कांग्रेस कभी बहुत बड़ी पार्टी थी और उसका जनाधार भी बहुत विकसित था और उसका संगठन भी बहुत मजबूत था, लेकिन अब उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस के पास कुछ भी नहीं है। उसका न तो जनाधार है और न ही मजबूत संगठन, फिर भी वह राष्ट्रीय पार्टी होने का हवाला देकर ज्यादा सीटें हथिया लेती हैं और चुनावों में पराजय का सामना करती है। बिहार के 2015 के विधानसभा चुनाव में उसने 42 सीटों पर चुनाव लड़ा था और उसमें उसे 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। लेकिन वह चुनाव एकतरफा था। उसमें उस गठबंधन को तीन चौथाई सीटों पर सफलता हासिल हुई थी। इसके कारण कांग्रेस को उतनी ज्यादा सीटों पर जीत हासिल हुई थी।
लेकिन इस बार मुकाबला कड़ा होना था। बिहार का जाति समीकरण नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन के पक्ष में था। नीतीश और मोदी सरकार के खिलाफ जन असंतोष था, इसके कारण तेजस्वी के नेतृत्व वाले महागठबंधन नीतीश सरकार को हटाने के लिए कठिन चुनौती पेश करने में सक्षम था। इसलिए इसलिए इस बार कमजोर संगठन वाली कांग्रेस की जीत बहुत आसान नहीं थी। इसलिए उसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की जिद नहीं करनी चाहिए थी। इसलिए जब चिदंबरम कह रहे हैं कि कांग्रेस ने अपनी हैसियत से ज्यादा सीटें गठबंधन में ले ली थी, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं कह रहे हैं। उनका मानना है कि कांग्रेस का अपने संगठन की कमजोर हालत को देखते हुए बिहार में 45 सीटां पर चुनाव लड़ना चाहिए था और शेष 45 सीटें राजद और वामपंथी उम्मीदवारो के लिए छोड़ देना चाहिए था। चिदंबरम भी कांग्रेस के बड़े नेता हैं, लेकिन पार्टी की नीतियों और निर्णयों को प्रभावित करने की उनमें क्षमता नहीं। पार्टी नेतृत्व शायद उनसे निर्णय लेने के पहले सलाह मशविरा भी नहीं करता है। जाहिर है, वे अब कांग्रेस नेता की हैसियत में नहीं रह गए हैं, बल्कि एक बौद्धिक विश्लेषक भी भूमिका में रह गये हैं और उनका यह विश्लेषण सही है कि यदि आज बिहार में एक बार फिर राजग की सरकार बन गई है, तो उसके लिए कांग्रेस की ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद जिम्मेदार है। कांग्रेस जितना पचा नहीं सकती, उससे ज्यादा खा लेती है।
सवाल उठता है कि ऐसा होता क्यों है और क्षेत्रीय पार्टी कांग्रेस को उसकी हैसियत से ज्यादा सीटें क्यों दे देती है। तो इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला कारण तो सोनिया परिवार अभी भी कांग्रेस की ताकत को लेकर मुगालते में है। परिवार को लगता है कि कांग्रेस में अभी भी बहुत दमखम है। दूसरा कारण यह है कि समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल जैसी क्षेत्रीय पार्टियों में एक विशेष किस्म की हीन भावना है। उन्हें लगता है कि एक राष्ट्रीय पार्टी के साथ गठबंधन करने से राष्ट्रीय स्तर पर उसकी पहचान मजबूत होती। उन्हें यह भी लगता है कि यदि कांग्रेस से गठबंधन नहीं हुआ, तो वह सभी सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़ी कर देगी, जो उनकी पार्टियों के उम्मीदवारो के वोट काट लेंगे और उनके कई उम्मीदवार चुनाव हार जाएंगे। खासकर, मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस के मुस्लिम उम्मीदवार उतारे जाने से वे डरते हैं। लेकिन सच तो यह है कि मुसलमानों पर भी यूपी और बिहार में कांग्रेस की पकड़ नहीं है। मुस्लिम उम्मीदवार से ज्यादा तो कांग्रेस अगड़ी जातियों के उम्मीदवारों को उतारती हैं और अगड़ी जातियों के मतदाता अब इन दोनों राज्यों में भाजपा के साथ है।
अतः यदि कांग्रेस यूपी और बिहार में सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा कर चुनाव लड़े, तो उसके उम्मीदवारों द्वारा काटे गए वोट से भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों को नुकसान होगा, न कि समाजवादी पार्टी और राजद को। लेकिन फिर भी इन दोनों क्षेत्रीय दलों के बीच मुस्लिम वोटों के बंटवारे को लेकर डर बना रहता है और मुस्लिम वोटों को बिखरने न देने के तर्क से वे कांग्रेस से समझौता करते हैं और हैसियत से ज्यादा उसे सीटें भी दे देते हैं, जिसका असर गठबंधन की हार के रूप में सामने आता है। ऐसा हम पिछले दिनों हुए बिहार विधानसभा के चुनाव में भी देख चुके हैं और 2017 में हुए उत्तर प्रदेश की विधानसभा चुनावों में भी।
दरअसल हिन्दी हृदय क्षेत्र के इन दोनों राज्यों में ही नहीं, बल्कि देश के अन्य इलाकों में भी कांग्रेस की जो दुर्गति हो रही है, उसके लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार नहीं है, बल्कि कांग्रेस के नेतृत्व पर कुंडली मार कर बैठा सोनिया परिवार है। (संवाद)
बिहार की हार पर कांग्रेस में तकरार
समस्या कांग्रेस में नहीं, सोनिया परिवार में है
उपेन्द्र प्रसाद - 2020-11-19 11:12
इसमें कोई दो राय नहीं कि बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व में बनी राजग सरकार कांग्रेस की ज्यादा से ज्यादा सीटों पर लड़ने की जिद के कारण बनी है। कांग्रेस ने जिद करके 70 सीटें गठबंधन में प्राप्त कर ली, लेकिन उसके उम्मीदवार मात्र 19 सीटों पर ही जीत सके और 51 सीटें हार गए। उत्तर प्रदेश विधानसभा के आम चुनाव में भी कांग्रेस ने 100 से ज्यादा सीटें अखिलेश यादव से हासिल कर ली थी और उसके उम्मीदवार भारी संख्या में हारे।