शशि थरुर पर अपनी महिला मित्र को अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर व्यावसायिक लाभ पहुंचाने का आरोप है तो ललित मोदी पर राशि के हेरफेर से लेकर अपने चहेतों को टीमों का स्वामित्व एवं अन्य ठेके देने का। क्रिकेट प्रशासन एवं प्रबंधन से जुड़े लोग ही यह आरोप लगा रहे हैं कि मोदी ने इसके लिए मनमाने नियम बनाए और जहां आवश्यकता हुई नियमों का भी उल्लंघन किया। कुल मिलाकर पूरा मामला आईपीएल नाम के आयोजन के पीछे प्रोफेशनल व्यावसायिकता के नाम पर अधिक से अधिक धन बटोरने का है। इसी से यह साफ हो जाता है कि आईपीएल खेल आयोजन न होकर कुछ और है।

हालांकि आईपीएल के चमचामते और हमको आपको कुछ क्षण के लिए मदमस्त करने वाले ग्लैमर से परिपूर्ण सतह के नीचे का विकृत सड़ांध सामने आने के बावजदू देश में एक बड़ा वर्ग इसमें पहले के समान ही रोमांच का अनुभव करता लुत्फ उठाता रहा। ऐसे लोगों की संख्या भी कम नहीं हैं जो आईपीएल को श्रेष्ठतम आयोजन मानते हैं। वास्तव में इससे देश के मनोविज्ञानक का प्रमाण मिलता है। क्रिकेट एक खेल के रुप में हमारे देश में कब से है इसे लेकर इतिहासकारों मंे एक राय नहीं है। किंतु यह माना जाता है कि 1792 में कोलकाता में क्रिकेट क्लब की स्थापना के साथ इसकी औपचारिक शुरुआत हुई। उस समय के माहौल का गहराई से विश्लेषण करने वाले जानते हैं कि देश के एक वर्ग में अंग्रेजों की जीवन शैली के प्रति गहरा आकर्षण पैदा हो गया था एवं वे अंग्रेजी भाषा सीखकर उनके समान जीवन शैली अपनाकर शेष समाज से अपने को श्रेष्ठ एवं संभ्रांत साबित करने की कोशिश कर रहे थे। इसी कोशिश के तहत क्रिकेट की ओर भी इस वर्ग ने कदम बढ़ाया था।

अगर आज 218 वर्षों बाद की स्थिति की उस समय से तुलना करिए तो आपको दूसरे रूप में वही तस्वीर कई अन्य विकृतियांे के साथ ज्यादा भयावह रूप में नजर आएगी। अचानक कल तक क्रिकेट को समय बर्बाद करने वाला एवं औपनिवेशिक काल का खेल कहने वाले राजनेता क्रिकेट के साथ अपने को जोड़ते गए हैं। क्यों? बस, कारण एक ही रहा, उन्हें किसी से कम प्रगतिशील और संभ्रांत न माना जाए। भाजपा जैसी पार्टी के नेताओं का क्रिकेट से जुड़ना सामान्य घटना नहीं है। हालांकि लंबे समय की गुलामी से संघर्ष करने वाले और अंग्रेजों के प्रतीक चिन्हों को नकारने वाले देश के नेताआंे का ऐसा व्यवहार ह्दयविदारक था, फिर भी यहां तक की स्थिति को शत-प्रतिशत भयावह नहीं माना जा सकता। किंतु नई अर्थनीति एवं भूमंडलीकरण के साथ तो जैसे सारी मान्यताएं, मर्यादाएं, वर्जनाएं,.... विघटित हो गईं। एक- एक आयोजन को बाजार पूंजीवादी भूमंडलीकरण के आईने में देखने वाले या तो प्रभावी स्थानों पर विराजमान हो गए या फिर इन प्रभावी लोगों को लोभ, लालच, मोह, लिप्सा आदि हथियारों का प्रयोग कर प्रभावित करने वाले सामने आ गए। कुल मिलाकर आईपीएल ऐसे ही लोगांे के समुच्चय मनोविज्ञान से निकला ऐसा विकृत एवं आपत्तिजनक आयोजन बन गया जिसमंे केवल नाम के लिए तो कुछ घंटे का क्रिकेट है और इसके ईर्द-गिर्द एवं साथ कुव्यवसाय, विलासिता, भोग, कामुकता... आदि का ऐसा प्रचंड आच्छादन है, जिसमें हम आप तो कुछ देर के लिए खो जाते हैं और लूटने वालों की चांदी हो जाती है।

