पेगासस आ चुका है......पेनडेमिक की तीसरी लहर के समान। जिस भयानकता को ओढ़े वह आया है, उससे हमारा परिचय है। सिर्फ इसकी भयानकता इस बार कुछ अधिक है। पहले भी आए थे इसके सहचर। 2019 में जब फोन टैपिंग, व्हाट्सअप की गपशप को रहस्यमय तरीके से उजागर कर दिया गया था। जनवाद में पड़ रही दरारों से जासूसी शुरू हो चुकी थी। आज वही सारी बातें और भी विकरालता से सामने आ गई है। हर विद्रोही स्वर को सिडीशन से कुचल दिया जाता है, या फिर यूएपीए का सहारा लिया जाता है। अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के लिये, कृषि को बर्बाद करने के लिये, औद्योगिक विकास को विनष्ट करने के लिये कानून बनने लगे हैं। डाटा प्राइवेसी बिल को सेलेक्ट कमिटी को सौंप दिया गया है। डिजिटल न्यूज प्लेटफार्म की सार्थकता की मृत्यु होने लगी है नये कानूनों की गिरफ्त में घुटकर। इन सबके साथ ही शुरू हो गया है राज्य सरकारों को गिराना। इनमें प्रत्येक घातक चोट के साथ जनवादी व्यवस्था घायल हो रही है। देश क्रमशः कड़ी निगरानी की गिरफ्त में कैद हो रहा है और इसके लिये पेगासस मुहैय्या कर रहा है खूनी हथियार।

इस सबके साथ ही हमारा देश जनवाद की जगह राजकीय खुफियातंत्र में बदलने की जद्दोजहद में फंसता जा रहा है। इजरायली खुफिया तंत्र पेगासस ने फोन नंबर की लिस्ट बना ली है भारत के शिक्षाविदों, पत्रकारों, यहां तक कि कुछ धनपति भी इसमें शामिल हैं, जिन्हें टारगेट बनाया गया है।

पेगासस एक खुफिया यंत्र है जो जासूसी के लिये इजरायल की एन.एस.ओ. से ली गई है और इसके शिकार दुनिया भर में फैले हैं। भारत में उनमें से अभी तक तीन सौ नाम सामने आए ैं। इस सारी कार्यवाही का उद्देश्य, अभी तक की सूचना के अनुसार, यह पता लगाना है कि इन सब टारगेट्स की नरेन्द्र मोदी, उनकी सरकार और 2019 के लोकसभा चुनाव पर प्रतिक्रिया क्या है।

पेगासस की भूमिका भारत में सार्वजनिक होने और उसके साथ विभिन्न मसलों के सिर उठाने के बाद भी सरकार जवाब देने की कोई कोशिश नहीं कर रही। वह पूरी तरह मौन है। मीडिया कन्सर्टियम ने सूचित किया है कि इसे प्रकाश में आई एक सूची ‘‘फॉरबिड्न स्टोरीज’’ नामक मीडिया पोर्टल से मिली है। सरकार ने अभी तक इस पर कुछ भी प्रतिक्रिया नहीं दी है। कन्सर्टियम के अनुसार, लोगों की जासूसी हो रही है, उनमें से पचास हजार नामों की सूची मिली है और यह उन सरकारों द्वारा एन.एस.ओ. को सौंपा गया था जो इन नामों की जासूसी करना चाहती थी। धमाका तब हुआ जब एमनेस्टी इंटरनेशनल का फॉरेन्सिक लैब अपनी सूचनाओं के साथ सामने आया। लैब में पहुंचे 67 फोन में से 23 पर संक्रमण हो चुका था और 14 में संकेत थे अतिक्रमण की कोशिशों की। इस तथ्य के सामने आते ही यह मांग की गई कि सूची के सभी नाम, हमारे अपने देश के भी तीन सौ ज्ञात नामों के साथ, सभी फोनों की जांच होनी चाहिए कि उन पर पेगासस का अतिक्रमण हुआ है या नहीं। यह सारी सूचनाएं मीडिया कॉन्सर्टियम, जो पत्रकारों का समूह है, द्वारा उद्घाटित की गई है, और हमारी सरकार इन सूचनाओं के स्रोत की पड़ताल की बात कर रही है जो प्रायः असंभव है, क्यांकि पत्रकारों के लिये अपने स्रोत उद्घाटित करना घोर अनैतिक होता है। सरकार इस बात पर भी स्पष्ट नहीं है कि एनएसओ ग्रुप की सेवाएं उसने ली या नहीं और साथ ही पेगासस के जासूसी यंत्र को किराये पर लिया या नहीं, इस सत्य को वह उद्घाटित नहीं करेगी। 2019 में सरकार ने पेगासस का उपयोग जिस तरह किया था, वही वह आज भी कर रही है या नहीं इस तथ्य पर भी सरकार खामोश है।

मुंबई हाईकोर्ट में एक एफिडेविट देते हुए एनआईए ने कहा था, कि जासूसी के सरंजाम जिन देशों ने एनएसओ ग्रुप से खरीदे थे, उनका उपयोग वे अपने राजनैतिक विरोधियों के विरूद्ध भी कर सकते हैं, इस संभावना पर काफी हंगामा हुआ था। यहां पर एनएसओ का स्पष्टीकरण था कि वह जासूसी यंत्र उन्हीं देशों को बेचता है जिन्हें इसे आतंकवाद और अपराधों की जड़ों तक पहुंचने में इसकी मदद की जरूरत होती है। एनएसओ के इस स्पष्टीकरण की पृष्ठभूमि में, 28 नवंबर 2019 को संसद में मोदी सरकार ने स्पष्टीकरण दिया था कि पेगासस का उपयोग किया गया था। इसके विपरीत इस बार आईटी मंत्री अश्विन वैष्ष्णव ने संसद में सरकार की इस पूरे मामले में चुप्पी के समर्थन में कहा था कि अनधिकृत जासूसी कभी भी नहीं होता। लेकिन यहां हम तर्क की दार्शनिक गुत्थी में नहीं जाकर यह सीधा सवाल तो उठा ही सकते हैं कि जासूसी अनधिकृत थी या सरकार द्वारा अनुमोदित भी।

यह भी यहां स्पष्ट होना है कि अश्विन वैष्णव स्वयं भी इस जासूसी के शिकार है।

वास्तव में आज देश की महान जनतांत्रिक परंपराएं खतरे में आ गई हैं। विभिन्न संस्थानों में भी बिखराव शुरू हो चुका है। राजनैतिक कार्यकर्ता और नेता, चुनाव आयोग के अधिकारी, और विरोधी दल, सभी जासूसी की इस सूची में हैं। पैरों के नीचे जमीन है भी या नहीं, ये भी हम भूल चुके है। क्या हम एक ऐसी व्यवस्था में पहुंच रहे हैं जहां जनवाद नहीं है, व्यक्तिगत स्वंतत्रता नहीं है, अभिव्यक्ति की आजादी नहीं है और अंत में, प्रश्न करने का भी अधिकार नहीं है, विशेषकर उनसे जो सत्ता में हैं। (संवाद)