पर दुर्भाग्य की बात है कि ट्राई अपने इस फर्ज को लेकर बहुत गंभीर नहीं है। खबर आ रही है कि उसके पास अनेक चैनल वाले पेटीशन देकर घोटाले को रोकने की मांग कर रहे थे, लेकिन ट्राई ने उस पर चुप्पी बांध रखी है। टीआरपी का यह घोटाला अनेक प्रकार से हो रहा है। मुंबई पुलिस ने बैरोमीटर को मैनेज करके टीआरपी को बढ़ाने के जिस मामले का पर्दाफाश किया है, वह तो बस एक तरीका है। रिपब्लिक भारत और रिपब्लिक टीवी पर अन्य प्रकार से घोटाला करने के आरोप भी लग रहे थे और प्रतिस्पर्धी चैनल, जिन्हें इन घोटालों से नुकसान हो रहा था, वे ट्राई के पास अपनी शिकायत लेकर जा रहे थे, लेकिन इस सरकारी संस्था ने उन शिकायतों पर अभी तक कार्रवाई नहीं की है।
एक शिकायत केबल और कुछ अन्य प्लैटफॉर्म पर रिपब्लिक टीवी के चैनल नंबर को लेकर है। टीवी उपभोक्तओं की सुविधा के लिए अलग अलग भाषाओं और विधाओं के स्लॉट तैयार किए जाते हैं और उसी भाषा और विधा स्लॉट में किसी चैनल को रखा जाता है, जिसके लिए वह योग्य है। जैसे हिन्दी भाषा की खबरों को एक साथ रखा जाता है। किसी भाषा के मनोरंजन चैनलों की भाषा को भी एक ही जगह रखा जाता है और उन्हें आसपास की नंबरिंग मिलती है। यह उपभोक्तओं की सुविधा के लिए होता है।
ल्ेकिन रिपब्लिक टीवी पर आरोप लग रहा है कि उसे किसी भी भाषा और विधा स्लॉट में डाल दिया जाता है। उस भाषा के सबसे लोकप्रिय चैनल के आसपास डाल दिया जाता है, ताकि उस चैनल को पहुंचने के लिए टीवी स्कैन करते समय रिपब्लिक टीवी चैनल भी उपभोक्ता को दिख जाय। ऐसा नियमों का उल्लंघन करके किया जाता है। आरोप तो यह भी लगा है कि रिपब्लिक टीवी को किसी किसी केबल ऑपरेटर ने तो दो नंबर अलॉट कर रखे हैं। यदि एक नंबर बेहद लोकप्रिय चैनल के पास है, तो उसकी नजदीकी होने का लाभ भी रिपब्लिक चैनल को मिल रहा था और उसके कारण उसका टीआरपी बढ़ रहा था। यह बेहद शातीराना ढंग से किया जा रहा था और इसके कारण उसे टेलिकास्ट के पहले दिन से ही उसका टीआरपी बहुत ज्यादा होने लगा, जबकि किसी भी नये चैनल को स्थापित होने में बहुत समय लगता है।
बहरहाल, हम यहां ट्राई की बात कर रहे हैं। ट्राई ने रिपब्लिक भारत और रिपब्लिक टीवी पर लगे उस गंभीर आरोप पर ध्यान नहीं दिया। उसका ध्यान इस गंभीर बीमारी पर आकर्षित करने की कोशिश पहले से ही की जा रही थी। और इसी बीच बैरोमीटर के इस्तेमाल करने वालों को रिश्वत देकर टीआरपी बढ़ाने का और भी गंभीर मामला सामने आ गया है। इस पर देश भर में हंगामा हो रहा है, पर ट्राई इस मामले पर अभी चुप है, जबकि उसे सही टीआरपी आए, इसके इंतजाम करने का विकल्प अभी से गंभीरता से ढूंढ़ना चाहिए। बार्क द्वारा बैरोमीटर स्थापित कर उनसे प्राप्त आंकड़ो पर अब विश्वास नहीं किया जा सकता।
