देश की अर्थव्यव्यवस्था के बारे में मोदी सरकार की समझ कितनी अधकचरी है, हम नोटबंदी के इसके निर्णय में देख चुके हैं। खुद प्रधानमंत्री का कहना था कि शुरुआती परेशानी के बाद नोटबंदी लोगों के जीवन को खुशहाल कर देगी। लेकिन उसके कारण बर्बादी के अलावा देश को कुछ नहीं मिला। जिन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए नोटबंदी को सही करार दिया जा रहा था, उनमें से एक भी उद्देश्य हासिल नहीं हुए। ये तीन कृषक कानून नोटबंदी के फैसले से भी ज्यादा घातक हैं, जो देश की खाद्य सुरक्षा को खतरे में डालने की क्षमता रखते हैं और किसान मजदूरों में तब्दील हो जाएंगे, यह तो अपनी जगह है ही।
बहरहाल, लखीमपुर खीरी कांड में बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जो रवैया अपना रखा है, वह बहुत ही अलोकतांत्रिक है। डॉक्टर राममनोहर लोहिया का कहना था कि लोकराज लोकलाज से चलता है। वर्तमान मामले में लोकलाज का तकाजा यही है कि प्रधानमंत्री अपने गृहराज्य मंत्री अजय मिश्र को अविलंब बर्खास्त करें। इस नरसंहार में अजय मिश्र की गाड़ी का ही इस्तेमाल हुआ है और पुलिस में दर्ज मुकदमे के अनुसार अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र उस गाड़ी पर सवार होकर उससे आंदोलनरत किसानों को कुचलवा दिया। मंत्री बार बार कह रहे हैं कि उस हत्याकांड में उनकी गाड़ी का इस्तेमाल हुआ। उसके बावजूद न तो वे अपना पद छोड़ रहे हैं और न ही प्रधानमंत्री उन्हें बर्खास्त कर रहे हैं। मंत्री की संलिप्तता न सिर्फ उनकी गाड़ी के इस्तेमाल में है, बल्कि कांड के एक सप्ताह पहले उन्होंने कुछ ऐसा की करवा देने की धमकी भी दी थी। उन्होंने धमकी और उनके बेटे ने उस धमकी पर अमल कर दिया। जाहिर है, हत्या के लिए मंत्री सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं और मुकदमे मे उनका नाम धमकी देने वाले व्यक्ति के रूप में शामिल है। जाहिर है, मंत्री बाप और उनके बेटे दोनों की पुलिस द्वारा गिरफ्तारी होनी चाहिए, लेकिन इन पंक्तियों के लिखे जाने तक उत्तर प्रदेश पुलिस ने अभी तक दोनों में से किसी को गिरफ्तार नहीं किया है। उलटे मंत्री बयान जारी करते दिख रहे हैं कि उनका बेटा घटनास्थल पर मौजूद ही नहीं था, जबकि प्रत्यक्षदर्शी उसकी वहां की उपस्थिति के सबूत दे रहे हैं। एक विडियो मे भी मंत्री पुत्र वहां दिख रहे हैं।
लखीमपुर खीरी कांड के बाद भारतीय जनता पार्टी और उसकी केन्द्र और राज्य सरकारों को जो करना चाहिए, वह वे नहीं कर रही है। उलटे उसे जो नहीं करना चाहिए, वह कर रही है। वह विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर रही है और उन्हें घटना स्थल पर जाने से रोक नहीं है। यही नहीं भाजपा के लोग मामले के सांप्रदायिककरण का विफल प्रयास भी कर रहे हैं। यह सच है कि अभी सत्ता मे भाजपा है, लेकिन उसे यह नहीं भूलना चाहिए अनंतकाल के लिए उसे सत्ता नहीं मिली है। उसे चुनावों में मतदाताओं का सामना करना है। उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव तो अगले 5 या 6 महीने में ही होने हैं और पूरा प्रदेश चुनावी मोड मे आ चुका है। ऐसे माहौल में लखीमपुर खीरी में उसके द्वारा दिखाया गया उन्माद और उसके बाद दिखाई जा रही असहिष्णुता उसे कहीं का नहीं रहने देगी। वैसे भी 2019 के बाद जितने भी विधानसभा चुनाव हुए हैं, उनमें असम को छोड़कर सभी में भाजपा हारी है। बिहार में उसकी जीत नीतीश कुमार से गठबंधन के कारण हुई।
