शिबू सोरेन विधानसभा के सदस्य नहीं हैं और विधानसभा मे आना उनके लिए समस्या बन रही थी। मुख्यमंत्री रहते हुए एक बार वे चुनाव हार चुके हैं, इसलिए एसी तरह की हार दुबारा पाने की आशंका से वे हमेशा ग्रस्त रहते हैं। बेटे हेमंत की सीट भी जीतने के लिए वे अपने आपको आश्वस्त नहीं पा रहे थे, इसलिए उन्होंने कांग्रेस की ओर से बात करे कुछ लोगों से समझौता किया कि वे भाजपा का साथ छोड़कर कांग्रेस से हाथ मिला लेंगे। कांग्रेस की पसेद का व्यक्ति मुख्यमंत्री बन जाएगा और वे खुद केन्द्र में मुत्री बन जाएंगे। उनका बेटा हेमंत राज्य में उपमुख्यमंत्री बन जाएगा। पाटीै के अध्यक्ष वे बने रहेंगे। इस तरह वे सांसद और उनके बेटे विधायक बने रहेंगे। हेमंत को मुख्यमंत्री मानने से इनकार कर रहे पार्टी नेता शायद उनके उपमुख्यमंत्री बनने को स्वीकार कर लें।

पर लगता है कि कांग्रेस की ओर से किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने उनसे बात नहीं की थी, क्योंकि कांग्रेस उस फार्मूले के तहत सत्ता की भागीदारी करने को तैयार नहीं हुई। कांग्रेस की झारख।ड मंे अपनी समस्या है। उसके राज्य स्तर के तमाम नेता पिछला विधानसभा चुनाव हार गए हैं। उसके 14 विधायकों में मात्र एक ही पुराने हैं, बाकी सभी नए हैं। इसके कारण सत्ता में साझीदारी के स्थिति में पुराने चेहरे राजनीति में अपनी चमक खो देेगे और पहली बार विधायक बने कांग्रेसी मंत्री बन जाएंगे। यही कारण है कि झारखंड का लोकल नेतृत्व पार्टी को सत्ता से दूर रखना चाहता है और शिबू सोरेन के बाद की राजनीति में कांग्रेस की बढ़त का भरोसा केन्द्रीय नेतृत्व को दिलाता है।

यानी कांग्रेस भी शिबू सोरेन के बाद की राजनीति पर नजर लगाए हुए है। श्री सोरेन का स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। यही कारण है कि अब वे भी खुद अपने बेटे हेमंत को अपनी जगह लाना चाहते हैं। इसी चक्कर में उन्होंने संसद में यूपीए सरकार के पक्ष में वोट डाल दिया। भाजपा को लगा कि अब झामुमों उससे अलग होने की घोषणा करेगा, इसलिए उसने अपनी तरफ से ही सोरेन सरकार से समर्थन वापसी की घोषणा कर डाली।

तो समस्या के मूल में शिबू के उत्तराधिकार का मामला है। अब हेमंत भाजपा के मुख्यमंत्री के तहत उपमुख्यमंत्री रहने को तैयार हैं। भाजपा को भी इससे कोई एतराज नहीं, लंेकिन समस्या यह है कि झामुमो में ही हेमंत का विरोध है। उसके 18 विधायक हैं। उनमें यदि 10 विधायक बगावत पर उतारू हो जाए, तो फिर हेमंत और भाजपा के मुख्यमंत्री दोनेां का खेल खत्म हो जाता है। 10 विधायक मिलकर हेमंत को नेता के पद से हट सकते हैं। गौरतलब है कि हेमंत विधायक दल के नेता हैं।

कांग्रेस भी झामुमों के आंतरिक असंतोष को बढ़ावा दे सकती है। हेमंत विरोधी झामुमो नेताओं के कांग्रेस के संपर्क में आने की चर्चा चल भी रही है। जाहिर है भाजपा के नेतृत्व में बनी कोई सरकार जिसमें हेमंत उपमुख्यमंत्री हों, ज्यादा दिनों ते चल नहीं सकती। सच तो यह है कि राज्य की राजनीति में अपने बेटे हेमंत को अपना उत्तराधिकारी बना देना गुरूजी के लिए आसान नहीं है। (संवाद)