भाजपा, बसपा, डीएमके, सपा, राजद तथा अन्य अनेक पार्टियां जाति जनगणना की मांग कर रही थी, लेकिन इस मसले पर केन्द्रीय मंत्रिमंडल में सर्वसम्मति नहीं थी। कांग्रेस भी इस मसले पर विभाजित थी। खुद गृहमंत्री पी चिदंगरम जाति जनगणना के पक्षधर नहीं थे। जब मंत्रिमंडल मे इस मसले पर विचार विमर्श हो रहा था, तो कानून मंत्री विरप्पा मोइली, व्यालार रवि, ए राजा, अलागिरी जैसे मंत्री जाति जनगणना का समर्थन कर रहे थे, जबकि आनंद शर्मा जैसे मंत्री इसका विरोध कर रहे थे।
आखिर जाति जनगणना की मांग होती क्यों है? अनेक जाति संगठन इसकी मांग करते रहे हैं। सामाजिक संगठनों द्वारा इसकी मांग समझ में आती है। पर राजनैतिक पार्टियां इसकी मांग क्यों करतीं? लालू, मुलायम, शरद जैसे नेता कहते हैं कि जाति एक सचाई है और इससे हम मुह नहीं चुरा सकते। वें कहते हैं कि सामाजिक कल्याण की नीतियों को अपनाने और उन्हें सफल बनाने के लिए जाति का आंकड़ा चाहिए।
भारतीय जनता पार्टी, वामदल व अधिकांश पार्टियां जाति जनगणना का समर्थन कर ही हैं। वे अपने अपने कारणों से इसका समर्थन कर रही हैं। भाजपा का जनाधार पिछड़े वर्गों तक फैला हुआ है। उनके सांसदों मं पिछड़े वर्गों के लोगों की संख्या बहुत है। उनके अनेक मुख्यमंत्री भी पिछड़े वर्ग से हैं। जाहिर है, वह जाति जनगणना का विरोध करके पिछड़े वर्गों के अपने जनाधार को कमजोर नहीं कर सकती। वामपंथी दलों को भी अपनी राष्ठªीय राजनति करने के लिए अन्य दलों के साथ की जरूरत है और वे सभी मसलों पर उनसे मतभेद नहीं रख सकते।
क्या जाति जनगणना की वास्तव में कोई जरूरत है? क्या इससे समाज में टकराव को बढ़ावा मिलेगा अथवा इससे सामाजिक विषमता दूर होगी? इसके पक्ष में अनेक बाते कही जा रही हैं। इसके खिलाफ भी अनेक तर्क दिए जा रहे हैं। पक्ष और विपक्ष में की जा रही दोनों बातों में कुछ दम हैख् तो दोनों में कुछ खामियां भी हैं।
सरकारी स्तर पर इसकी मांग सबसे पहले राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की तरफ से आई। वह किसी जाति को पिछड़ा वर्ग में शामिल करने के दावों की जांच के लिए जाति से संबंधित आंकड़ा चाहता था। उसके बाद केन्द्र सरकार के सामाजिक न्याय और आधिकारिता मंत्रालय की ओर से भी इसकी मांग उठी। मंत्रालय को अपने कार्यकारी योजनाओं को चलाने और उसके प्रभावों की जांच के लिए जाति के आंकड़े चाहिए। सरकार ने उनकी मांगों पर तो उत्साह नहीं दिखाया, लेकिन जब इसकी राजनैतिक मांग तेज हुई, तो उसे इसके बारे में निर्णय करना पड़ रहा है।
जाति की जनगणना भारत में पिछली दफा 1931 में हुई थी। 1941 में जनगणना हुई ही नहीं, क्योंकि उस समय दूसरा महायुद्ध चल रहा था और सरकार का पूरा ध्यान युद्ध पर था। 1947 में देश आजाद हुआ। स्वतंत्र भारत में पहली बार जनगणना 1951 में हुई। उसमें जाति को शामिल नहीं किया गया। बल्लभ भाई पटेल तब गृहमंत्री थे। उन्होंने जाति जनगणना के खिलाफ आदेश दिए और कहा कि उसकी जरूरत नहीं। उनका मानना था कि इससे सामाजिक एकता भंग होती है। जिसके कारण सरदार पटेल ने जाति जनगणना पर रोक लगाई थी, वह कारण आज भी मौजूद है। (संवाद)
जाति जनगणना की राजनीति
कांग्रेस में इस मसले पर एक राय नहीं
कल्याणी शंकर - 2010-05-14 09:21
आखिर कांग्रेस जाति जनगणना के लिए सहमत हुई क्यों? उसके अंदर इस मसले पर मतभेद हैं, इसके बावजूद वह इस पर सहमत हो गई। इसका कारण कांग्रेस नेताओं का लालू यादव और मुलायम सिंह यादव के साथ कोई सौदेबाजी हो सकती है, क्योंकि जाति जनगणना पर सहमति के बाद केन्द्र सरकार ने परमाणु दायित्व विधेयक संसद में पेश कर दिया, क्योंकि इस विधेयक पर दोनेां नेताओं का समर्थन केन्द्र सरकार को हासिल था।