लेकिन नरेन्द्र मोदी की आत्मनिर्भरता का मतलब कुछ और है। अर्थशास्त्र का एक सामान्य विद्याथी भी बतला देगा कि आत्मनिर्भरता से उनका मतलब बाजार पर निर्भरता से है। मतलब सरकार आर्थिक प्रशासन की सारी जिम्मेदारियों से अपने को मुक्त कर लेगी और सबकुछ बाजार भरोसे छोड़ दिया जाएगा। अपने इसी लक्ष्य की ओर बढ़ते हुए वे सारी सरकारी कंपनियों को एक के बाद वे बेचते जा रहे हैं। रेलवे स्टेशनों को बेचा जा रहा है। रेल रूट को बेचा जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने तो बस स्टैंड तक को बेचना शुरू कर दिया था। हाई वे को बेचा जा रहा है। आश्चर्य नहीं नदियों के सार्वजनिक घाटों तक को बेच दिया जाय और सरकारी पार्कों को भी बेच दिया जाय। बैंकों को बेचने की घोषणा तो सरकार ने कर ही दी है। बीमा कंपनियों को भी वह बेचने वाली है। उसने चार श्रमिक कोड बनाए हैं, जिनके कारण मजदूरों की हालत बंधुआ मजदूरों की हो जाएगी। उसने तीन कृषि कानून बनाए हैं, जिनके कारण किसान अपने खेतों में ही मजदूर बन जाएंगे और बाद में उनके खेत भी उनके हाथों से निकल जाएंगे।

यह सब करने के लिए सरकार ने कोविड आपदा के समय को चुना है। लोग इस संकट के जूझ रहे हैं और सरकार सारी संपत्तियों को बेच देने के एजेंडे पर लगातार बढ़ती जा रही है। अभी अभी केन्द्रीय कैबिनेट ने आइडीबीआई बैंक में अपनी हिस्सेदारी बेच देने का फैसला किया। इस तरह से सबकुछ बिक जाएगा और फिर बाजार का साम्राज्य हो जाएगा। सैद्धांतिक रूप से उपभोक्ता बाजार के सम्राट होते हैं, लेकिन उपभोक्ता वही होते हैं, जिनके पास पैसे होते हैं। सबकुछ बाजार में हो, लेकिन उसे खरीदने के लिए पैसे भी तो चाहिए और जिनके पास पैसे नहीं हैं, वे बाजार से बाहर हो जाते हैं। अब कोई नरेन्द्र मोदी से पूछे कि जो बाजार से बाहर हो जाएंगे उनके लिए आत्मनिर्भरता का क्या मतलब होगा? मोदी की नीतियां आथिक विषमता को बढ़ावा देने वाली भी हैं। बढ़ती विषमता के माहौल में यह संभव है कि देश की 50 फीसदी आबादी के पास बाजार को ऑफर करने के लिए कुछ हो ही नहीं। फिर उनकी आत्मनिर्भरता का क्या मतलब है?

यह तो बाजार की बात हुई, जहां का राजा वही है, जिसके पास पैसा है, लेकिन बाजार की एक नाजायज संतान भी है, जिसे काला बाजार कहते हैं। यह काला बाजार किसी की चीज की आपूर्ति कम होने या आपूर्ति सही रहने के बावजूद जमाखोरी किए जाने से पैदा होता है। यदि सरकार का नियंत्रण हटा तो कालाबाजार बाजार का भी बाप बन जाता है। फिर तो यदि आपके पास भुगतान की क्षमता हो, तो भी आपको उस काले बाजार से आपका मनचाहा सामान मिल ही जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। आज हम काले बाजार का यह नंगा नाच दे रखे हैं।

कोरोना संकट के बीच इस बीमारी के इलाज से जुड़ी चीजों की कालाबाजारी आज चरम पर है। ऑक्सीजन की कमी के कारण लोग मर रहे हैं और इसकी कालाबाजारी घड़ल्ले से हो रही है। यदि आपके पास पैसा है, पर कालाबाजार तक पहुंच नहीं, तो वह पैसा भी आपको जिंदगी नहीं दे सकता। ऑक्सीजन ही नहीं, ऑक्सीजन के खाली सिलिंडरों तक की जमाखोरी हो चुकी है। बिहार के एक भाजपा सांसद ने तो एंबेलेंस की ही जमाखोरी कर रखी है। रेमदेसिविर और फेबीफ्लू जैसी दवाइयों की भी जमकर कालाबाजारी हो रही है। कालाबाजारी नकली दवाइयों को असली बताकर भी बेच रहे हैं और बाजार के उपभोक्ता दोनों तरफ से लुटे जा रहे हैं। कर्नाटक में तो पता चला कि अस्पताल के बेडों की भी कालाबाजारी हो रही है। ऐसा अन्य राज्यों में भी बड़े पैमाने पर चल रहा है। यह सब हो रहा है आत्मनिर्भरता के नाम पर। आत्मनिर्भरता से मतलब है कि अब सरकार की कोई भूमिका नहीं है। आप जानिए और आपका काम जाने। आप में व्यवस्था में टिकने का दम है, तो टिकिए नही ंतो समाप्त हो जाएगा। यह ‘सर्ववाइवल ऑफ द फिटेस्ट’ का जंगल राज है।

जी हां, नरेन्द्र मोदी आत्मनिर्भरता के नाम पर देश की उसी दिशा में ले जा रहे हैं। अभी वैक्सिन की कीमतों का मामला सुप्रीम कोर्ट में है, जिसमें मोदी सरकार ने वैक्सिन के मामले को भी निजी क्षेत्र यानी बाजार पर छोड़ देने के लिए कहा है और अपील की है कि सुप्रीम कोर्ट उसमें हस्तक्षेप न करें। अभी तक कोरोना वैक्सिन के वितरण का मामला केन्द्र और राज्य सरकारों के पास ही है और इसमें उपभोक्ताओं से पैसे नहीं लिए जा रहे हैं, लेकिन जैसे ही मोदी सरकार द्वारा घोषित व्यवस्था लागू हुई, यहां भी सबकुछ ऑक्सीजन संकट जैसा ही हो सकता है।

जब कोई बड़ा संकट आता है, तो सरकार की भूमिका बढ़ जाती है, क्योंकि बाजार इस तरह के संकट का समाधान कर ही नहीं सकता। संकट के समय तो बाजार कालाबाजार पैदा करता है। दुनिया के सभी देशों का आर्थिक इतिहास यही बताता है कि आपदा में सरकार ही काम आती है और यदि सरकार ने अपनी भूमिका नहीं निभाई, तो संकट और भी बढ़ता जाता है और जान मान की जबर्दस्त तबाही होती है। लेकिन नरेन्द्र मोदी इसे मानने को तैयार ही नहीं और आत्मनिर्भरता के नाम पर सबकुछ बेचे जा रहे हैं और बाजार के हवाले किए जा रहे हैं। आज जो हम भारी अव्यवस्था और भयंकर जानमाल की हानि देख रहे हैं, क्या वही हमारे देश की नियति है। (संवाद)