सोचने वाली बात है कि क्यों नेताओं से लेकर पूंजीपती, फिल्मी सितारों सहित अन्य क्षेत्रों के तथाकथित सेलेब्रिटी की आईपीएल में अभिरुचि बढ़ी? यह खेल के साथ इनका भावनात्मक लगाव नहीं था। केवल लगाव के कारण आईपीएल की एक-एक टीम के लिए अरबों रुपए की बोली लगाने वाले और किसी कीमत पर टीम खरीदने के लिए तत्पर लोग इतनी संख्या में सामने नहीं आते। अब तो यह भी धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहा है कि जितने लोग सामने दिख रहे थे उससे ज्यादा पीछे थे। एकाध मीडिया कंपनी का नाम भी आ रहा है जिसने क्रिकेट प्रबंधन में अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके अपनी कंपनी के लिए निवेश हासिल किया और उसके बदले में आईपीएल टीमांे की नीलामी में मदद की। पता नहीं इन सारे लोगांे का नाम और आईपीएल के पीछे के सभी स्याह कारनामे कभी देश के सामने आएंगे या नहीं, क्योंकि जांच करने वाले आयकर विभाग या प्रवर्तन निदेशालय का पिछला रिकॉर्ड ही नहीं इन दोनों महकमों में व्याप्त भ्रष्टाचार से पूरा देश वाकिफ है। ऐसा लगता है जैसे सरकार ने सब कुछ जानते हुए गुब्बारा को फूटने से बचाने के लिए जांच का छाता उपलब्ध करा दिया है। कितने लोगों ने मॉरीशस, हांगकांग, बहामाश, ब्रिटेन के वर्जिन आईसलैंड... आदि से काला धन लाकर उसे सफेद में बदल लेने का उपक्रम किया इसका भी पता करना मुश्किल है। कितने लोगों को थरूर की मित्र सुनंदा पुश्कर की तरह किसी कंपनी से स्वेट इक्विटी मिली होगी? रौन्देव्यू स्पोर्ट्स वर्ल्ड ने सुनंदा को स्वेट इक्विटी के तौर पर कोच्चि टीम की फ्रेंचायजी में करीब 70 करोड़ रुपए का 19 प्रतिशत हिस्सेदारी दी थी। स्वेट इक्विटी किसी को कंपनी के लिए समय लगाने सहित अन्य प्रयासों के लिए दिया जाता है। इसके लिए आपको किसी पूंजी की आवश्यकता नहीं है। बस, आप अपने बुद्धि कौशल या प्रभाव से कंपनी का काम करवा दीजिए। सुनंदा ने कंपनी के लिए क्या परिश्रम किया होगा इसकी कल्पना हम आप आसानी से कर सकते हैं। इस बाजार पूंजीवाद के प्रचंड स्वरूप ने धन लूटने के ऐसे अनेक आयाम खड़े कर दिए हैं और उनके लिए अर्थशास्त्र में तकनीकी शब्दावलियां भी पैदा हो गईं हैं। हमारे लिए यह अनैतिक एवं लूट है, पर इस पूंजीवाद में यह स्वाभाविक है।

जिस आयोजन में केन्द्रीय मंत्री की बेटी सामान्य पद पर काम रही हो, देश के बड़े पंूजीपति की बेटी काम कर रही हो, उसे आप सामान्य नहीं कह सकते। कितने राजनेताओं, मंत्रियांे, पूंजीपतियों के रिश्तेदार आईपीएल से जुड़े थे इनकी सूची भी सामने लाने की आवश्यकता है। इन सबका समायोजन क्यों हुआ होगा इसे सत्ता एवं धनअर्जन के चक्र से वाकिफ लोग भली भांति जानते हैं। आखिर इनके रहते आयोजन और इसके पीछे धन बटोरने के चक्र पर हाथ कौन डाल सकता था। जरा सोचिए, थरूर ने प्रफुल्ल पटेल की बेटी से जितनी जानकारी मांगी और जितनी आसानी से वह ईमेल पर उपलब्ध हो गई, उसे आप व्यवसाय, खेल, सरकारी नीति, राजनीति के किस खांचे में रखेंगे? यह तो खुली अनैतिकता है, अपने प्रभाव का गलत इस्तेमाल है, पर चूंकि इन प्रभावी लोगों के बीच आम जनता की गाढ़ी कमाई से लूट के लिए इन कुकर्मों पर लगभग सहमति है, इसलिए सरकार या खेल से जुड़ा तंत्र इसे गलत नहीं कहता। कल्पना करिए, यदि मोदी एवं थरूर के बीच मतभेद नहीं होता तो ये बातें हमारे सामने आतीं? सब कुछ ऐसे ही चलता रहता और बाजार द्वारा बनाए गए मदमस्त माहौल में पूरा देश इसमें कुछ क्षण का रोमांच अनुभव करता झूमता ही रहता। मोदी को आईपीएल के तंत्र से मिली ताकत का गरूर था और इसलिए वे एक राज्य मंत्री की बात मानने की जगह उनके खिलाफ सामने आ गए। आज भी मोदी को बचाने वालों की कमी नहीं हैं। वैसे भी केवल मोदी या थरूर ही दोषी नहीं हैं।

प्रश्न है कि इतना कुछ साफ हो जाने के बाद भी हम इसके अंत की दिशा में विचार करेंगे या पूर्व की तरह सरकारी जांच की खानापूर्ति और दो चार लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई के बाद फिर सब पूर्ववत् चलता रहेगा? अभी तक तो सब कुछ पूर्ववर्त चलते रहने की ही संभावना प्रबल है। अपने प्रभावों का इस्तेमाल करने वाले मीडिया के जरिए, आईपीएल के महिमामंडन में लगे ही हुए है। कुछ बेचारे अज्ञानी क्रिकेट प्रेमी इसे खेल मानकर इसका बाल बांका न करने का तर्क दे रहे हैं। आखिर किसी देश के लिए यह साधारण बुरी स्थिति है क्या? राजनेता, पूंजीशाह, मीडिया, सेलिब्रिटी.... सबके बीच देश को लूटने के लिए ऐसी भयावह दुरभिसंधि का उदाहरण शायद ही भारत के स्तर के किसी दूसरे देश में दिखाई देगा। भारत को सम्पूर्ण रूप से लूटने से बचाने के लिए इस तंत्र पर अहिंसक संघर्ष के द्वारा चोट करने की आवश्यकता है। कैसे और कहां से हो यह चोट इस पर विचार किया जाना चाहिए। (संवाद)