यह योजना 15 मई से शुरू हो रही है और इससे राज्य के 36 लाख 57 हजार परिवारों के लाभान्वित होने की उम्मीद है। गौरतलब है कि गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों की संख्या इतनी ही है।

राज्य सरकार अपनी इस योजना को सफल बनानें के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को ज्यादा से ज्यादा चुस्त, दूरुस्त और भ्रष्टाचार मुक्त बनाना चाहती है और इसके लिए जिला प्रशासन को आदेश दे दिए गए हैं। उन्हें कहा गया है कि वे चौकसी बरतें और यह सुनिश्चित कराएं कि गरीबों के लिए आबंटित किया गया अनाज काले बाजार में नहीं पहुंच जाए।

अघिकारियों के लिए इस पर अमल करना आसान नहीं होगा। इसमें बिचौलियों के शामिल होने का खतरा बना रहता है। इसके अलावा माल काले बाजार में भी चला जाता है। अनाज की आपूर्ति को बनाए रखना भी एक चुनौती भरा काम है, ताकि प्रत्येक महीने 15 से 20 तारीख के बीच यह सस्ता बनाज सभी लोगों को मिल जाए। केन्द्र सरकार ने इस योजना के लिए 50 करोड़ रुपए की राशि उपलब्ध कराई है।

अशोक गहलौत सरकार की इस घोषणा की राजनैतिक विरोधियों और कुछ गैर सरकारी संगठनों द्वारा आलोचना भी हुई है। एक आलोचना तो अनाज की मात्रा को लेकर हो रही है। कहा जा रहा है कि प्रत्येक परिवार को प्रति माह 25 किलो गेहूं ही क्यों? कांग्रेस ने तो चुनाव से पहले प्रति परिवार 35 किलो सस्ता अनाज देने का वायदा किया था।

गैर सरकारी संगठन कह रहे हैं कि एक औसत गरीब परिवार को अपना घर चलाने के लिए 50 किलो अनाज प्रति महीना चाहिए। 25 किलो से उनका काम नहीं चल सकता।

केन्द्र सरकार खाद्य सुरक्षा कानून तैयार करने में लगी हुई है। उस पर केन्द्र में राजनैतिक चर्चा जारी है और कानून को अभी भी मूर्त रूप लेना बाकी है। उसके पहले ही राजस्थान सरकार ने सस्ता अनाज उपलग्ध करने की घोषणा कर अपने आपको सभी राज्यों से आगे कर लिया है। (संवाद)