देश की राजनैतिक प्रक्रिया को समझने वाला एक औसत ज्ञान का विद्यार्थी भी यह जानता है कि प्रधानमंत्री किसी को भी मंत्री बना सकते हैं, जो अगले छह महीने के अंदर संसद के किसी भी सदन का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो। उसमें किसी का दखल नहीं हो सकता। जिसे प्रधानमंत्री मंत्री बनाना चाह रहे हों, वह भले चाहे तो मना कर दे, लेकिन इसमें किसी तीसरे की कोई भूमिका नहीं हो सकती। प्रधानमंत्री के उस अधिकार पर कोर्ट भी सवाल नहीं खड़ा कर सकता। भारत का हर नागरिक जो संसद का सदस्य है या सदस्य बनने की योग्यता रखता है, वह मंत्री बन सकता है। हां, संसद का सदस्य न रहने की स्थिति में यदि वह अगले छह महीने के अंदर सांसद नहीं बन पाता है, तो उसका मंत्री पद अपने आप समाप्त हो जाता है।
इस मामले में तो पारस लोकसभा के सदस्य भी हैं। और चिराग जब कहते हैं कि लोकजनशक्ति पार्टी के सदस्य के रूप में यदि उनका शपथ ग्रहण कराया गया, तो वे कोर्ट जाएंगे, उससे भी उनका बचकानापन ही झलकता है। कोई शपथग्रहण करते समय अपनी पार्टी का उल्लेख नहीं करता और न ही प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को उसका नाम भेजते समय उसकी पार्टी का उल्लेख करते हैं। वह व्यक्ति किस पार्टी का है, इससे शपथग्रहण करने या मंत्री बनने का तकनीकी रूप से कोई संबंध नहीं। पार्टी की सदस्यता का सवाल संसद में सीटें आबंटित करने और दल बदल विरोधी कानून के अमल के लिए जरूरी है और यह चुनावी नतीजे निकलने के बाद निर्वाचन आयोग द्वारा जारी की गई अधिसूचना से पता चल जाता है कि कौन सांसद किसी पार्टी का है या निर्दलीय है। संसद उसी के आधार पर रिकॉर्ड तैयार करता है और उसी के आधार पर बैठने की व्यवस्था की जाती है।
सभी पार्टी संसद में अपने नेता का चुनाव करते हैं और वह स्पीकर को सूचित कर दिया जाता है। संसद में उसका भी रिकॉर्ड रखा जाता है। सांसदों में विवाद की स्थिति में स्पीकर को फैसला लेना होता है। संसद के अंदर जहां स्पीकर फैसला लेते हैं, वहीं निर्वाचन आयोग भी फैसला लेता है, क्योंकि आयोग द्वारा जारी किए गए सिंबॉल पर भी पार्टी चुनाव लड़ती है। निर्वाचन आयोग के फैसले को संसद के अंदर भी सम्मान मिलता है और उसके आधार पर बैठने की नई व्यवस्था बनती है।
वर्तमान विवाद में लोकजनशक्ति पार्टी के 6 लोकसभा सांसद शामिल हैं। चिराग लोकसभा में पार्टी के नेता था। यह उसके रिकॉर्ड में दर्ज था। भारत एक लोकतांत्रिक देश है और किसी भी संसदीय दल का नेता वहीं हो सकता है, जिसे उसके बहुमत सदस्यों का समर्थन हो। 6 में से 5 सांसद स्पीकर के पास आकर कहते हैं कि हमने अपना नेता बदल दिया है और फलां हमारा संसद में नेता है, तो स्पीकर के पास उसे नेता मानने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं है, क्योंकि स्पीकर को पता है कि नेता वहीं होता है, जिसके पास बहुमत का समर्थन हो और यहां तो मामला 3-3 या 4-2 का नहीं, बल्कि 5-1 का है, तो स्पीकर ने पारस को नेता मानकर कोई गलती नहीं की।
