीय और अनुचित माना जाता। इसके कारण नीतीश कुमार चिराग की पार्टी को एनडीए से बाहर करने की मांग भी नहीं कर सकते थे, क्योंकि उनकी मांग में रामविलास की बर्खास्तगी शामिल होती।

बहरहाल, अब रामविलास पासवान नहीं रहे। बदली स्थिति में भाजपा को यह कहने में कोई दिक्कत नहीं होगा कि चिराग पासवान अपनी मर्जी से एनडीए के बाहर हो गए हैं और वे अब एनडीए का हिस्सा नहीं हैं। इसके कारण मतदाताओं में पैदा भ्रम समाप्त हो गया है। लिहाजा, नई परिस्थिति का फायदा नीतीश को ही होना है। पासवान की मौत के कारण यदि कोई सहानुभूति लहर हो भी, तो वह पासवान जाति तक ही सीमित होगा और इस जाति के लोगों ने नीतीश के दल को वोट करना तो उसी समय से बंद कर रखा है, जब से बिहार में महादलित की अवधारणा के द्वारा पासवान जाति के लोगों को दलितों के बीच अलग थलग कर दिया गया।

पासवान की मौत के बाद चिराग के सामने एक और प्रश्न खड़ा हो गया है। वह प्रश्न है कि क्या वे केन्द्र की एनडीए सरकार में अपनी पिता की जगह लेना चाहेंगे या नहीं? अब यदि वे जगह लेना चाहेंगे, तो फिर उन्हें बिहार में भी एनडीए के साथ रहना होगा और यदि वह अलग बने रहे, तो फिर केन्द्र सरकार में भी उनको जगह नहीं मिल सकती। मंत्री बनने का लोभ उन्हें अगले दो चरणों में अपने उम्मीदवार खड़ा करने निर्णय पर फिर से विचार करने को बाध्य कर सकता है।

इसमें कोई दो मत नहीं कि भाजपा के मजबूत उम्मीदवारों को लोकजनशक्ति पार्टी का टिकट देकर जदयू उम्मीदवारों के खिलाफ खड़ा करने से नीतीश की पार्टी को नुकसान होगा। इसके कारण उनके उम्मीदवार हार भी सकते हैं, लेकिन उनकी हारजीत का संबंध रामविलास पासवान की मौत से नहीं होगा, बल्कि भाजपा से आए लोजपा उम्मीदवारों की अपनी जातीय अपील से होगा। अब बदली परिस्थितियों में नीतीश कुमार भाजपा पर दबाव डालकर चिराग को रास्ते पर लाने की कोशिश कर सकते हैं।

भारतीय जनता पार्टी की अपनी राजनीति क्या है, यह भी आने वाले दिनों में मायने रखती है। यदि वह वास्तव में चाहती है कि उसके सहयोगी जदयू के ज्यादा से ज्यादा उम्मीदवार जीते, तो उसके पास चिराग पासवान को लोभ देने या भयभीत करने की रणनीति का समय आ गया है। मंत्री का लोभ देकर वह चिराग को ज्यादा उम्मीदवार खड़े करने से रोक सकती है। भाजपा के मुह बंद थे, क्योंकि रामविलास पासवान बीमार थे। लेकिन जब वे इस दुनिया में रहे ही नहीं, तो फिर अब भाजपा उनका हवाला देकर अपना मुंह बंद भी नहीं रख सकती।

लेकिन यदि भाजपा वास्तव में जदयू को कमजोर कर और उसके उम्मीदवारों को चिराग के उम्मीदवारों से हराकर अपनी सरकार बनाना चाहती है, तो फिर वह अपनी रणनीति में कोई बदलाव नहीं करेगी। पासवान की मौत के बाद उपजे कथित सहानुभूति लहर का हवाला देकर चुप रहेगी और इसके कारण भाजपा के कार्यकर्त्ता और मतदाता भ्रम में पड़े रहेगे कि जदयू को वोट करें या चिराग के उम्मीदवार को। अगले कुछ दिनों में यह स्पष्ट होने लगेगा कि चिराग क्या करते हैं और भाजपा क्या करती है। फिलहाल तो जदयू के अनेक उम्मीदवारों के होश उड़ रहे हैं कि कहीं भाजपा समर्थक उन्हें छोड़कर चिराग की ओर मुखातिब न हो जाय। (संवाद)