भारतीय जनता पार्टी के पास भले निर्वाचित जिला परिषदों के सदस्यों का मात्र 20 फीसदी ही है, लेकिन अध्यक्ष के चुनाव में प्रदेश के अधिकांश जिलों में उसके उम्मीदवार की ही जीत की संभावना है, क्योंकि उस चुनाव में पैसे का खेल खूब चलेगा और भाजपा के पास पैसों की कमी नहीं है। निर्दलीय सदस्य बहुत ज्यादा हैं और भाजपा को वोट देने में उन्हें किसी प्रकार की समस्या नहीं आएगी। जिला परिषदों के सदस्यों पर दल बदल विरोधी कानून भी लागू नहीं हो सकता, इसलिए अपने पास अथाह धनशक्ति होने के कारण भारतीय जनता पार्टी अपनी विरोधी पार्टियों के चुनाव चिन्ह पर चुनाव जीते जिला परिषदों के वोट भी खरीद सकती है और वे सदस्य खुले आम पाला बदल सकते हैं। वैसे भी कांग्रेस के सदस्यों को भारतीय जनता पार्टी में लाना बहुत आसान होता है। कांग्रेस तो अब भारतीय जनता पार्टी का गोदाम बन चुकी है। भाजपा जब चाहे, वहां से किसी न किसी को पकड़कर अपने पास ले आती है।
जुलाई के पहले सप्ताह में होने वाले जिला परिषद अध्यक्षों के चुनाव में अधिकांश जिलों में जीत का परचम भले भाजपा फहरा ले, लेकिन जमीनी हकीकत यही है कि उसका जमीन आधार खिसक चुका है। देश की सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश में अभी से 10 साल पहले भाजपा मृत प्राय थी। उसका यह हाल था कि कल्याण सिंह तक भाजपा को मरा हुआ सांप कहने लगे थे। उस समय वह भाजपा से बाहर थे और पार्टी में उनके शामिल होने के कयास लगाए जाते थे। पत्रकार कल्याण सिंह से भाजपा में शामिल होने के बारे में जब सवाल करते थे, तो उनका टका सा जवाब होता था कि भाजपा एक मरा हुआ सांप है और उसे गले में लटका कर मैं नहीं घुमूंगा।
लेकिन समय का पहिया घूमा और 2014 में भाजपा ने उत्तर प्रदेश में अपना परचम लहरा लिया। मोदी के नाम पर की गई ब्रांडिंग और भ्रष्टाचार के खिलाफ उपजे जन आक्रोश से कांग्रेस, सपा और बसपा के भारी पतन के कारण भाजपा प्रदेश में छा गई। प्रदेश के जातीय अंतर्विरोध का लाभ भी भाजपा को मिला, क्योंकि मायावती और अखिलेश यादव को घोर जातिवादी नेता मानते हुए अधिकांश दलित और पिछड़ी जातियों के लोग ओबीसी मोदी का नाम लेकर भाजपा के मतदाता हो गए। उधर पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाटों और मुसलमानों के बीच दंगा हो गया था। दंगा अखिलेश सरकार के कार्यकाल में हुआ था और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार थी। इसके कारण पश्चिम उत्तर प्रदेश के जाट भी भाजपा प्रेमी हो गए, जबकि उसके पहले जाटों ने कभी भी भाजपा को पसंद नहीं किया था। इतने सारे कारणों से उत्तर प्रदेश में भाजपा छा गई और नतीजा यह हुआ कि 2017 के विधानसभा चुनाव में उसे वैसा बहुमत मिला, जैसा उत्तर प्रदेश विधानसभा में पहले किसी भी पार्टी को नहीं मिला था।
