केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के मारे गए जवानों की घटना केवल उदाहरण के तौर पर याद दिला रहा हूं क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय के वरिष्ठ अघिकारी की अपराधिक लापरवाही को इसका बड़ा कारण माना जा रहा है। इसी तरह नक्सलियों को कारतूस आपूर्ति में पकडे़ गऐ लोगांे में कलियुग के जवान का शामिल होना भी एक बड़ी त्रासदी है। यह तो सामने खडे़ हत्यारे को कारतूस देने के समान है, जो मुझे ही मार देगा। गृह मंत्रालय के अधिकारी बुलेटप्रुफ जैकेट खरीद में अपनी जेब भरने के चक्कर में काम अटकाएं पड़े थे ।
भ्रष्टाचार के घटनाक्रम गिनने में हमारी कोई रुचि नहीं है, लेकिन सात मई को वाराणसी से आई एक खबर ने हृदय विदीर्ण कर दिया। एक ईमानदार मास्टर को शिक्षा विभाग के पदाघिकारियों, यहां तक कि उनके अपने सहकर्मियों ने भी भ्रष्टाचार के खिलाफ होने की सजा इस कदर दी कि वह मानसिक संतुलन खो बैठे। मजबूरन घरवाले उन्हें जंजीर से बांधकर घर में रखे हैं। हमारी रक्षा करने वाले जवान जान गवांए । हमें उज्जवल भविष्य के लिए शिक्षित करने वाला, ज्ञान देने वाला खुद पागल हो जाए तो हमारा वर्तमान और भविष्य दोनांे असुरक्षित हो जाता है। इस खतरनाक मोड़ पर आकर भी अगर हम समझने को तैयार नहीं है तो जानलेवा भ्रष्टाचार अब हमें रगड़ना शुरू कर चुका है। जब जीवन ही सुरक्षित नहीं होगा तो कमाया या लूटा हुआ धन भी किस काम का है? साथ ही जब भविष्य की राह दिखाने वाला ही भ्रष्ट हो या पगला जाए तो पूरा मानव समाज किस दिशा में जाएगा और कैसा भविष्य होगा? इस पर सोचना भी पागल बना देगा!
यह भ्रष्टाचार की पराकाष्ठा है, जब भ्रष्टाचार हमारे रक्षा को ही खाने लगा है और दिग्दर्शन को पागल बनाने लगा है। हम जाने कौन से सुनहरे भविष्य और जीवन की असुरक्षा के भय से भ्रष्टाचार का सहारा लेते हैं अब इन्हीं दोनों जरूरतों पर भ्रष्टाचार की काली छाया पड़ चुकी है जो मानव जीवन ही निगलने पर तुला है।
भविष्य की चिंता में लोग हर तरह से ज्यादा से ज्यादा कमा लेने की चिंता में भ्रष्टाचार का अवलोकन करने लगते हैं। कैसी असुरक्षा की भावना है यह, कितना असुरक्षित हमारा पूरा समाज है। असुरक्षित समाज भय से ज्यादा कमाने की लालच में एक अंधी दौड़ में शमिल हो गया है। ऐसे में बगटूट भागता समाज मंुह के बल तो गिरेगा ही। एक लंबे समय के लिए अंतहीन अंधेरी सुरंग में खुद को फंसा पाएगा।
आज कैसी हालत है। इक्के दुक्के मामलों को छोड़ दंे तो कोइ भी विभाग या मंत्रालय रिश्वत के बगैर काम नहीं करता है। वस्तुतः वह लोगों को बाध्य करता है कि वह गलत काम करे, ताकि गलत पैसे वसूलने का रास्ता बने। कभी ऐसे लगता है कि सारी सरकार उसके विभाग, कुछ ऐसे लोगों के कब्जे में हैं जो गिरोह की तरह काम करते हैं। आम जन को लुटने का एक से एक नायाब तरीका वह निकालते हैं। उन्हीं परियोजनाओं पर वह काम करते हैं। जिसके नाम पर ज्यादा से ज्यादा धन सरकारी खजाने से निकाला जा सके। सही तरीके से काम करने वालों को बिल्कुल किताबी कार्यो में किनारे लगा दिया जाता है। ताकि वह रोक टोक न करे। चुपचाप दिल को धक्का दे, चुपचाप बेइज्जत हुए बगैर दिन गुजार लेने में भलाई समझने लगे हैं। क्या सरकारी, क्या निजी क्षेत्र, सब जगहों तक यह भ्रष्टाचार पसर चुका है।
जब एक मास्टर मात्र इसलिए सताया जाता है कि वह अपनी तनख्वाह का कुछ हिस्सा ऊपर के अधिकारियों को देने से मना कर देता है। उसे बच्चों के सामने अपमानित किया जाता है। जो कुकर्मी भ्रष्ट हैं, वह ईमानदार मास्टर से अपने जूते, बच्चों के सामने साफ करवा कर क्या संदेश, भ्विष्य के नागरिकांे को देना चाहते हैं? यही न कि यह चोर उचक्कों का सम्मान करने वाला देश है। यहां ईमानदार को अपमानित किया जाएगा। चाहे वह शिक्षक ही क्यों न हो। जिन बच्चों ने यह तमाशा देखा होगा, उनकी मानसिकता पर क्या असर पड़ा होगा? कितनी कुंठा ग्लानि, अपमान बोध उन बच्चों के मस्तिष्क को प्रताड़ित कर रहा होगा। मानवधिकार को धिक्कार पहुंचाने वाले इस देश के कर्णधारों से क्या उम्मीद करें, जो खुद करोड़ों- अरबों के वारे-न्यारे में लगे हैं। जब मालिक ही चोरी करने पर उतरेगा तो नौकर क्या करेगा? जनता को देखने वाले दरअसल अपने कारनामों पर परदा डालना चाहते हैं।
‘हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे’
कुमार अमिताभ - 2010-05-13 08:05
भ्रष्टाचारी अपना एक घर भरने के चक्कर में जाने कितने घरों का चिराग गुल कर देता है, उस एक की जेब भरने की हवस के लिए सैकड़ों हजारों परिवारों को बदहाली, कंगाली की कगार पर ला खड़ा कर सकती है । इसका ज्वलंत उदाहरण बीते सप्ताह उजागर हुए भ्रष्टाचार के मामलों से मिल जाता है।