लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादा मायने कोलकाता का चुनाव रखता है। यह राज्य की राजधानी है। यहां कांग्रेस और तृणमूल गठबंधन की जीत का मतलब है पूरे राज्य में वाम मोर्चा के लिए मातमण् क्योंकि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए यह माहौल तेयार करने वाला साबित होगा। पर यहीं कांग्रेस और तृणमूल को गठबंधन टूट गया है। वाममोर्चे के लिए इससे अच्छी बात और क्या हो सकती है?
इसमें कोई शक नहीे कि गठबंधन नहीं होने का सबसे बड़ा कारण ममता बनर्जी का अड़ियल रवैया है। वे गठबंधन को उसी तरह चलाना चाहती हैं, जिस तरह से वह बपनी पार्टी चला रही हैं। वह कांग्रेस को 25 से ज्यादा सीटें देने को तैयार नहीं थी, जबकि कांग्रेस 50 सीटों पर चुनाव लड़ना चाह रही थीं। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 12 सीटों पर जीत हासिल हुई थींख् जबकि 50 सीटों पर ममता की पार्टी जीती थी। 75 सीटों पर चुनाव जीतकर वाममोर्चा ने अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन किया था।
यह सच है कि समझौता नहीं होने के लिए मुख्य रूप से ममता को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वाममोर्चा के खिलाफ मुख्यमंत्री पद की दावेदार ममता ही हैं। उन्हे यह भी पता है कि मुख्यमंत्री बनने के लिए उन्हें कांग्रेस का समर्थन चाहिए। इसलिए उनसे उम्मीद की जाती थी कि वह ज्यादा समझदारी दिखाएं और समझौतावादी रुख भी अपनाए। लेकिन सिक्के का एक दूसरी पहलू भी है। यदि ममता बनजीै ने समझौतावादी रुख अपनाया होता, तब भी शायद गठबंणन में परेशानी होती। इसका कारण यह है कि कांग्रेस के नेता भी इस बार अड़ियल रुख अपना रहे थे। पश्चिम बंगाल कांग्रेस में सबसे बड़े नेता प्रणब मुखर्जी और ममता बनर्जी के बीच भी 36 का आंकड़ा चल रहा है। सच तो यह है कि दोनेा एक दूसरे को पसंद नहीं करते। जिन लोगांे के कारण ममता बनर्जी कांग्रेस से बाहर हुईं, उनमें से प्रणब मुखर्जी भी एक हैं।
लेकिन जब से ममता बनर्जी कांग्रेस से बाहर हुई हैं, उस समय से ही राज्य में असली कांग्रेस के रूप में उन्हीं की तृणमूल कांग्रेस प्रत्येक चुनाव में उभर कर सामने आ जाती है। मूल कांग्रेस का जनाधार सिकुड़ता जा रहा है। वामपंथी दलों के खिलाफ लड़ाई में ममता बनर्जी और उनकी पार्टी ही हमेशा आगे निकलती दिखाई पड़ती है। नंदीग्राम और सिंगूर में भी वाम मोर्चा के खिलाफ संघर्ष ममता बनर्जी कर रही थीं, कांग्रेस तो उस संघर्ष के आसपास भी नहीं दिखाई पड़ रही थी। यही कारण है कि लोगों के बीच में मजबूती ममती बनर्जी की बढ़ी है, कांग्रेस की नहीं। ममता बनजी को इस बात का अहसास है। लेकिन उन्हे इस बात का भी अहसास होना चाहिए कि कांग्रेस से मजबूत होने के बावजूद वे विधानासभा चुनाव में बिना कांग्रेस का साथ लिए वाम मोर्चा को शिकस्त नहीं दे सकती।
ममता बनर्जी के कांग्रेस के खिलाफ गुस्से का एक कारण सिलीगुड़ी में कांग्रेस द्वारा किया गया विश्वासघात भी है। वहां कांग्रेस ने वामदलो की सहायता से वहां के नगर निकाय पर कब्जा कर लिया था। अब ममता बनर्जी चाहती हैं कि वह कांग्रेस को उसकी जबह दिखा दे और उसे यह जता दें कि वह राज्य की राजनीति में हासिए पर चली गई है। (संवाद)
कांग्रेस तृणमूल के तकरार से वाममोर्चा को फायदा
कांग्रेस पार्टी हासिए पर चली जाएगी
अमूल्य गांगुली - 2010-05-07 10:45
पश्चिम बंगाल में शहरी निकायों के चुनावों में कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन के विफल हो जाने का फयदा वाम पार्टियों को हागा। अगले 30 मई को राज्य के 81 शहरी निकायो का चुनाव होने वाला है और उसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव है कोलकाता नगर निगम का। जिस तरह से वामपंथी पार्टियों की लोकप्रियता गिरती जा रही है, उसे देखते हुए यही कहा जा सकता है कि यदि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच गठबंधन हुआ, तो वाम मोर्चा का सभी शहरों और महानगरों में सूफड़ा साफ हो जाएगा।