लेकिन उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को हटा दिया गया। उनके कार्यकाल के 4 महीने भी पूरे नहीं हुए थे। उनके हटाने का एक कारण उनका विधायक नहीं होना बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि उत्तराखंड में विधानसभा आम चुनाव एक साल की समयावधि के अंदर ही होना है और वैसी स्थिति में वहां उपचुनाव नहीं हो सकते और जब उपचुनाव नहीं हो सकते, तो तीरथ सिंह निर्धारित 6 महीने में विधायक नहीं बन सकते और फिर उनका मुख्यमंत्री का कार्यकाल अपने आप समाप्त हो जाता।
लेकिन यह दलील थोथी है। इसका कारण यह है कि जब पिछले मार्च महीने में तीरथ सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया था, तब भी यह स्पष्ट था कि उपचुनाव कराने में आगामी विधानसभा चुनाव का एक साल भी नहीं हो पाना समस्या पैदा कर सकता था। यह जानते हुए भी तीरथ को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसका मतलब यह है कि भाजपा के केन्द्रीय नेताओं को पता था कि विशेष परिस्थिति का हवाला देकर निर्वाचन आयोग से उपचुनाव कराए जा सकते हैं। ऐसा पहले भी हो चुका है।
दरअसल भारतीय जनता पार्टी को यह अहसास हो गया कि उत्तराखंड में भाजपा की स्थिति पतली है। वहां चुनाव जीतने की संभावना बहुत कम है। तीरथ सिंह अपने बयानों से यह साबित कर चुके थे कि उनमें नेता बनने लायक काबिलियत नहीं। उन्होंने एक बार कहा था कि कुम्भ में स्नान करने से कोरोना के वायरस मर जाएंगे। लेकिन तथ्य यह है कि हरिद्वार कुम्भ के कारण उत्तराखंड में बहुत तेज कोरोना लहर देखी गई, जिससे पूरे प्रदेश की जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया। दूर दराज इलाके भी कोरोना की मार से नहीं बच सके।
इसके कारण तीरथ सिंह भाजपा पर बोझ बन गए थे। भाजपा का केन्द्रीय नेतृत्व चाहता, तो उपचुनाव करवाया जा सकता था। केन्द्रीय नेतृत्व का मतलब नरेन्द्र मोदी और अमित शाह हैं। हम देख चुके हैं कि निर्वाचन आयोग किस तरह से केन्द्र सरकार की भक्ति दिखा रहा है। लेकिन यह उपचुनाव करवाना भी भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़े संकट का कारण बन सकता था। विधानसभा की दो सीटें खाली हुई थीं। एक सीट तो कांग्रेस की विधायक, जो विधानसभा में विपक्ष की नेता भी थीं, उनकी मौत से खाली हुई थी। वहां से तीरथ सिंह को चुनाव लड़ाना खतरे से खाली नहीं था, क्योंकि पिछले चुनाव में भी भाजपा का उम्मीदवार वहां हारा था। दूसरी सीट भाजपा के विधायक की मौत के कारण ही खाली हुई थी। वहां से तीरथ लड़ सकते थे, लेकिन एकाएक आम आदमी पार्टी ने वहां एक ऐसे व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा कर दी, जो उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय हैं। केदारनाथ के प्रलय के शिकार होने के वहां के पुनर्निमाण में उनकी बहुत बड़ी भूमिका था। वैसे भी कोरोना के कारण तीरथ सिंह ही नहीं बल्कि पूरी भाजपा का ग्राफ उत्तराखंड में बहुत नीचे गिरा हुआ है। इसलिए यदि उपचुनाव में तीरथ सिंह की हार हो जाती, तो फिर भाजपा का जायका ही खराब हो जाता। उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में उसके समर्थक और कार्यकर्त्ता एक हारी हुई मानसिकता लेकर उतरते।
