बहरहाल, हम यहां चर्चा गोदी मीडिया की न नहीं कर रहे हैं, बल्कि इस मीडिया के शलका पुरुष अर्णब गोस्वामी के 500 पृष्ठों वाले उस चैट्स की कर रहे हैं, जो बार्क के मुख्य कार्यकारी अधिकारी पार्थो दासगुप्ता के साथ उन्होंने की थी। टीआरपी घोटाले में पार्थो को गिरफ्तार किया गया था और वे अभी जेल में ही हैं। हाई कोर्ट द्वारा रोक लगाए जाने के कारण अर्णब अभी तक इस मामले में गिरफ्तार नहीं हुए हैं, लेकिन अबतक जो बातें सामने आई हैं, उनसे साफ होता है कि इस घोटाले के दो मुख्य अभियुक्तों में अर्णब भी एक हैं और दूसरे खुद पार्थों हैं। जो चैट्स लीक हुए हैं, वे भी अर्णब की इसमें संलिप्तता की गवाही ही देते हैं।

लोकतंत्र के चार खंभे माने जाते हैं- विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया। इनमें से प्रथम तीन तो राज्य के खंभे हैं, जबकि मीडिया राज्य से बाहर है और इसका काम लोकतंत्र के प्रहरी के रूप में राज्य से बाहर रहकर ही काम करना है। लेकिन अर्णब के नेतृत्व में मीडिया का एक हिस्सा राज्य का भी एक स्तंभ बन चुका है, जिसका काम विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका पर निगरानी रखना और नागरिकों को उनके बारे में जागृत करते रहना माना जाता है। लेकिन राज्य का हिस्सा बनकर यह गोदी मीडिया विपक्ष और जनता को न केवल दिग्भ्रमित करता है, बल्कि उलटे उन्हें ही राज्य की विफलता का जिम्मेदार मानता रहता है। वह सरकार से सवाल नहीं करता, बल्कि जनता से ही सवाल करता है और उसे ही दोषियों के कटघरे में खड़ा करता है।

उन चैट्स से पता चलता है कि किस तरह से लोकतंत्र के चारां खंभे पर हमले हो रहे थे और अभी भी हो रहे हैं। अर्णब ब्रांड गोदी पत्रकारिता के साक्षी तो हम कुछ सालों से हैं ही, लेकिन इसे संभव बनाने के लिए अर्णब और उससे जुड़े लोगों ने टीआरपी में किस तरह से छेड़छाड़ की और आगे क्या क्या हुआ, उसका पता इस चैट्स से चलता। पार्थो अर्णब का पुराना परिचित था। चैट्स में अर्णब खुद पार्थो से कहता है कि यदि आपसे मुलाकात नहीं होती, तो मैं एनडीटीवी में सड़ रहा होता। यानी पार्थो के कारण ही अर्णब एनडीटीवी से टाइम्स नाउ गया और वहीं वह प्रसिद्ध हुआ। टाइम्स नाउ के मालिक नहीं चाहते कि उसके वहां काम कर रहा पत्रकार अपने आप में ब्रांड हो जाए, लेकिन अर्णब वहां ब्रांड बन चुका था और इसलिए टाइम्स के मालिकों से उसकी खटपट होनी ही थी। फिर उसने अपने खुद का चैनल स्थापित करने का फैसला कर लिया। फाइनांसर का भी इस्तेमाल कर लिया। चैनल स्थापित कर उसे चलाना बहुत कठिन काम है। शुरू शुरू में घाटे में रहना पड़ता है और यदि क्लिक नहीं किया, तो वह बंद हो जाता है। लेकिन यदि चैनल शुरू होने के पहले दिन से ही टीआरपी में चैनल सबसे टॉप पर आ जाए, तो फिर चैनल का मालिक तो मालामाल हो जाता है। अर्णब के रिपब्लिक टीवी के साथ यही हुआ। उसने नंबर वन चल रहे टाइम्स नाउ को पछाड़ दिया। वह भी अपनी पत्रकारिता की काबिलियत से नहीं, बल्कि पार्थो दासगुप्ता के सहयोग से। जी हां, उसी पार्थो के सहयोग से, जो अभी टीआरपी घोटाले में जेल में हैं।

रिपब्लिक टीवी की शुरुआत को आप गोदी मीडिया के युग की शुरुआत कह सकते हैं। चूंकि अर्णब का चैलन टीआरपी में नंबर वन था और उसे सबसे ज्यादा विज्ञापन और विज्ञापन राशि मिल रही थी और यह संदेश जा रहा था कि देश के लोग उसी प्रकार की खबरें देखना पसंद करते हैं, जो अर्णब परोस रहा है, इसलिए अन्य अनेक चैनल भी उसी रास्ते पर चल निकले। वहां भी वही सबकछ होने लगा, जो अर्णब कर रहा था। अर्णब पत्रकारों का आदर्श बनने लगा, जबकि उसके चैनल का नंबर वन होना पार्थो द्वारा किया गया एक छल था। अर्णब और पार्थो के बीच कितने गहरे संबंध थे, इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि अर्णब उससे वह सबकुछ शेयर करता था, जो उसके पास होता था। एनएसए ने उससे कब बात की। कोई एनएम(शायद पीएम मोदी) गुजराती में लिखी अपनी घटिया कविताओं का उससे अंग्रेजी में अनुवाद करवाते हैं और उसे करना पड़ता है। मंत्रियों से हुई बातचीत भी वह बताता था। अरुण जेटली के बारे में उसकी जो खराब राय थी, उससे भी वह पार्थो को अवगत कराता था। छोटे पर्दे पर सरकार की वाहवाही करने वाले अर्णब निजी बातचीत में पार्थो को बताता था कि अर्थव्यवस्था का पूरी तरह नाश हो चुका है। अरुण जेटली मरने में बहुत विलंब कर रहे हैं। और सबसे बड़ी बात कि सरकार पाकिस्तान के खिलाफ बहुत बड़ा ऐक्शन लेने जा रही है। यह जानकारी जिसने उसे दी, उसका नाम लिए बिना वह उसकी बात उद्धृत कर देता है कि ‘इससे सभी बहुत खुश होंगे’। यह भी कहता है कि मैं पूरी तरह से उसके शब्दों को बता रहा हूं। पार्थो को बताते समय उसने यह भी परवाह नहीं की कि उन दोनों की बातचीत लीक होकर पाकिस्तान तक पहुंच सकती है और हमारे वायुसेना को नुकसान भी हो सकता है। उसने तो जजों को बिकाउ तक बता दिया। मंत्री राज्यवर्द्धन ने पार्थो और उसके खिलाफ की गई दूरदर्शन के डीटीएच से संबंधित उसकी शिकायत को किनारे कर दिया है, यह भी उसने बताया। मंत्र झावड़ेकर किसी काम का नहीं है। इसकी सूचना भी उसने अपने गॉडफादर पार्थो को दे दी। यानी उसने विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका किसी को नहीं छोड़ा। मीडिया को तो उसने राज्य का हिस्सा बनाने का काम पहले से ही कर रखा है।(संवाद)