मौलाना आज़ाद ने अपनी किताब ‘‘इंडिया विन्स फ्रीडम’’ में इसका विस्तृत विवरण दिया है। इसी तरह मोरारजी भाई ने भी अपनी किताब ‘‘द स्टोरी ऑफ माई लाईफ’’ में इसका विवरण दिया है। मौलाना आज़ाद बंबई में भूलाभाई देसाई के घर में ठहरते थे। 8 अगस्त की रात को वे देर से घर आए। भूलाभाई की तबियत खराब थी उसके बावजूद भी वे मौलाना साहब की राह देख रहे थे। जब मौलाना साहब आए तो भूलाभाई ने उन्हें बताया कि उन्हें पता लगा है कि कल सुबह के पहले आपकी और अन्य कांग्रेस नेताओं की गिरफ्तारी हो जाएगी। मौलाना ने कहा कोई बात नहीं अब मेरे पास आज़ादी के चंद घंटे ही हैं इसलिए मैं उन्हें सुख चैन से बिताना चाहूंगा। मौलाना ने डिनर लिया और सोने चले गए। मौलाना साहब की आदत 4 बजे प्रातः उठने की थी। वे उसी समय उठे। परंतु थका हुआ महसूस कर रहे थे। इसलिए थोड़ी देर के लिए फिर लेट गए। लेटते ही उनकी नींद लग गई। थोड़ी देर में वे पाते हैं कि भूलाभाई के पुत्र धीरूभाई उन्हें जगाने की कोशिश कर रहे हैं। मौलाना साहब की नींद खुल गई। धीरूभाई ने उन्हें बताया कि बंबई के डिप्टी पुलिस कमिश्नर उन्हें गिरफ्तार करने आए हैं। वे मकान के बरामदे में आपका इंतजार कर रहे हैं। मौलाना साहब गए और उन्होंने पुलिस अधिकारी को कहा कि मुझे तैयार होने में कम से कम दो घंटे का समय लगेगा। अधिकारी ने कहा कोई बात नहीं सर, मैं इंतज़ार करूंगा।

तैयार होने के बाद मौलाना साहब पुलिस अधिकारी के साथ कार में बैठकर रवाना हो गए। उन्हें बंबई के सबसे बड़े रेलवे स्टेशन ले जाया गया। वहां वे पाते हैं कि उनके अतिरिक्त अनेक नेता भी स्टेशन पर लाए गए हैं। स्टेशन पर सन्नाटा था और आसपास की बस्ती में भी सन्नाटा था। मौलाना ने देखा कि जवाहरलाल नेहरू, सरोजनी नायडू आदि भी स्टेशन पर हैं। थोड़ी देर में महात्मा गांधी लाए गए। मौलाना आजाद लिखते हैं ‘‘हमें ट्रेन में बैठाकर रवाना कर दिया गया। हमें यह भी नहीं बताया गया कि कहां ले जाया जा रहा है। ट्रेन रवाना होते ही गांधी जी ने हम सबको बुलाया और आगे क्या होगा इसके बारे में विस्तृत विचार-विमर्श हुआ। थोड़ी देर के बाद एक पुलिस अधिकारी आता है और हमसे कहता है कि अब आप लोग अपने-अपने डिब्बे में चले जाईए सिर्फ सरोजनी नायडू गांधी जी के साथ रहेंगी।

‘‘देश की जनता को यह पता लग गया था कि कांग्रेस के नेताओं की गिरफ्तारी हो गई है। इसलिए रास्ते में जो भी स्टेशन आते थे वहां भारी तादाद में लोग महात्मा गांधी ज़िंदाबाद के नारे लगा रहे थे। स्टेशनों पर किसी को घुसने नहीं दिया जाता था। परंतु आसपास की बस्तियों से लोग इकट्ठे होकर नारे लगा रहे थे। रास्ते में एक स्टेशन पर ट्रेन रोकी गई। ट्रेन के रूकते ही भीड़ ने स्टेशन के भीतर प्रवेश करने का प्रयास किया। इस पर उपस्थित पुलिस ने भीड़ पर लाठी बरसाना चालू कर दिया। जवाहरलाल नेहरू अपने डिब्बे की खिड़की पर बैठे हुए थे। पुलिस को लाठी बरसाते देखकर नेहरू जी एकदम डिब्बे से कूद गए और पुलिस को डांटते हुए कहा कि यह क्या कर रहे हो। थोड़ी देर में शंकरराव देव भी डिब्बे से उतरकर पुलिस पर बरस पड़े।‘‘ मौलाना आज़ाद ने नेहरू को डिब्बे में वापिस आने को कहा। ‘‘मेरा आदेश मानकर नेहरू तो वापिस आ गए पर शंकरराव देव नहीं आए। उन्हें अंततः पुलिस ने ज़बरदस्ती खींचकर ट्रेन में फिर से बैठा दिया।’’