आज टेक्नालॉजी बहुत विकसित है और देश भर के टीवी सेट को डिजिटल सेट टॉप बॉक्स से जोड़ दिया गया है। सेट टॉप बॉक्स को स्कैन कर ही लोग अब प्रोग्राम देखते हैं। अब यदि सारे सेट टॉप बॉक्स के साथ बैरोमीटर संलग्न कर दिया जाय, तो सही आंकड़े आ सकते हैं। हां, तब बैरोमीटर का स्वरूप बदल जाएगा। आज बैरोमीटर टीवी सेट मे सेट किया जाता है। उसके साथ अपना अलग रिमोट भी होता है, जिसमें घर क सदस्यों के लिए अलग अलग बटन लगे होते हैं। नई व्यवस्था में सभी सेट टॉप बॉक्स में एक चिप डाला जा सकता है, जो बैरोमीटर का काम करेगी। उपभोक्ता कौन कौन कौन सा चैनल देखते हैं और कितना देखते हैं, उन सारे आंकड़ों को चिप्स इकट्ठा करने का इंतजाम किया जा सकता है। वे डेटा बार्क के सर्वर से जोड़ा जा सकता है और फिर बार्क उसका विश्लेषण कर सही टीआरपी दुनिया के सामने ला सकता है।
जो भी व्यवस्था बनती है, उसमें सेंधमारी की जा सकती है, लेकिन एक्सपर्ट लोग सेंधमारी से बचने का उपाय भी ढूढ़ ही लेते हैं। इसमें भी ढूंढ़ा जा सकता है। इस व्यवस्था के खिलाफ एक आरोप लग सकता है कि इससे उपभोक्ता के निजत्व की रक्षा नहीं हो पाएगी, क्योंकि वह क्या देखता है, वह दूसरों को मालूम हो जाएगा। लेकिन इससे बचने का इंतजाम भी अब इन्क्रिप्टेड करके किया जा सकता है। विज्ञापन दातों यह जानना चाहते हैं कि महिलाएं क्या देख रही हैं और किस उम्र के लोग क्या और कितना देख रहे हैं और इस व्यवस्था से इसका सही सही पता नहीं चल पाएगा। लेकिन वर्तमान व्यवस्था से ही उन्हें सही सही पता चल पा रहा है? 500 रुपये महीने देकर टीआरपी प्रभावित किया जा रहा है और क्या 500 रुपये लेकर जो अपने टीवी को 24 घंटे चाले करके रखते हैं, क्या वे फरारी और एमबीडब्लू कार के खरीददार हैं। सच तो यह है कि 44 हजार बैरोमीटर जिन घरो में लगाए गए है, यदि उनका खुलासा किया जाय, तो पता चलेगा कि उनमें शायद ही कोई ऐसा घर हो, जिन्हें हम अपर मिड्ल क्लास का हिस्सा कह सकें।
इसलिए अलग अलग आयु वर्ग और अलग अलग लिंग के व्यक्तियों की पसंद और नापसंद जानने की बात को भूलकर सिर्फ यही पता लगाया जाय कि अलग अलग आय वर्ग के लोग कौन कौन से कार्यक्रम देखते हैं, तो वह काफी काफी होगा। पसंद नापसंद का पता कंपनियां सर्वे करके भी लगा सकती हैं। परिवार की आय का पता कनेक्शन देते समय डीटीएच कंपनियां या केबल ऑपरेटर अपने डेटा सकते हैं। (संवाद)
टीआरपी घोटाले से कैसे बचें
सभी सेट टॉप बॉक्स के साथ बैरोमीटर चिप जुड़ा होना चाहिए
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-10-20 16:22
टीआरपी घोटाले के पर्दाफाश होने के बाद हमारे सामने दो मुख्य चुनौतियां हैं। पहली चुनौती घोटालेबाजों को सजा देने की है और दूसरी चुनौती कोई ऐसी व्यवस्था करने की है, जिसमें टीआरपी घोटाला हो ही नहीं। सजा देने और दिलवाने का काम तो जांच एजेंसियों और अदालत का है, लेकिन टीआरपी घोटाला मुक्त व्यवस्था को अस्तित्व में लाने का काम भारत सरकार और खासकर इसकी एजेंसी ट्राई (टेलिकॉम रेगुलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया) का है। यह ट्राई की जिम्मेदारी है कि वह घोटाला रहित व्यवस्था को तैयार करने के लिए जो भी संभव हो सकता है, वह करे।