इसलिए भाजपा नेतृत्व ने फैसला किया कि तीरथ सिंह को उपचुनाव लड़ाने से बेहतर है कि उन्हें हटाकर किसी विधायक को मुख्यमंत्री बना दिया जाय। ऐसा ही किया भी गया। अब रावत की जगह धामी मुख्यमंत्री हैं। वे पहले कभी मंत्री नहीं रहे हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री के ओएसडी होने का अनुभव उनके पास है। उनकी उम्र कम है। भाजपा नेतृत्व ने उन्हें इसलिए मुख्यमंत्री बना दिया, क्योंकि अनेक वरिष्ठ नेता उस पद के लिए आपस में प्रतिद्वंद्विता कर रहे थे। पार्टी में कोई गुटबाजी नहीं हो, इसके लिए धामी को मुख्यमंत्री बना दिया गया।
सवाल उठता है कि क्या धामी के मुख्यमंत्री बनाने से भाजपा का काम उत्तराखंड में आसान हो जाएगा? क्या धामी के चेहरे पर चुनाव लड़ना पार्टी के लिए फायदेमंद रहेगा? तो इसका जवाब यही हो सकता है कि धामी कोई ऐसे नेता अभी तक नहीं हैं कि उनके चेहरे पर चुनाव लड़ा जाय। इस बात में भी शक है कि उनका प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करके भाजपा चुनाव लड़ेगी। सच तो यह है कि प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं का विश्वास बनाए रखने के लिए धामी को अगला मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं बनाया जाएगा। और चुनाव प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा।
हालांकि नरेन्द्र मोदी की छवि पहले जैसी नहीं रही, फिर भी भाजपा के पास उनका कोई विकल्प नहीं है। नरेन्द्र मोदी की छवि एक अवतार के रूप में बनाने की कोशिश की जा रही थी। खुद पिछले मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने उन्हें अवतार कहा था। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कई बार उन्हें अवतार कह चुके हैं। स्थानीय स्तर पर आरएसएस और भाजपा के कार्यकर्त्ता भी मोदी के अवतार बताते रहते हैं। भाजपा की जीत के लिए नरेन्द्र मोदी की इस छवि को बनाना और उसे बनाए रखना जरूरी है।
लेकिन कोरोना ने उस छवि को तार तार कर दिया है। लोग अवतार पुरुष से अपेक्षा रखते हैं कि दैवी विपदाओं के समय में वे उनकी रक्षा करेंगे। सच तो यह है कि दैवी विपदाओं में रक्षा करने की किसी की क्षमता ही उसे अवतार पुरुष बना देता है। भारत के एक औसत व्यक्ति के लिए कोरोना एक दैवी आपदा ही है, जिससे रक्षा करने में मोदी विफल रहे। इसके कारण अब उनके व्यक्तित्व में पहले जैसी चमक नहीं रही और उनकी वाणी में पहले जैसे जादू नहीं रहा। लेकिन चुनाव तो उनके चेहरे और उनकी वाणी के आधार पर ही होना है, मुख्यमंत्री कोई रावत रहे या धामी। (संवाद)
उत्तराखंड में मुख्यमंत्री परिवर्तन
रावत हो या धामी, चुनाव तो मोदी के चेहरे पर ही होना है
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-07-05 09:34
उत्तराखंड को लेकर भाजपा नेतृत्व बेचैन है। वह बेचैन तो उत्तर प्रदेश को लेकर भी था और इसलिए वहां मुख्यमंत्री योगी को हटाना चाहता था, लेकिन योगी हटने को तैयार ही नहीं हुए। उन्हें जबर्दस्ती हटाया जा सकता था, लेकिन उनके साथ जोर जबर्दस्ती करने के खतरे थे, क्योकि योगी स्वतंत्र दिमाग के आदमी हैं। वह एक अलग पार्टी बना लेते और प्रदेश की सभी सीटों से उम्मीदवार खड़ा कर देते। इससे अंततः भाजपा का ही नुकसान हो जाता। इसलिए उनको हटाया नहीं जा सका।