पूना आने पर महात्मा गांधी और सरोजनी नायडू को उतार लिया गया। बाद में पता लगा कि आगा खां महल को जेल बना दिया गया है और गांधी जी और सरोजनी नायडू को वहीं रखा जायेगा। ट्रेन आगे बढ़ी, बाद में हमें पता लगा कि हमें अहमदनगर ले जाया जा रहा है और वहां के एक किले में हमें रखा जायेगा। अहमदनगर जिले का नियंत्रण मिलिट्री के हाथों में था। जेल में प्रवेश करते ही हमसे रेडियो छीन लिया गया। रात को हमें लोहे की प्लेटों में खाना परोसा गया। हमने इसके खिलाफ अपनी नाराज़गी प्रकट की। हमें आदेश दिया गया कि हम किसी से भी पत्र व्यवहार नहीं कर सकते। हमें यह भी बताया गया कि हमें समाचारपत्र भी नहीं दिए जाएंगे। जेल में समय काटना बड़ा कठिन होता है। समय भी बहुत होता है। एक दिन हम सबने विचार किया कि खाली समय का क्या उपयोग किया जाए। इस पर यह तय हुआ कि एक फूलों का बगीचा लगाया जाए। हमने जेल के अधिकारियों से कहा कि वे हमें फूलों के बीज, मिट्टी आदि दिलवायें। बस क्या था हम सब लोग बगीचा बनाने में लग गए। नेहरू जी को गुलाब बहुत पसंद थे। गुलाब के फूल भी उग गए। फूलों को देखकर हमें अद्भुत आनंद आता था। हम अपनी पत्र लिखने और अखबार पाने की मांग पर अड़े रहे। बाद में हमें बताया गया कि हमें एक अखबार मिल सकता है और सप्ताह में एक बार हम अपने रिश्तेदार को पत्र लिख सकते हैं।

‘‘बाद में हमने जेल अधिकारियों से कहा कि यदि टाईम्स ऑफ इंडिया की पिछली प्रतियां भी दिला दी जाएं तो अच्छा होगा। हमारी यह बात मान ली गई। फिर हमें अखबारों से पढ़कर यह पता लगा कि सारे देश में हलचल मची हुई है। आक्रोशित भीड़ों ने पुलिस थानों, रेलवे स्टेशनों आदि में आग लगा दी है। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियां हुई हैं और स्थिति नियंत्रण के बाहर होती जा रही है।

‘‘जेल में रहने के दौरान बापू के साथ दो त्रासदियां हुईं। पहली, उनके सबसे विश्वस्त सहयोगी महादेव देसाई की मृत्यु हो गई। महादेव देसाई बहुत बीमार थे और हमें बताया गया कि उन्होंने अंतिम श्वास गांधी जी की गोद में ली। दूसरी त्रासदी थी बापू की जीवन संगिनी कस्तूरबा की मृत्यु।

‘‘महात्मा गांधी के जीवन का एक ऐसा अद्भुत प्रसंग है जब मृत्यु ने और ब्रिटिश साम्राज्यवाद ने उनकी इच्छाशक्ति के सामने घुटने टेके।

