समूह-20 के देशों में आस्ट्रेलिया के बाद भारत दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है जिसने नीतिगत दरें बढा़ई हैं।

यह समस्या सभी के लिए चिंताजनक रही है क्योंकि खाद्य मुद्रास्फीति का प्रभाव विनिर्माण और सेवा जैसे अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ रहा है। गैर खाद्य पदार्थों में मुद्रास्फीति नवंबर, 2009 के -0.4 फीसदी से बढक़र इस वर्ष मार्च में 4.7 फीसदी हो गयी।

महत्त्वपूर्ण ब्याजदरों में 0.25 प्रतिशत मात्र की मामूली वृद्धि की गयी जो प्रदर्शित करता है कि उच्च मुद्रास्फीति दर पर काबू पाने में आरबीआई की काफी दिलचस्पी है और वह साथ ही यह सुनिश्चित करना चाहता है कि वैश्विक मंदी के दौरान वित्तीय और मौद्रिक पैकेजों से उत्पन्न वृद्धि की रपऊतार भी प्रभावित न हो। जैसा कि वित्त मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने कहा, न्न यह हमारी अर्थव्यवस्था की आवश्यकताओं का परिपक्व और संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है। अर्थव्यवस्था में मुद्रा आपूर्ति पर इसका अच्छा असर पड़ेगा। न्न

इसके साथ ही यह भी स्पष्ट हो गया है कि निम्न दरों का सुखद समय बीत गया है और हमें बाजार आधारित अर्थव्यवस्था के लिए तैयार होना चाहिए।

आरबीआई द्वारा निर्धारित नयी दरों, जो महीने में दूसरी बार बढायी गयी हैं, के अनुसार रेपो दर को 5.25 फीसदी तक बढा़ दिया गया है। रेपो दर वह दर है जिसपर रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को मुद्रा उधार देता है। रिजर्व रेपो दर भी 3.75 फीसदी हो गयी है। यह वह दर है जो बैंक अपने डिपोजिट के लिए चुकाता है। नकद रेपो दर भी बढा़कर 6 फीसदी कर दी गयी है। नकद रेपो दर बैंक डिपोजिट का वह प्रतिशत है जो उसे हमेशा नकद के रूप में रखना पड़ता है। इन सभी कदमों से अर्थतंत्र में मुद्रा की आपूर्ति घट जाएगी और इस प्रकार उच्च मुद्रास्फीति दरों पर दबाव बढे़गा।

ये उपाय अर्थतंत्र से 12,500 करोड रूपए सोख लेंगे। सौभाग्य से यह फिलहाल त्रऽणदरों को बढा़ने नहीं जा रहा है क्योंकि इस वृद्धि के असर को निष्प्रभावी बनाने के लिए अभी प्र्याप्त तरलता है। फिलहाल त्रऽण मंहगा नहीं होने जा रहा है जो वृद्धि पर असर डाल सकता था।

आरबीआई को पूरा विश्वास है कि मौजूदा वित्तीय वर्ष में मुद्रास्फीति घटकर 5.5 फीसदी तक आ जाएगी। हालांकि श्री मुखर्जी को इसके कुछ और नीचे आने का विश्वास है। उनका अनुमान है कि इस वित्तीय वर्ष के अंततक यह सिर्फ चार फीसदी रह जाएगी। वर्तमान वित्तीय वर्ष में वृद्धिदर 8.5 फीसदी और अगले वित्तीय वर्ष में 9 फीसदी रहने का अनुमान है।

हालांकि इसमें कुछ जोखिम भी है। पहली बात यह है कि इस वर्ष मानसून कैसा रहता है। यदि वर्षा अच्छी हुई तो कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। दूसरी बात है कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों का क्या रूख रहता है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों पर प्रभाव पड़ता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था जिस गति से वृद्धि करेगी, उसका हमारी वृद्धि पर भी प्रभाव पड़ेगा। मजबूत होते रूपए ने पहले से ही निर्यात क्षेत्र को चिंता में डालना शुरू कर दिया है।

इस बात में कोई संदेह नहीं है कि अर्थव्यवस्था के मंदी के उबरने की गति तेज है। एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था तेज गति से वृद्धि के लिए तैयार है और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में केवल चीन हमसे अधिक तेजी वृद्धि कर रहा है। रिजर्व बैंक के गवर्नर डॉ. डी सुब्बाराव ने कहा है, "हमें नीतिगत दरों को सामान्य करने के लिए अंशशोधित ढंग से आगे बढऩे की जरूरत है। ऊंची छलांगों के बजाय छोटे छोटे कदम उठाना बेहतर होगा।"

इस बात के संकेत हैं कि मुद्रास्फीति को थामने के लिए महत्पूर्ण ब्याज दरों की समय समय पर समीक्षा होने जा रही है क्योंकि मुद्रास्फीति सरकार की सबसे बड़ी चिंता है। मौद्रिक नीति की पहली तिमाही समीक्षा 27 जुलाई को होने वाली है।

वित्त मंत्री ने कहा है, न्न मुझे इस बात का डर है कि कुछ समय तक इससे (मुद्रास्फीति से) जूझना पड़ेगा। हालांकि खाद्य पदार्थों पर मुदास्फीति का दबाव घटने लगा है। न्न

लेकिन यह भी देखना पड़ेगा कि मौद्रिक नीति कितना कुछ कर सकती है। इसके साथ ही अन्य वित्तीय उपाय उठाने की जरूरत है। इसके अलावा अब आपूर्ति पक्ष और बेहतर वितरण ऐसे पहलू हैं जो अर्थव्यवस्था का अधिक ख्याल रख सकते हैं।

ऐसे में हमारे सम्मुख मध्यमार्ग ही एकमात्र विकल्प है और आरबीआई ने वही अपनाया है।