यह घोटाला कोई साधारण घोटाला नहीं है। यह देश के करोड़ों हिन्दुओं द्वारा मंदिर निर्माण के लिए दिए गए चंदे के खर्च में किए गया घोटाला है। पूरा मंदिर उसी चंदे से बनना है। हजारों करोड़ रुपये उस चंदे से इकट्ठे हो चुके हैं और देश के कौन ऐसे गांव जिसमें हिन्दू रहते हैं, वहां से चंदा नहीं आया होगा। यह घोटाला किया है उस ट्रस्ट ने, जिसके खाते में यह हजारों करोड़ के चंदे हैं। ट्रस्ट के मुख्य कार्यकारी चंपत राय हैं, जिन पर घोटाले के आरोप लग रहे हैं और उनके पास जवाब देने के लिए इसके सिवाय और कुछ नहीं है कि आरोप गलत हैं। लेकिन आरोप कैसे गलत है और आरोप लगाने वाला कहां गलत हैं, इसका उनके पास कोई जवाब नहीं। वे पत्रकारों से कहते हैं कि हमें अपना काम करने दीजिए और आपलोग अपना काम कीजिए।
घोटाला जमीन की खरीद में हुआ है। जमीन का एक टुकड़ा किसी अंसारी और तिवारी ने दो करोड़ में किसी पाठक द्वय से खरीदा। जमीन के उसी टुकड़े को पांच मिनट के बाद ही चंपत लाल ने ट्रस्ट के लिए साढ़े 18 करोड़ में खरीद लिया। जब खरीद बिक्री होती है, तो दो गवाह भी होते हैं, जिनका सेल डीड पर दस्तखत होता है। इन दो गवाहों में एक तो ट्रस्ट के सदस्य कोई मिश्रजी हैं और दूसरे गवाह अयोध्या के मेयर कोई उपाध्याय जी हैं। अंसारी और तिवारी ने जिस सेल डीड से वह प्लॉट पाठक से खरीदा, उस सेल डीड में भी मिश्रजी और उपाध्यायजी के दस्तखत हैं और जिस सेल डीड से चंपत राय ने ट्रस्ट के लिए अंसारी और तिवारी से वह प्लॉट खरीदा, उसे सेल डीड में भी वही ट्रस्टी मिश्र और मेयर उपाध्याय हैं।
मतलब रामजन्म मंदिर निर्माण के ट्रस्टी मिश्र उस जमीन के दो करोड़ में हुई खरीद बिक्री का भी गवाह है और पांच मिनट बाद ही हुई साढ़े 18 करोड़ में हुई बिक्री का भी गवाह है। अब न तो चंपत और न ही ट्रस्ट का कोई और सदस्य यह कह सकता है कि उन्हें यह नहीं पता था कि बेचने वाले अंसारी और तिवारी ने वह जमीन कितने में खरीदी थी। चंपक और मिश्र की उस घोटाले में संलिप्तता का अकाट्य प्रमाण उन दोनों सेल डीड में ही मौजूद है, जो कि सरकारी दस्तावेज हैं। भ्रष्टाचार इतना स्पष्ट और साफ है कि इसे साधारण समझ वाला व्यक्ति भी आसानी से समझ सकता है।
इन दोनों खरीद फरोख्त में एक और दिलचस्प बात हुई है। जमीन की खरीद के लिए स्टांप पेपर खरीदने होते हैं। अब इसकी खरीद ऑनलाइन होती है और वह पेपर कब खरीदा गया, उसके डेट के साथ साथ टाइम भी पेपर में आ जाता है। उन पेपरों को देखने से स्पष्ट है कि जिस स्टांप पेपर पर ट्रस्ट ने जमीन दूसरे सेल डीड के द्वारा खरीद उस पेपर की खरीद पहले हुई थी, जबकि अंसारी और तिवारी ने पाठक से जमीन खरीद के लिए जो स्टांप पेपर इस्तेमाल किया, उसे 10 मिनट बाद में खरीदा गया था। यानी ट्रस्ट जब जिस जमीन के लिए स्टांप पेपर खरीद रहा था, उस समय वह जमीन उनकी थी ही नहीं, जिनसे उसे खरीदनी थी।