आगा खां महल में रहने के दौरान गांधी जी ने घोषणा की कि वे 21 दिन का अनशन करेंगे। उस समय गांधी जी का स्वास्थ्य वैसे भी खराब था। उस दरम्यान ब्रिटिश साम्राज्य एक गंभीर चुनौती का सामना कर रहा था। एक तरफ उसे हिटलर का मुकाबला करना पड़ रहा था और दूसरी तरफ भारत की जनता के आक्रोश का। ‘अंग्रेज़ों भारत छोड़ो’ का नारा दिया जा चुका था। ब्रिटिश सरकार को लगा कि गांधी जी 21 दिन के उपवास को पूरा नहीं कर पायेंगे और उससे पहले ही उनकी मृत्यु हो जायेगी। ब्रिटिश शासन इस बात पर आश्वस्त था कि 7 दिन के भीतर ही गांधी जी की मृत्यु हो जाएगी। ब्रिटिश सरकार के डाक्टरों ने भी इसी तरह का अनुमान लगाया था। गांधी जी की मृत्यु अवश्यंभावी है ये सोचकर यह तय कर लिया गया कि आगा खां महल में ही उनका अंतिम संस्कार किया जायेगा। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई थी। गांधी जी की चिता के लिए ढेर-सारी चंदन की लकड़ी महल में मंगा ली गई थी। परंतु सब के अनुमान धरे रह गए और गांधी जी ने 21 दिन का उपवास सफलतापूर्वक पूरा कर लिया।

‘‘ब्रिटिश साम्राज्यवादी सोचते थे कि गांधी जी की मृत्यु के बाद भारत छोड़ो आंदोलन ठप्प हो जाएगा परंतु ऐसा नहीं हुआ और अंततः गांधी जी ने मौत और ब्रिटिश साम्राज्यवाद को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया।‘‘

जब मौलाना आज़ाद कलकत्ता से बंबई के लिए रवाना हुए थे उस समय उनकी पत्नी भी बीमार थीं। ‘‘बीमारी के बावजूद वे घर के गेट तक मुझे छोड़ने आईं थीं। बाद में उनकी बीमारी की खबर आती रही और अंततः एक दिन यह तार आया कि मेरी पत्नी का देहावसान हो गया है। कलकत्ता के डाक्टरों ने बार-बार ब्रिटिश सरकार से सिफारिश की कि मुझे जेल से कलकत्ता आने की इजाज़त दी जाए परंतु सरकार ने यह बात नहीं मानी। इसी बीच भोपाल में रहने वाली मेरी बहन आबरू बेगम की मृत्यु भी हो गई। उनकी मृत्यु की खबर भी मुझे जेल में मिली’’। कुछ समय बाद गांधी जी को रिहा कर दिया गया क्योंकि डाक्टरों की यह राय थी कि उनकी शारीरिक स्थिति ठीक नहीं है और कभी भी उनकी मृत्यु हो सकती है। अंग्रेज़ सरकार जानती थी कि गांधी जी की मृत्यु के दुष्परिणाम क्या होंगे। इसलिए गांधी जी को रिहा कर दिया गया।

‘‘जहां तक मेरा सवाल था मुझे भी दूसरे स्थान पर ले जाने का फैसला हो गया। जहां मुझे ले जाया गया वहां बहुत गर्मी थी। इसके बाद मुझे एक ठंडे स्थान पर ले जाया गया। अंततः मुझे रिहा कर दिया गया और मुझे कलकत्ता जाने की इजाजत दे दी गई। कलकत्ता पहुंचते ही अनेक संवाददाता मुझसे मिलने आए। ज्योहीं मैं स्टेशन पर उतरा मैंने देखा कि भारी संख्या में लोग मेरा स्वागत करने आए हैं। मैंने देखा कि मेरे स्वागत के जुलूस के आगे एक बैंडबाजा है। मैंने मेरे सहयोगी नेताओं से पूछा की बैंड क्यों लाया गया है यह ठीक नहीं है। यह कोई उत्सव का अवसर नहीं है क्योंकि अभी भी हजारों की संख्या में लोग जेल में हैं जब तक वे सब रिहा नहीं हो जाते किसी भी प्रकार का उत्सव मनाना उचित नहीं है। कलकत्ता आते ही मुझे अपनी पत्नी की याद आई और मुझे तीन वर्ष पहले बिदा देते हुए उनका चेहरा याद आया। तीन वर्ष के बाद मैं वापिस आया हूं परंतु अब मेरी पत्नी तो कब्र में है और मेरा घर तो खाली है। मुझे प्रसिद्ध कवि वर्डस बर्थ की कविता याद आई। But she is in her grave and oh the difference to me (मेरी पत्नी कब्र में है और मेरे लिए यह कितना बड़ा अंतर है)। मैं कब्रिस्तान गया। मेरी कार में ढेर सारे फूल थे, मैंने उन्हें उठाकर अपनी पत्नी की कब्र पर रखा और फातेहा पढ़ी। (संवाद)