लेकिन अब उत्तर प्रदेश का दृश्य बदल चुका है। नरेन्द्र मोदी का ब्रांड अनेक कारणों से कमजोर हो गया है। उन्होंने भ्रष्ट लोगों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उलटे सरकारी संस्थानों में भ्रष्टाचार और भी बढ़ रहा है। मोदी अपने को ओबीसी कहते हैं, लेकिन ओबीसी के कानूनी अधिकारों की रक्षा करने के लिए भी उन्होंने कुछ नहीं किया। कोरोना काल में उनकी सरकार स्थिति को संभालने में विफल रही। पहली लहर में उन्होंने तो भारी गड़बड़ियां की और बिना कुछ सोचे समझे लॉकडाउन लगा दिया, जिससे करोड़ों लोगों का नुकसान हुआ। यूपी के लोग उसके सबसे बड़े भुक्तभोगी थे। दूसरी लह में तो लोगों ने देखा कि मोदी सरकार लापता थी। संकट से लड़ने की कोई तैयारी नहीं थी। इलाज की कमी के कारण लोग मारे गए। श्मशानों तक में लोगों को जगह नहीं मिल रही थी। उत्तर प्रदेश ने भयंकर आपदा का दौर देखा। लोग लकड़ी के अभाव में अपने परिजनों के शवों का दाह संस्कार नहीं कर पाए। अखिलेश यादव के अनुमान के अनुसार सरकार ने कोरोना से मरने का जो आंकड़ा दिया है, उसके 42 गुना ज्यादा लोग मरे हैं।
भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस के समर्थकों के परिवार भी इससे अछूते नहीं रहे। भाजपा के कोरोना पीड़ित परिवारों में मोदी और योगी सरकार से विश्वास हिल चुका है। इसका असर तो चुनाव पर पड़ेगा ही, मोदी सरकार द्वारा तीन कृषक कानून भी भाजपा के लिए मुसीबत साबित हो रहे हैं। पश्चिम उत्तर प्रदेश में इसके कारण ही जाटों और मुसलमानों की बिखरी एकता एक बार फिर बन गई है, जिसके कारण वहां भाजपा की जीत कठिन हो जाएगी, वैसे पूरे उत्तर प्रदेश के किसान इन कानूनों के कारण मोदी के खिलाफ है। भाजपा के जले पर नमक छिड़कते हुए चंपत राय का घोटाला भी सामने आ रहा है, जिसके कारण अब रामजी भी भाजपा की नाव को किनारे लगा नहीं सकते। उस घोटाले के कारण राममंदिर का मुद्दा अब भाजपा उठा नहीं पाएगी और उठाएगी, तो उसे ही नुकसान होगा।
जाहिर है, उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत आसान नहीं है। योगी को हटाकर जीत को संभव बनाने का एक प्रयास भाजपा के दिल्ली के नेताओं ने किया, लेकिन योगी इसके लिए तैयार नहीं हुए। अंत में योगी को हटाने का प्रयास रोकना पड़ा। सच तो यह है कि भाजपा के पास यूपी में योगी से बेहतर नेता भी नहीं है। (संवाद)
उत्तर प्रदेश में भाजपा की वापसी आसान नहीं
फिर भी योगी से बेहतर चेहरा पार्टी के पास नहीं
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-06-25 12:01
बंगाल चुनाव की हार के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मनोबल गिरा हुआ है। इस बीच उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव भी हुए थे और उसमें भी भारतीय जनता पार्टी की हार हुई थी। उत्तर प्रदेश में ग्राम पंचायतों के चुनाव पार्टी के आधार पर नहीं होते, लेकिन जिला परिषद के सदस्यों के चुनाव दलीय आधार पर ही होते हैं और जिला परिषद चुनावों में भारतीय जनता पार्टी के मात्र 20 फीसदी उम्मीदवार ही जीत सके थे। 26 फीसदी उम्मीदवार समाजवादी पार्टी के जीते थे। सबसे ज्यादा निर्दलीयों की जीत हुई थी। अब जिला परिषद के वे सदस्य जिला परिषद के अध्यक्षों का चुनाव करेंगे। कोरोना की तेज लहर के कारण उनके चुनाव को स्थगित कर दिया गया था। जुलाई के पहले सप्ताह में उनका चुनाव होना है।