दलितों के प्रति नए दृष्टिकोण के साथ, समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनावों में चुनावी लाभ के लिए राम मनोहर लोहिया, डॉ बी आर अम्बेडकर और बी पी मंडल के अनुयायियों को एक मंच पर लाने की उम्मीद कर रही है।

समाजवादी पार्टी के नेताओं को यह अहसास हो चुका है कि बहुजन समाज पार्टी पतन की ओर बढ़ रही है। पूर्व मुख्यमंत्री मायावती भी राजनीतिक हलकों में अपनी प्रासंगिकता लगातार खो रही हैं। 2012 के विधानसभा चुनावों में बीएसपी सत्ता से बाहर हो गई थी। उसके बाद पार्टी ने लगातार हर चुनाव में वोट शेयर में गिरावट देखी।

बसपा के उन वरिष्ठ नेताओं का पलायन हुआ है जो 1984 में गठन के बाद पार्टी से जुड़े थे। जिन लोगों ने संस्थापक कांशीराम के अधीन काम किया वे अब पार्टी के साथ नहीं हैं। बड़ी संख्या में दलित नौकरशाह, जो बसपा के समर्थन आधार का हिस्सा थे, अब मायावती के साथ नहीं हैं और उन्होंने एक अलग समूह बना लिया है और मुख्य विपक्ष के रूप में समाजवादी पार्टी की ओर देख रहे हैं।

समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने राम मनोहर लोहिया और बी पी मंडल की प्रतिमाओं पर दीप लगाए। अखिलेश यादव ने दलितों के मुद्दों को उठाने और उन्हें पर्याप्त राहत प्रदान करने के लिए बाबा साहेब वाहिनी की स्थापना की भी घोषणा की। अखिलेश यादव 2022 विधानसभा चुनावों के मद्देनजर दलित मतदाताओं में पैठ बनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस द्वारा किए जा रहे प्रयासों से अवगत हैं।

यहां यह उल्लेखनीय होगा कि पहली बार काशीराम ने समाजवादी पार्टी की मदद से लोकसभा के लिए उपचुनाव लड़ा और जीत हासिल की। 1993 में फिर से समाजवादी पार्टी ने बसपा से हाथ मिलाया और सरकार बनाई। लेकिन 2 जून, 1995 को मायावती पर लखनऊ में राज्य अतिथि गृह पर हमले के कारण समाजवादी पार्टी और बसपा कट्टर विरोधी बन गए।

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए अखिलेश यादव ने पहल की और कट्टर प्रतिद्वंद्वी बसपा के साथ हाथ मिलाया लेकिन यह प्रयोग बुरी तरह विफल रहा। चुनाव के तुरंत बाद, मायावती ने अखिलेश यादव को अंगूठा दिखा दिया और गठबंधन की एकतरफा समाप्ति की घोषणा कर दी।

उनके इस व्यवहार से हैरान अखिलेश यादव ने मायावती के समर्थन के आधार को अपना बनाने का प्रयास शुरू कर दिया। वह मायावती के समर्थकों के एक बड़े हिस्से को अपने साथ लाने में सफल रहे। मायावती पहले से ही अपनी लोकप्रियता खोती जा रही थी।

पिछले चार वर्षों के दौरान, मायावती ने कभी भी योगी आदित्यनाथ सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों के विरोध में सड़क पर प्रदर्शन नहीं किया।

इसके विपरीत, मायावती को प्रवासी मजदूरों के मुद्दों पर मोदी सरकार और यूपी सरकार की हां में हां मिलाने के लिए जाना जाता है। एक समय तो वह भारतीय जनता पार्टी की प्रवक्ता की तरह व्यवहार कर रही थी। प्रियंका गांधी द्वारा प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा को लेकर भाजपा पर किए जा रहे हमले का जवाब मायावती भाजपा प्रवक्ताओं से पहले दे दिया करती थीं।

इन परिस्थितियों में, अखिलेश यादव ने महसूस किया कि दलित दीपावली और बाबा साहेब वाहिनी के माध्यम से दलितों से संपर्क करने का सही समय है। सपा नेता आगामी विधानसभा चुनाव में मायावती के पतन का लाभ उठाकर दलितों में पैठ जमाने के लिए सभी तरह के प्रयास कर रहे हैं। (संवाद)