लेकिन चिराग ने स्पीकर के उस फैसले को हाई कोर्ट में यह कहकर चुनौती दे डाली कि हमारी पार्टी के संविधान के अनुसार संसद में नेता का चुनाव सांसद नहीं करते, बल्कि पार्टी का संसदीय बोर्ड, जिसमें हो सकता है एक भी सांसद नहीं हो, वह चुनता है। अपने संविधान का हवाला देकर चिराग दलील रखते हैं कि स्पीकर द्वारा पारस को नेता मानना असंवैधानिक है। यह विचित्र दलील है। नेता सदस्य चुनते हैं, लेकिन उनके संविधान के अनुसार नेता का मनोनयन पार्टी करती है। चिराग को अब कौन समझाए कि संसद की कार्यवाही उनकी पार्टी के संविधान से नहीं चलती और न ही स्पीकर का फैसला पार्टी के संविधान पढ़कर आता है। लोकतंत्र बहुमत का शासन है और जिसके पास बहुमत का समर्थन है, वह नेता है। जाहिर है, पारस को नेता मानकर स्पीकर ने कुछ भी नहीं गलत किया।
अब संसद में चिराग पासवान उस एलजेपी के सदस्य हैं, जिसके नेता पारस हैं। संसद के बाहर वह जो करें, यह स्पीकर के लिए मायने नहीं रखता, लेकिन यदि उन्होंने संसद के अंदर अपने चाचा द्वारा जारी करवाए गए व्हिप का उल्लंघन करते हैं, तो स्पीकर दलबदल कानून के तहत उनकी सदस्यता भी खत्म कर सकते हैं। अगर व्हिप जारी कर उन्हें संसद में उपस्थित रहने के लिए कहा जाता है और वे उपस्थित नहीं रहते हैं, तब भी उनकी सदस्यता समाप्त हो सकती है। यह बात चिराग को समझनी चाहिए। वे संसद के स्पीकर या प्रधानमंत्री से लड़कर कुछ हासिल नहीं कर सकते। उन्हें यदि लड़ना है, तो निर्वाचन आयोग में लड़ें और साबित करें कि असली एलजेपी उनकी है। यदि आयोग आश्वस्त होता है, तो अन्य पांच को अलग पार्टी का मानकर मान्यता मिल जाएगी और यदि आयोग उन्हीं पांचो को एलजेपी का मानता है, तो फिर चिराग के पास अपने चाचा के नेतृत्व वाली पार्टी में बने रहने का कोई विकल्प नहीं है। यदि वे अलग हो गए, तो दलबदल विरोधी कानून के तहत वे अपनी संसद सदस्यता भी गंवा सकते हैं। (संवाद)
चिराग की बचकाना हरकत
गंवा सकते हैं अपनी संसद सदस्यता भी
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-07-10 11:23
चिराग पासवान की समस्या का अंत नहीं हो रहा है और वे खुद अपनी समस्याओं को अपनी बचकानी हरकतों से बढ़ाते जा रहे हैं। देश की राजनीति कैसे चलती है, प्रधानमंत्री के क्या अधिकार हैं और संसद के स्पीकर किस आधार पर करते हैं, इन सबकी जानकारी का अभाव होने के कारण वे अपनी किरकिरी खुद करवा रहे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा अपने कैबिनेट के विस्तार के पहले जब पटना के राजनैतिक हलकों में चर्चा तेज थी कि उनके चाचा पशुपति कुमार पारस भी मंत्रिमंडल में शामिल हो सकते हैं, तो उन्होंने प्रधानमंत्री को ही धमकी देनी शुरू कर दी कि यदि उनके चाचा को मंत्री बनाया गया, तो प्रधानमंत्री के खिलाफ कोर्ट में जाएंगे। हालांकि अपने कुछ सलाहकारों के कहने पर अपनी धमकी में उन्होंने थोड़ा सा सुधार कर दिया और कहा कि यदि लोकजनशक्ति पार्टी के सांसद के रूप में पारस का मंत्री के रूप में शपथग्रहण होता है, तब वे कोर्ट में जाएंगे।