उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह को हटाकर रामप्रकाश गुप्ता को मुख्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन वह इसलिए बनाया गया था, क्योंकि उन्होंने अपने कुछ बयानों से अटलबिहारी वाजपेयी की ही तौहीन कर दी थी। उसका खामियाजा उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़कर चुकाना पड़ा। मध्य प्रदेश में उमा भारती ने एक मुकदमे के कारण इस्तीफा दिया और उनकी जगह बाबूलाल गौर को मुख्यमंत्री बना दिया गया था। उमा भारती से वायदा किया गया था कि मुकदमे में वरी कर दिए जाने के बाद उन्हें फिर से मुख्यमंत्री का पद वापस कर दिया जाएगा। सुश्री भारती उस मुकदमे में बरी हो गई, पर उन्हें दुबारा मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। उसके बाद उनके असंतोष का दौर शुरू हुआ और उन्हें शांत करने के लिए बाबूलाल गौर को हटा तो दिया गया, लेकिन फिर भी उमा भारती की मुख्यमंत्री पद पर वापसी नहीं हुई। शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बना दिया गया और उमा भारती को असंतुष्ट छोड़ दिया गया।

बहरहाल, हम यहां उत्तराखंड की चर्चा कर रहे हैं। वहां भी मुख्यमंत्री विधानसभा के कार्यकाल के बीच में ही कई बाद बदले गए, पर वे विधायकों के असंतोष के कारण नहीं, बल्कि अलाकमान के निर्णयों के कारण बदले गए थे। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। यह सच है कि बहुत विधायक त्रिवेन्द्र सिंह रावत से असंतुष्ट थे। गैरसेन को कमिश्नरी बना दिया गया था। उसके कारण भी असंतोष के स्वर उठ रहे थे, लेकिन मुख्यमंत्री को हटाने का वह कारण नहीं हो सकता। असली कारण आने वाले साल में उत्तराखंड में होने वाले विधानसभा के चुनाव हैं, जिसे भारतीय जनता पार्टी किसी भी सूरत में नहीं हारना चाहती। लेकिन कोरोना संकट के कारण वहां के लोगों को भी भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। वहां की एक बड़ी आबादी तीर्थाटन पर निर्भर है और कोरोना से तीर्थाटन सहित सभी प्रकार के पर्यटन उद्योग की कमर तोड़ दी है। कोरोना संकट से भारत पूरी तरह तो नहीं बच सकता था, क्योंकि दुनिया का कोई भी देश इससे नहीं बचा, लेकिन यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सही समय पर सुविचारित निर्णय लिया होता, तो देश में इतना बड़ा संकट हरगिज नहीं पैदा होता। हमारे पड़ोसी पाकिस्तान और बांग्लादेश भी कोरोना से उतना प्रभावित नहीं हुआ है, जितना हमारा देश हुआ है। प्रत्येक 10 लाख की आबादी पर कोरोना पीड़ितों की संख्या हो या मौत की संख्या- दोनों मामले में बांग्लादेश और पाकिस्तान की स्थिति भारत से बेहतर है। इसका कारण यह है कि वहां की सरकारों ने इस संकट को ज्यादा समझदारी के साथ संभालने की कोशिश की, लेकिन मोदी सरकार पहले तो कान में तेल डाल कर पड़ी रही और ‘नमस्ते ट्रंप’ जैसे आयोजनों से कोराना वायरस का आयात करती रही। इसके अलावा वह मध्यप्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराकर बीजेपी की सरकार बनाने में व्यस्त रही। दिल्ली में केजरीवाल के हाथों अपनी हार का बदला लेती रही और फिर जब लॉक डाउन घोषित किया, तो उसके पास उन विस्थापित मजदूरों के लिए कोई योजना ही नहीं थी, जो अपने घरों से सैंकड़ों किलोमीटर दूर महानगरों में रह रहे थे। जाहिर है, कोरोना की मार भारत पर कुछ ज्यादा ही पड़ गई।

इस मार का शिकार उत्तराखंड के लोग भी हैं। देश में बढ़ती महंगाई के वे शिकार भी हैं और आय में आई कमी की मार भी वे झेल रहे हैं। इसके कारण बीजेपी सरकारों के खिलाफ भी वे हो गए हैं। उत्तराखंड में दो ही पार्टियों का मुख्य रूप से वजूद है और एक का पतन दूसरे के उत्थान के रूप में सामने आता है। लिहाजा भाजपा का पतन कांग्रेस के उत्थान का कारण बन सकता है और भारतीय जनता पार्टी को यह मंजूर नहीं कि अगले साल वहां कांग्रेस की सरकार आ जाए। इसलिए वह लोगों की बदहाली का पूरा ठीकरा त्रिवेन्द्र सिंह रावत के सिर पर फोड़ने की रणनीति पर चल रही है। उसके प्रचार तंत्र लोगों को यह समझाने की कोशिश कर रहा है कि मोदीजी तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं, कमी त्रिवेन्द्र सिंह रावत की सरकार में थी और उस सरकार को हटा दिया गया है। इसलिए लोग बीजेपी का विरोध करना छोड़ दें और नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में उत्तराखंड आ रहे स्वर्ण युग की प्रतीक्षा करें।

उत्तराखंड इस मायने में उत्तर प्रदेश और बिहार से अलग है कि वहां किसी गैर भाजपाई नेता के खिलाफ व्यापक जन असंतोष नहीं है। उत्तर प्रदेश में मुलायम परिवार और मायावती के खिलाफ उनकी जातियों के बाहर के लोगों में जबर्दस्त असंतोष है, जिसका फायदा भाजपा को चुनावों मे मिल जाता है। उसी तरह बिहार में लालू यादव के खिलाफ उनकी जाति के बाहर के लोगों में व्याप्त असंतोष का लाभ भी भाजपा को वहां मिल जाता है। नीतीश कुमार को भी उसी का फायदा मिलता है, लेकिन उत्तराखंड में मुकाबला कांग्रेस और भाजपा के बीच में ही होता है। यही कारण है कि अगले साल के विधानसभा चुनाव में भाजपा को उत्तर प्रदेश में सरकार खोने का उतना डर नहीं है, जितना डर उत्तराखंड में है। इसलिए त्रिवेन्द्र सिंह रावत का बलि का बकरा बनाकर भारतीय जनता पार्टी अपनी केन्द्र सरकार की विफलता को छिपाने की कोशिश कर रही है और इस कोशिश के द्वारा वह अगला चुनाव फतह करना चाह रही है। उसे उम्मीद है कि तबतक टीकाकरण के कारण तीर्थाटन को बढ़ावा मिलेगा और वहां तीर्थाटन व्यवसाय से जुड़े लोगों की जिंदगी बेहतर होगी। फिर मोदी की जयजयकार करते हुए लोग एक बार फिर भाजपा को जिता देंगे। यह आकलन सही है या गलत, इसका पता तो अगले साल ही लगेगा।(संवाद)