ध्यानचंद एक बहुत बड़ा नाम है। यदि उनके सम्मान में कोई सरकार कुछ भी करती है, तो लोगों को उससे खुशी ही होगी। सच कहा जाय, तो ध्यानचंद सिर्फ एक महान खिलाड़ी ही देश के लिए नहीं समझे जाते हैं, बल्कि वह भारत के एक संस्कृति पुरुष भी बन गए हैं। उन्हांने भारत का नाम उस समय दुनिया में रौशन किया, जब भारत को दुनिया में अपनी पहचान स्थापित करने की सख्त जरूरत थी। 1930 के दशक में जब भारत महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहा था और भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद और उधम सिंह जैसे लोग शहादत दे रहे थे, उसी दौर में ध्यानचंद ने हॉकी का ओलंपिक गोल्ड मेडल भारत को कई बाद दिलाया। यह एक हौसलापस्त राष्ट्र की हौसला आफजाई थी। भारत की ही नहीं, बल्कि भारतीयों को भी अंतरराष्ट्रीय सम्मान दिलाने का काम था। लिहाजा, जिसने देश का सम्मान बढ़ाया हो, उसे सम्मानित होते कौन भारतीय नहीं देखना चाहेगा।

इसलिए भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान या पुरस्कार ध्यानचंद के नाम पर हो, इस पर किसी की आपत्ति नहीं हो सकती। सच तो यह है कि यदि उनके नाम पर इस तरह का पुरस्कार नहीं रखा जाय, तब आपत्ति होगी। भारत में खेल रत्न का नाम 1991-92 में राजीव गाधी के नाम पर नरसिंह राव की सरकार ने रखा था। उसके कुछ पहले ही राजीव गांधी की हत्या हो गई थी। देश भर में उसके लिए शोक था और राजीव गांधी के प्रति सहानुभूति भी। चूंकि माहौल ही कुछ ऐसा था कि किसी ने नरसिंहराव सरकार के उस निर्णय का विरोध नहीं किया। लेकिन वह गलत निर्णय था। खेल रत्न का नाम किसी खिलाड़ी के नाम पर होना चाहिए था और ध्यानचंद से बेहतर नाम न तो उस समय था और न ही आज है।

यानी हम कह सकते हैं कि राजीव गांधी के नाम पर इस पुरस्कार को नामित करने का निर्णय गलत था। लेकिन निर्णय तो आखिर निर्णय ही होता है, वह गलत हो या सही। राजीव गांधी खेल रत्न पिछले 30 साल से दिया जा रहा है। अब एकाएक वह नाम बदल देना अटपटा लगता है। कहने की जरूरत नहीं कि यह पूरी तरह से राजनीति से प्रेरित फैसला है। यदि ध्यानचंद के प्रति सम्मान ही दिखाना था, तो उनके नाम से कोई और पुरस्कार शुरू किया जा सकता था। खेल रत्न से भी बड़ा पुरस्कार स्थापित किया जाना चाहिए था। ध्यानचंद खेल रत्न की जगह ध्यानचंद खेल महारत्न या ध्यानचंद खेल परमरत्न भी उस पुरस्कार का नाम रखा जा सकता था। राजीव गांधी के नाम वाला खेलरत्न उससे अपने आप छोटा हो जाता।

लेकिन ऐसा करने की जगह मोदीजी ने पुराने नाम के हटाकर एक नया नाम रख दिया। इंदिरा और नेहरू परिवार के प्रति नरेन्द्र मोदी और उनका संगठन कैसी भावना रखता है यह सबको पता है। इसलिए इस निर्णय के पीछे अनेक लोग ध्यानचंद को सम्मानित करना नहीं, बल्कि राजीव गांधी को अपमानित करने करने का भाव देख रहे हैं, जो पूरी तरह गलत भी नहीं है। नेहरू और इन्दिरा परिवार के सदस्यों के नाम से अनेक स्टेडियम, सड़कें, पुल और संस्थान बने हुए हैं। एक ही परिवार के लोगों के नाम पर उतने संस्थान बनना ठीक नहीं था, लेकिन फिर भी वे बने या बने हुए संस्थानों में उनके नाम जोड़ दिए गए। यह बहुत लोगों को अच्छा नहीं लगा। जो लोग आज सत्ता में हैं, उनको भी अच्छा नहीं लगा, लेकिन क्या इन सबका नाम अब बदल दिया जाएगा? जैसे इंदिरा गांधी के नाम पर इंदिरा गांधी खुला विश्वविद्यालय है, तो क्या यह नाम किसी शिक्षाविद के नाम बदल दिया जाएगा? कनॉट प्लेस का नाम बदलकर राजीव चौक कर दिया गया है, क्या वह नाम भी बदलेगा? इस तरह के सवाल लोगों के दिमाग में उभर रहे हैं।

भारत एक लोकतांत्रिक देश है। पांच साल में और कभी कभी उससे भी कम समय में चुनाव होते हैं। चुनाव में सरकारें बदलने की संभावना बनी रहती है। अनेक बार सरकार बदल भी गई है। इसलिए कोई पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि हमेशा उसी की सरकार रहेगी। आज भारतीय जनता पार्टी की सरकार है। हो सकता है कि 2024 के चुनाव के बाद वह सत्ता में रहे ही नहीं, तो फिर क्या उसके बाद बनी गैरभाजपा सरकार भी मोदी सरकार द्वारा नामित संस्थाओं, कार्यक्रमों और पुरस्कारों को बदल नहीं सकती है?

प्रधानमंत्री को इस संभावना या आशंका पर भी ध्यान देना चाहिए था। अटल, दीनदयाल उपाध्याय व अन्य भाजपा और उसकी पूर्ववती जनसंघ के नेताअें के नाम पर मोदी सरकार के दौरान अनेक कार्यक्रमों और संस्थानों का नामकरण किया गया है। राजीव गांधी खेल रत्न का नाम बदलने के बाद उसने एक खराब परंपरा शुरू कर दिया है और इसके कारण जो भी आज नामकरण हो रहा है, उसके आगे बने रहने की संभावना संदिग्ध हो गई है। अब राजनीति का जिस तरह से पतन हो गया है, उसमें प्रतिशोधात्क फैसले की गुंजायश काफी बढ़ गई है।

नरेन्द्र मोदी ने गुजरात में सरदार पटेल के नाम के एक स्टेडियम को अपने नाम करवा लिया। उन्होंने खुद दिल्ली के फिरोजशाह कोटला स्टेडियम का नाम बदलकर अरुण जेटली स्टेडियम कर दिया। अब लोग कह रहे हैं कि इन स्टेडियमों का नाम खिलाड़ियों के नाम पर रखा जाय। यह अभी से आशंका व्यक्त की जा रही है कि भविष्य में गैरभाजपा सरकार के बनने पर नरेन्द्र मोदी स्टेडियम का नाम भी बदल दिया जाएगा और अरूण जेटली स्टेडियम भी अरुण जेटली स्टेडियम नहीं रह जाएगा। और यदि ऐसा होता है, तो इसके जिम्मेदार खुद नरेन्द्र मोदी ही होंगे। (संवाद)