आशीष मिश्र की गिरफतारी भी तब हुई, जब सुप्रीम कोर्ट ने उसके नहीं गिरफ्तार किए जाने पर नाराजगी जाहिर की। जब दफा 302 के अदर प्राथमिकी दर्ज की जाती है, तब गिरफतारी में पुलिस देर नहीं करती और इसके लिए आरोपी को समय नहीं दिया जाता। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी वकील से साफ साफ पूछा कि क्या यूपी पुलिस इसी तरह के किसी अन्य मामले में भी गिरफ्तारी नहीं करती? वकील साहब के पास कोई जवाब नहीं था। सीबीआई जांच की उपयोगिता पर भी सुप्रीम कोर्ट ने खुद सवाल खड़ा किया कि उससे भी फर्क नहीं पड़ने वाला। फिर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस के प्रमुख को आदेश जारी किया कि वे यह सुनिश्चित करें कि सबूत नष्ट न हों। उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए अगली तिथि मुकर्रर कर दी।
सुप्रीम कोर्ट इधर गिरफ्तारी नहीं होने पर चिंता व्यक्त कर रहा था और उधर यूपी में लगभग उसी समय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कह रहे थे कि अभियोग लगा देने मात्र से किसी को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। जाहिर है, योगी आदित्यनाथ का मूड कुछ और ही था। गिरफ्तारी के द्वारा वह यह संदेश नहीं देना चाहते थे कि बीजेपी की सरकार पार्टी के किसी मंत्री के बेटे को भी गिरफ्तार कर सकती है। लेकिन जिस समय योगी उस तरह का बयान दे रहे थे, उस समय उन्हें शायद यह नहीं पता था कि सुप्रीम कोर्ट ने आशीष के गिरफ्तार नहीं किए जाने को गंभीरता से लिया है।
बहरहाल, आशीष मिश्र गिरफ्तार हो गया है। उसकी गिरफ्तारी देर से हुई, लेकिन एक और गिरफ्तारी भी जरूरी है और वह है खुद मंत्री अजय मिश्र की। वे केन्द्र में गृह राज्य मंत्री हैं। इस पूरे मामले में जो बातें सामने आ रही हैं, उनसे स्पष्ट है कि इस हत्याकांड का मुख्य अभियुक्त तो अजय मिश्र को ही बनाया जाना चाहिए, भले ही उनकी वारदात की जगह पर मौजूदगी नहीं थी। किसी ने भी यह नहीं कहा है कि अजय मिश्र उन गाड़ियों में थे, जिनसे हत्याकांड को अंजाम दिया गया। लोग उनके बेटे की उपस्थिति को ही बता रहे हैं, लेकिन एक तथ्य यह भी है जिस थार गाड़ी से लोगों को कुचला गया, वह मंत्री अजय मिश्र की ही गाड़ी थी। उस गाड़ी में मंत्री के ही लोग थे और उसे मंत्री का ड्राइवर ही चला रहा था। जिस गाड़ी से नरसंहार को अंजाम दिया गया हो, उसके मालिक को गिरफ्तार नहीं किया जाना आश्चर्यजनक है। यदि मंत्री का बेटा यह स्वीकार करता कि गाड़ी में वही था, तब तो शायद मंत्री को गिरफ्तार करना जरूरी नहीं होता, क्योंकि तब गाड़ी के दु््रुपयोग का आरोप बेटे पर ही लगता। लेकिन गिरफ्तारी के बावजूद बेटा कह रहा है कि वह उस समय वहां नहीं था। पिता खुद कह रहे हैं कि गाड़ी में उसका बेटा नहीं था। यदि गाड़ी में बेटा नहीं था, तो सवाल उठता है कि ड्राइवर ने किसके कहने पर लोगों के ऊपर गाड़ी चढ़ा दी? पहला शक तो गाड़ी के मालिक मंत्री पर ही जाता है, जो गाड़ी का ही नहीं, बल्कि चालक का भी मास्टर है।