भ्रष्टाचार तो हुआ है। कायदे से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा चंपत और मिश्र को तुरंत ट्रस्ट से हटा दिया जाना चाहिए, क्योंकि उस ट्रस्ट का गठन मोदीजी का ही किया हुआ है। लेकिन सत्ता प्रतिष्ठान से जुड़े भ्रष्ट लोगों को बाहर का रास्ता मोदी दिखाएंगे, ऐसा लगता नहीं, क्योंकि वह यह कभी नहीं स्वीकारते कि उनका कोई निर्णय गलत भी हो सकता है। दूसरी बात है कि ट्रस्ट में शामिल इन दोनों पर आरएसएस का वरदहस्त है और मोदीजी आरएसएस से भी टकराव लेने से बचना चाहेंगे। तीसरी बात यह है कि मोदीजी खुद भ्रष्टाचार को शायद कोई बड़ा रोग नहीं मानते हों, क्योंकि भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन की लहर पर सत्ता में आने के बाद उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई ऐसी बड़ी कार्रवाई नहीं की हो, जो उल्लेखनीय हो। इसलिए इस समय यह मानकर चला जाय कि आइने की तरह साफ इस साढ़े 16 करोड़ के घोटाले के बावजूद चंपत अपने पद पर बने रहेंगे और मिश्र भी ट्रस्टी बने रहेंगे।
लेकिन मोदीजी और उनकी भाजपा को अगले साल उत्तर प्रदेश में चुनाव का सामना भी तो करना पड़ेगा। प्रदेश में भाजपा की हालत बहुत पतली है। पिछले दिनों हुए ग्राम पंचायतों के चुनाव में भाजपा के 20 फीसदी उम्मीदवार ही जीत सके। जाहिर है, उसके पैर के नीचे की जमीन खिसक चुकी है। किसान आंदोलन और कोरोना ने मोदी से जुड़े तिलिस्म को तार तार कर दिया है। अब वे अवतार या सिद्ध पुरुष नहीं, उल्टे लोग उन्हें ही कोरोना के भयंकर रूप धारण करने के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। किसान आंदोलन ने भी भाजपा की हवा खराब कर दी। यह आंदोलन भी मोदी की गतल नीतियों के कारण हो रहा है। इन सबके अलावा अब राममंदिर निर्माण में हो रहे भ्रष्टाचार का मामला भी सामने आ गया है। इसके कारण राममंदिर निर्माण के नाम पर लोगों का वोट बटोरना भी भाजपा के लिए मुश्किल होगा। फिर सवाल उठता है कि भाजपा राजनैतिक रूप से देश के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण प्रदेश में चुनाव कैसे जीतेगी? जाहिर है, इस चंपत घोटाले ने उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत को और भी दुष्कर बना दिया है। (संवाद)
राम मंदिर निर्माण में चंपत घोटाला
उत्तर प्रदेश का चुनाव जीतना भाजपा के लिए और हुआ दुष्कर
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-06-14 11:08
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने दिल्ली फतह तो कर ली। उन्हें मोदी- शाह मुख्यमंत्री पद से हटा नहीं सके, लेकिन क्या वे उत्तर प्रदेश भी फतह कर पाएंगे- इन सवालों पर राजनैतिक पंडित माथापच्ची कर ही रहे थे कि अयोध्या में राममंदिर निर्माण करवा रहे ट्रस्ट द्वारा घोटाले की एक ऐसी खबर आ गई है, जिसे झुठलाना असंभव है। आगामी चुनाव में योगी आदित्यनाथ निश्चय ही राममंदिर के निर्माण को मुद्दा बनाएंगे, लेकिन यह मुद्दा उनके खिलाफ भी जा सकता है, क्योंकि रामजन्म मंदिर निर्माण से घोटाला भी जुड़ गए है। राममंदिर सुनते ही लोगों के जेहन में घोटाला भी गूंजने लगेगा और भाजपा को यह मुद्दा फायदा कम और नुकसान ज्यादा पहुंचाएगा।