किसान आंदोलन ने भाजपा की ऐसी दुर्गति कर दी है कि हरियाणा में उसे पंचायत चुनाव कराने की हिम्मत नहीं हो रही है। पंजाब में वह पूरी तरह साफ हो चुकी है। अकाली दल उसका वहां साथ छोड़ चुका है और उसके उम्मीदवारों को जनता चुनाव प्रचार करने तक नहीं देती। उत्तर प्रदेश में भी पंचायती चुनावों में भाजपा हारी ही थी, बाद के अप्रत्यक्ष चुनावों में सत्ता और पैसे के बूते जीत हासिल की। लेकिन लखीमपुर खीरी में हुए नरसंहार के बाद उत्तर प्रदेश में माहौल भाजपा के खिलाफ और भी बिगड़ गया है। पहले यह आंदोलन मुख्यतः उत्तर प्रदेश तक सीमित था, लेकिन इसकी जद में पूरा प्रदेश आ चुका है और इस माहौल में उसकी जीत न केवल संदिग्ध हो गई है, बल्कि उसके उम्मीदवारों का चुनाव प्रचार भी मुश्किल हो जाएगा।
भारतीय जनता पार्टी के पास अभी भी समय है। उसकी केन्द्र सरकार अभी भी तीनों कृषक कानूनों को वापस लेकर स्थिति शांत कर सकती है और राजनैतिक प्रक्रिया को अहिंसक रूप से आगे बढ़ाने में सहायता कर सकती है। लेकिन वह उलटा काम कर रही है। अव्वल तो वह इन कानूनों को वापस लेने को तैयार नहीं और उसके साथ आंदोलनरत किसानों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल कर रही है। दिल्ली बोर्डर से किसानों को हिंसा के द्वारा हटाने की कोशिश की गई थी, जिसमें वह विफल हुई। लखीमपुर खीरी में भी उसने किसानों के खिलाफ हिंसा का इस्तेमाल किया, लेकिन इसके कारण किसान आंदोलन न केवल तीव्रता में, बल्कि विस्तार में भी ज्यादा हो गया है। भाजपा के लिए उत्तराखंड की जीत भी मुश्किल हो गई है।
सच तो यह है कि जब से मोदी सरकार ने तीन कृषि कानूनों का निर्माण किया है, तब से ही भाजपा के बुरे दिन शुरू हो गए हैं। उस मुद्दे पर मोदी सरकार एक हारती हुई लड़ाई लड़ रही है। (संवाद)
लखीमपुर खीरी नरंसहार
एक हारती हुई लड़ाई लड़ रही है मोदी सरकार
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-10-06 09:53
भाजपा नेताओ के सत्ता-उन्माद ने लखीमपुर खीरी में 8 लोगो की जान ले ली। उनमें से 4 तो भाजपा के ही थे। जिस तरह से किसानो पर लखीमपुरी खेरी में मोटर वाहन से किया गया हमला भाजपा के लिए भी घातक साबित हुआ है, उसी तरह किसान आंदोलन के खिलाफ भाजपा द्वारा अपनाया जा रहा रवैया खुद उसके लिए घातक साबित होगा। करीब साल भर से किसान जनविरोधी तीन कृषक कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार अपनी बात पर अडिग है। सरकार को बार बार बताया जा रहा है कि किस तरह ये कानून न केवल किसानों के खिलाफ है, बल्कि देश के एक आम आदमी के खिलाफ भी है, लेकिन मोदी सरकार अपनी जिद पर अड़ी हुई है और कह रही है कि ये कानून देश के हित में है।