चालक भी मारा जा चुका है। वह हत्याकांड के बाद भीड़ की हिंसा का शिकार हो गया। वह यह बताने के लिए अब जिंदा नहीं है कि मंत्री के बेटे या खुद मंत्री के कहने पर उसने प्रदर्शनकारी किसानों पर अपनी गाड़ी चढ़ा दी। इसलिए पहला शक तो मंत्री पर ही जाता है और इस शक के भी ठोस आधार हैं। कांड के दो दिन पहले ही मंत्री ने आंदोलनकारी किसानों को धमकी दी थी कि उनकी कुश्ती समारोह के आयोजन को डिस्टर्ब नहीं किया जाय। गौरतलब हो कि देश के अन्य भागों के साथ साथ उत्तर प्रदेश में भी किसान आंदोलन चल रहा है और आंदोलनकारी मंत्रियो, सांसदों और विधायकों का घेराव करते हैं। बहुत स्थानों पर उनके आयोजनों में बाधा भी डाली जाती है। मंत्री अजय मिश्र द्वारा आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता और समारोह में उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे और आयोजक मंत्री को पहले से ही कुछ शंका थी कि केशव प्रसाद को काला झंडा वगैरह दिखाया जा सकता है। उस आशंका को देखते हुए मंत्री अजय मिश्र ने धमकी दे डाली कि किसान यह समझ लें कि वे सिर्फ मंत्री और सांसद नहीं हैं।
उनकी धमकी के कारण किसान और उत्तेजित हो गए। पता नहीं वे केशव प्रसाद मौर्य के सामने विद्रोह प्रदर्शन करते या नहीं, पर मंत्री अजय मिश्र की धमकी और चुनौती के कारण उन्होंने विरोध प्रदर्शन की बड़ी तैयारी कर डाली, जिसमें दूर से भी किसान आ गए। और उसके बाद जो हुआ, वह मंत्री मिश्र की दो दिन पहले दी गई धमकी के अनुरूप ही हुआ। पहले धमकी और फिर धमकी का अमल में जाना, ये ऐसा तथ्य है, जो मंत्री अजय मिश्र को इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी बना देता है। लिहाजा उनकी गिरफ्तारी तो सबसे पहले होनी चाहिए थी। लेकिन वे मंत्री भी हैं और वह भी गृह महकमे का। इसलिए उनको गिरफ्तार करने में पुलिस को झिझक होना स्वाभाविक है। पर प्रधानमत्री को चाहिए था कि वे उन्हें हटा देते। उनका अपने पद पर बना रहना दुर्भाग्यपूर्ण है। (संवाद)
लखीमपुर खीरी नरसंहार और उसके बाद
मंत्री अजय मिश्र का इस्तीफा नहीं होना दुर्भाग्यपूर्ण
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-10-12 10:26
उत्तर प्रदेश के लखीमरपुर खीरी में किसानों के हुए नरसंहार के एक सप्ताह से भी ज्यादा हो गए हैं, लेकिन पुलिस प्रशासन ने अबतक जो कार्रवाई की है, वह अपर्याप्त है। हालांकि आशीष मिश्र, जिसे हत्या कांड का मुख्य अभियुक्त बताया जा रहा है, को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन उसकी गिरफ्तारी भी बहुत विलंब से हुई है और पुलिस द्वारा हुई विलंबित कार्रवाई का ही यह नतीजा है कि जब उसे पूछताछ के लिए बुलाया गया, तो उसके पास करीब 10 लोगों द्वारा तैयार किए गए विडियो थे, जिनमें उसे निर्दोष बताया जा रहा था। उस विडियो में लोग दावा कर रहे थे कि वारदात के समय वह उनके पास था। जाहिर है, उसे जो समय मिला, उसका इस्तेमाल उसने अपने पक्ष में सबूत तैयार करने में लगाया। सहज अंदाज लगाया जा सकता है कि उसने यथासंभव कोशिश की होगी कि उसके खिलाफ जो सबूत है, उसे नष्ट कर दिया जाय।