कहने की जरूरत नहीं कि नरेन्द्र मोदी भाजपा की जीत की एकमात्र गारंटी हैं। वे अच्छा भाषण देते हैं। भाषण देते समय वे लोगों की नब्ज को पकड़ते हैं और उनके भाषणों को बार बार न्यूज चैनल दिखाकर उसकी प्रभावशीलता को कई गुना बढ़ा देते हैं। उसका असर यह होता है कि उनके विरोधी भी उनका मुरीद होने लग जाते हैं। सबसे बड़ी बात यह होती है कि फ्लोटिंग वोटर जिनका किसी खास पार्टी या विचारधारा से लगाव नहीं होता, मतदान के ठीक पहले मोदी के भाषणों के प्रभाव में भाजपा को वोट देने के लिए तैयार हो जाते हैं।
अपने इस करिश्मे ( जो मीडिया द्वारा और भी बढ़ा दिए जाते हैं) का फायदा पहुंचाने के लिए पश्चिम बंगाल के चुनाव में 8 चक्रों में मतदान की तारीखें तय कर दी गईं। ममता बनर्जी ने इसका विरोध किया और कहा कि मतदान जल्द से जल्द संपन्न कराए जाने चाहिए, लेकिन उनकी बात नक्कारखाने मे तूती की आवाज साबित हुई। पर पश्चिम बंगाल में कोरोना के विस्फोट ने ममता बनर्जी को सही साबित कर दिया है और शेष 4 चक्रों के मतदान के लिए उन्हें एक बड़ा मुद्दा थमा दिया है, जिसकी काट करने न तो नरेन्द्र मोदी के लिए संभव है और न ही उनके भोंपू बने गोदी मीडिया के लिए।
प्रत्येक बीतते दिनों के साथ पश्चिम बंगाल में देश के अन्य हिस्सों की तरह कोरोना भयंकर से भयावह रूप प्राप्त करता जा रहा है। इसने ममता बनर्जी को कई मायनों मे बड़े बड़े हथियार उपलब्ध करा दिए हैं। सबसे पहले तो वे भारतीय जनता पार्टी को लंबी अवधि वाले चुनाव अभियान के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं, जिसके कारण कोरोना और फैल रहा है, क्योंकि रोड शो और चुनावी सभाओं के दौरान सोशल डिस्टेंसिंग संभव नहीं हो पाता है। इसके अतिरिक्त कोरोना के बढ़ते मामलों के लिए भी भारतीय जनता पार्टी को दोष देने में वह पीछे नहीं हैं। वे कह रही हैं, और सही ही कह रही हैं, कि भारतीय जनता पार्टी अन्य राज्यों से अपने नेताओं और कार्यकर्त्ताओं को पश्चिम बंगाल चुनाव प्रचार कराने के लिए ला रही हैं और बाहर से आए वे लोग ही बंगाल के लोगों को कोरोना का संक्रमण प्रदान कर रहे हैं।
मतदान के 8 चक्रों का ठीकरा तो भारतीय जनता पार्टी भारत के निर्वाचन आयोग के सिर पर फोड़ सकती है, लेकिन वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती कि अन्य प्रदेशों से लाखों कार्यकर्त्ताओं और हजारों छोटे बड़े कार्यकर्त्ताओं को उसने बंगाल के चुनाव में झोंक रखा है। मोदी और अमितशाह की सभाओं में बड़ी भीड़ दिखाने के लिए वहां न केवल पड़ोसी, उड़ीसा, झारखंड, बिहार और असम से लोगों को ढोकर लाया जाता है, बल्कि उत्तर प्रदेश और दिल्ली से भी भाजपा के लोग वहां पहुंचे हुए हैं। भाजपा के इस जमावड़े पर बढ़ते कोरोना मामलों का दोष ममता बनर्जी देश की सत्तारूढ़ पार्टी पर डाल रही है और लोग इसमें सच्चाई का अंश देख रहे हैं। इसका असर उन फ्लोटिंग मतदाताओं पर पड़ना स्वाभाविक है, जिन्हें आकर्षित करने के लिए मतदान 8 चक्रों में कराए जाने का निर्णय किया गया था।
दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी के पास अब मुद्दों का अभाव हो गया है। उनके नेताओं के तरकश में जितने तीर थे, वे सब छोड़े जा चुके हैं। ममता पर भतीजावाद का आरोप घिसा-पिटा पुराना पड़ चुका है। कट मनी और तोलाबाजी सुनते सुनते भी लोग थक चुके हैं। जितना सांप्रदायिक धु्रवीकरण की कोशिश भाजपा कर सकती थी, उससे ज्यादा पहले ही कर चुकी है। ममता बनर्जी पर निजी हमले भी बहुत हुए हैं, लेकिन यदि पश्चिम बंगाल के बाहर के लोग वहां की एक महिला नेता पर ज्यादा हमले करेंगे, तो उसकी उलटी प्रतिक्रया भी हो सकती है। जाति का खेल भाजपा को जितना खेलना था, वे खेल चुकी है।
इसलिए मोदी सहित अन्य नेताओं के पास अब कहने के लिए कुछ बचा नहीं है और उन्होंने जो कुछ कहा है, उसे चीख चीख कर गोदी मीडिया पहले ही लोगों के पास पहुंचा चुका है। इसलिए मोदी की सभा में जाने के पहले लोगों के पास यह जानने की उत्सुकता नहीं रह गई है कि मोदीजी क्या बोलेंगे। अब वे जो भी बोलेंगे, वह पुरानी बात ही बोलेंगे, जिसे जनता पहले ही सुन चुकी है। दूसरी तरफ ममता बनर्जी को कोरोना विस्फोट के रूप में एक नया मुद्दा मिल गया है। वह कह रही हैं कि उन्होंने तो इस बीमारी पर नियंत्रण कर लिया था और बंगाल में 100 से भी कम लोग प्रतिदिन संक्रमित हो रहे थे, लेकिन उस बीच लोगों को टीका देकर हमेशा के लिए सुरक्षित करने की जिम्मेदारी केन्द्र सरकार की थी, लेकिन केन्द्र सरकार ने उसे पूरी नहीं की। राज्य सरकार पैसे देकर टीका खरीदना चाहती थी, ताकि लोगों को टीका लगाए जा सके, लेकिन केन्द्र ने पैसे लेकर भी बंगाल सरकार को टीका नहीं दिए। कूच बिहार में सीआइएसफ द्वारा गोली चलाने का एक नया मुद्दा भी ममता को मिल गया है। उस गोली कांड का समर्थन कर भारतीय जनता पार्टी फंस गई है। निर्वाचन आयोग ने ममता बनर्जी के प्रचार पर 24 घंटे की रोक लगाकर उन्हें एक और मुद्दा दे दिया है, जिसका फायदा उन्हें उसी तरह मिलेगा, जैसा 1995 के चुनाव में बिहार में लालू यादव को मिला था। उस समय शेषण लालू को नोटिस भेजते थे और लालू उस नोटिस को ही मुद्दा बनाकर जनता की सहानुभूति प्राप्त करते थे।
जाहिर है, मतदान में विलंब अब ममता के पक्ष में जा रहा है और भारतीय जनता पार्टी के आकलन गड़बड़ाते जा रहे हैं। (संवाद)
कोराना के बढ़ते प्रकोप के बीच पश्चिम बंगाल का चुनाव
भाजपा का चुनावी आकलन गड़बड़ाता जा रहा है
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-04-16 10:55
पश्चिम बंगाल के चुनावों को आठ चक्रों में कराने को भारतीय जनता पार्टी का फैसला उसके खिलाफ ही जा रहा है। यह सच है कि मतदान आठ चक्र में करवाने का फैसला औपचारिक रूप से भारत के निर्वाचन आयोग का है, लेकिन किसी को इसमें संदेह नहीं कि यह फैसला आयोग ने भाजपा की इच्छानुसार ही लिया था। इसके पीछे भारतीय जनता पार्टी का आकलन यह था कि लंबे समय तक चुनाव प्रचार के कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अधिक से अधिक सभाओं में भाषण करने का मौका मिलेगा और अपने भाषणों से लोगों को मोहित कर वे भारतीय जनता पार्टी की जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे।