फिर योगगुरू रामदेव ने कहा कि वे कोराना का टीका नहीं लगाएंगे और अपनी योग और आयुर्वेद की पद्धति पर ही वे विश्वास करते हुए अपने को सुरक्षित रखेंगे। टीकाकरण की इस प्रक्रिया को सांसत में डालने वाला एक बयान जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि वे खुद टीका नहीं लगाएंगे। हालांकि टीका नहीं लगवाने का कारण बताते हुए उन्होंने कहा कि जिसे इसकी ज्यादा जरूरत है, उन्हीं को पहले यह टीका लगाया जाएगा। यह सब काफी नहीं था, तो टीका तैयार करने वाली दोनों कंपनियों ने आपस में ही एक दूसरे पर आरोप लगाना शुरू कर दिया। पुणे के भारतीय सीरम संस्थान के मालिक अदार पुणेवाला ने कोवैक्सिन को सुरक्षित हानिरहित जल बता दिया, जो प्रभावी नहीं है। तो कोवैक्सिन विकसित करने वाली कंपनी भारत बायोटेक के मालिक ने भारत सीरम संस्थान द्वारा उत्पादित और ऑक्फोर्ड द्वारा विकसित कोविशील्ड पर सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि उस दवा को तैयार करने वाले लोगों को ही पता नहीं है कि उसके कितने डोज का कितना प्रभाव है और यहां तक कहा कि यदि वह वैक्सिन भारत की किसी कंपनी ने विकसित की होती, तो यहां की कोई सरकार उसे टीकाकरण के लिए मंजूर नहीं करती।

दो कंपनियां एक दूसरे की वैक्सिन पर सवाल उठा रही हो, तो इसे प्रथम ग्रासे मक्षिकापात ही कहा जा सकता है, क्योंकि टीका को देश के लोगों को लेना है और उनके मन में टीका को लेकर इस तरह की घटनाएं संदेह पैदा कर देती है। एक समय था, जब सरकार द्वारा देश में टीका का अभियान चलाना चुनौती भरा काम होता था। लोग सहयोग नहीं करते थे। उसके बारे में तरह तरह की झूठी अफवाहें फैलाई जाती थीं। लेकिन यहां तो टीका की कंपनियां ही दूसरे की टीका को खराब या निष्प्रभावी बता रही हैं। तो वैसी हालत में इनसे जुड़ी अफवाहों को और भी बल मिल जाता है। वैसे भी यह वैक्सिन नये नये हैं। इनके दीर्घकालीन कुप्रभाव क्या होंगे, इसे इन वैक्सिनों को विकसित करने वाले लोग भी नहीं जानते। तो फिर अफवाहों की चांदी हो जाती है और उसके कारण टीकाकरण की प्रक्रिया के प्रभावित होने की आशंका और भी बढ़ जाती है।

हालांकि एक बात अच्छी यह है कि सबसे पहले टीका स्वास्थ्यकर्मियों को ही लगाया जाएगा। स्वास्थ्यकर्मियों का समुदाय वह समुदाय है जो दवाइयों से संबंधित झूठे अफवाहों से नहीं प्रभावित होता या बहुत कम प्रभावित होता है। जब वे टीका लेने लगेंगे और किसी प्रकार के बड़े साइड इफेक्ट से उनके ग्रस्त होने की खबरें नहीं आएंगी, तो फिर लोगों में विश्वास पैदा होगा और अफवाहबाज गलत साबित होने लगेंगे। स्वास्थ्यकर्मियों के बाद फ्रंट लाइन कर्मियों को टीके दिए जाएंगे। उस समुदाय में सुरक्षा बल, नगर निगमों के सफाईकर्मी और वे सरकारी कर्मी आते हैं, जो आगे बढ़ चढ़कर कोरोना काल में बीमारी का खतरा उठाते हुए भी अपना काम करते है। स्वास्थ्यकर्मियो की तरह वे वैक्सिन से जुड़ी अफवाहों के खिलाफ वे ज्यादा प्रशिक्षित तो नहीं, लेकिन अपने कार्य के निष्पादन में कोरोना बीमारी के खतरे को देखते हुए, वे भी अपना टीकाकरण कराना चाहेंगे, शर्त बस यह है कि पहले चरण में हुए टीकाकरण कार्यक्रमों के दौरान कोई अप्रिय घटना न घटे यानी टीकाकरण का कोई बड़ा दुष्प्रभाव सामने नहीं आए।

एक और तथ्य है, जो टीकाकरण को प्रभावित कर सकता है और वह तथ्य है कोरोना संक्रमण के आंकड़ों में लगातार गिरावट आना। वैसे यह देश के लिए अच्छी बात है कि कोरोना का कहर कमजोर हो रहा है, लेकिन यही बात टीकाकरण के प्रयासों को कमजोर करने वाली है। एक समय था, जब कोरोनो से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या 90 हजार प्रतिदिन से ज्याद हुआ करती थी। एक बार तो यह करीब 98 हजार तक पहुंच गई थी। लेकिन बाद में इसमें लगातार गिरावट आई है और अब यह 20 हजार प्रतिदिन के आंकड़े से नीचे बनी हुई है। एक दिन तो आंकड़ा 14 हजार प्रतिदिन पर पहुंच गया। जिस दर से यह गिरावट आ रही है, उससे यह लगता है कि मार्च के महीने तक भारत में कोरोना का संक्रमण लगभग समाप्त ही हो जाएगा। और जब लोग कोरोना के कहर का सामना ही नहीं कर रहे होंगे, तो नये तैयार टीका का इंजेक्शन वे क्यों लेना चाहेंगे? वे चाहेंगे कि उनके पहले और दूसरे लोगों को टीका ले लेने दें और उनपर पड़ने वाले असर को देख्ने के बाद वे निर्णय करेंगे कि उन्हें टीका लेना है या नहीं लेना है।

वैसे भी सरकार ने कई बार स्पष्ट किया है कि कोरोना का यह टीका किसी को जबर्दस्ती नहीं दिया जाएगा। जो टीकाकरण कराना चाहेंगे, उन्हीं को टीका दिया जाएगा। इतना ही नहीं, टीका लेने वाले को लिखकर अपना सहमति पत्र जमा करना होगा कि वे अपनी मर्जी से और अपने रिस्क पर टीका ले रहे हैं। जाहिर है, लोगो की स्वेच्छा पर टीकाकरण छोड़ देने का भी असर टीकाकरण अभियान पर पड़ सकता है। चूंकि सरकारी पार्टी टीकाकरण अभियान का इस्तेमाल भी अपनी राजनीति चमकाने के लिए कर रही है, इसलिए विपक्षी पार्टिंयां भी प्रतिक्रियास्वरूप ऐसा कुछ कर सकते हैं, जिससे इस अभियान के कमजोर होने का खतरा पैदा हो सकता है। फिलहाल टीकाकरण की प्रक्रिया शुरू होना अभी बाकी है। अभी देखना बाकी है कि स्वास्थ्यकर्मी इस अभियान में किस उत्साह से हिस्सा लेते हैं। (संवाद)