इस तरह की रियायतें जनता को देना बहुत आम बात है। खासकर के जब चुनाव आते हैं, तो सरकारें इस तरह का कदम उठाती हैं, ताकि सत्तारूढ़ पार्टी को फिर से सत्ता में लाया जा सके। चुनावी घोषणा पत्र में भी एक से बढ़कर एक लुभावनी वायदे किए जाते हैं, ताकि चुनाव जीता जा सके। भारत के इतिहास में इस तरह की घटनाएं अनगिनत हैं और अनेक बार इस तरह की घटनाओं का लाभ देखने को मिलता रहा है। इसलिए जब मुख्यमंत्री चन्नी ने जब लोकलुभावन निर्णय लिए, तो उसमें न तो कुछ भी नया था और न कुछ भी गलत।
लेकिन अपनी सरकार का वह निर्णय सिद्धू को नागवार गुजरा और उन्होंने मुख्यमंत्री चन्नी के उन लोकलुभावन निर्णयों के लिए आलोचना कर दी और कहा। जिस तरह की हरकत सिद्धू ने की वैसी आजतक भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में कभी नहीं हुआ होगा। जनकल्याण के लिए किए गए निर्णयों को सरकारी पार्टी का अध्यक्ष विरोध करे, यह अपने आपमें एक बड़ा अजूबा है।
पर अजूबा का दी दूसरा नाम नवजोत सिंह सिद्धू हैं। उनकी पहचान एक क्रिकेट स्टार के रूप में थी। वे भारतीय टीम के लिए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेला करते थे। अपने खेल से उन्होंने लोगों के दिलों पर छाप छोड़ी। जब उन्होंने खेल का मैदान छोड़ा, तो क्रिकेट कमेंटरी और समीक्षा की दुनिया में आ गए। क्रिकेट कमंटेटरे के रूप में उन्होंने और भी ज्यादा नाम कमाया। उनकी बोलने की विशिष्ट शैली थी। वह शैली क्रिकेट के मनोरंजन को और भी बढ़ा देने वाली थी। वे एक क्रिकेट स्टार से ज्यादा सफल एक क्रिकेट कमंटेटर के रूप में रहे।
उसके बाद उनकी पहचान एक कॉमेडियन की बनी। क्रिकेट समीक्षा में वे कॉमेडी का तड़का लगाया करते थे। इससे क्रिकेट समीक्षा और भी मनोरंजक हो जाती थी। अपनी हास्य कला का उन्होंने क्रिकेट समीक्षा से बाहर भी इस्तेमाल करना शुरू कर दिया और हास्य प्रतियोगिताओं और कार्यक्रमों में वे निर्णायक और अतिथि की भूमिका में आने लगे और एक अच्छे कॉमेडियन के रूप में वे लोगों का मनोरंजन करने लगे। लोगों ने उन्हें बहुत पसंद भी किया। जिन कार्यक्रमों में वे होते, उन्हें देखने वालों की संख्या अच्छी खासी हुआ करती थी।
मनोरंजन की दुनिया से सिद्धू राजनीति में प्रवेश कर गए। भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें अपना लिया और उनका भी जमकर मजाक बनाया। कुछ लोगों का कहना है कि राहुल गांधी को पप्पू नाम उन्होंने ही दिया था, हालांकि कुछ लोग मानते हैं कि राहुल का पप्पू कहने वाले पहले व्यक्ति आसाराम बापू थे। इसमें कौन सी बात सच्ची है, इसे तो दावे से नहीं कहा जा सकता है, लेकिन राहुल गांधी को पप्पू कहकर सिद्धू ने खूब माजक उड़ाया। उस समय वे भारतीय जनता पार्टी में थे। वे अमृतसर से भाजपा के सांसद भी थे, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्हें वहां से टिकट नहीं दिया गया। उनकी जगह अरुण जेटली को टिकट मिला। अरुण जेटली को टिकट मिला, यह कहना शायद गलत होगा। सच तो यह है कि अरुण जेटली ने सिद्धू को हठाकर खुद अपना टिकट अमृतसर स ेले लिया।
उसके बाद सिद्धू भाजपा नेतृत्व से नाराज हो गए। उन्हें राज्यसभा में राष्ट्रपति द्वारा नामित भी कराया गया, लेकिन सिद्धू ने वहां से इस्तीफा दे दिया। सिद्धू की अकाली दल से भी नहीं पट रही थी। वे चाहते थे कि भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर पंजाब का चुनाव लड़े। लेकिन भाजपा अकाली दल का साथ छोड़ने को तैयार नहीं हुई। अरुण जेटली और अकाली दल से नाराज सिद्धू ने भाजपा को ही छोड़ दिया।
भाजपा छोड़ने के बाद सिद्धू आम आदमी पार्टी में शामिल होना चाह रहे थे। 2014 के चुनाव में आम आदमी पार्टी का पंजाब में प्रदर्शन अच्छा रहा था। 2015 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को दिल्ली में विशाल बहुमत मिला था। सिद्धू को लगा कि आम आदमी पार्टी से जुड़कर वे पंजाब का मुख्यमंत्री बन सकते हैं। लिहाजा, उन्होंने आम आदमी पार्टी के नेताओं से बात करनी शुरू कर दी। आम आदमी पार्टी उन्हें अपनाना तो चाहती थी, लेकिन मुख्यमंत्री उम्मीदवार बनाने का कोई वायदा नहीं कर सकी। उनकी पत्नी भी पंजाब से विधायक थीं। आम आदमी पार्टी ने दोनों को एक साथ टिकट देने से भी मना कर दिया और कहा कि केजरीवाली के नेतृत्व वाली पार्टी परिवारवाद के खिलाफ है, इसलिए एक परिवार से एक को ही टिकट मिलेगा।
आम आदमी पार्टी से निराश सिद्धू कांग्रेस में शामिल हो गए। कांग्रेस की सरकार बनने पर वे मंत्री भी हो के रूप में अपनी जिम्मेदारी ढंग से निभा नहीं पाए। वे खुद भी मुख्यमंत्री के दावेदार थे, लिहाजा मुख्यमंत्री अमरीन्दर सिंह से उनका तनाव बना रहा और अंत में कैप्टन ने उनको अपनी टीम से उन्हें अयोग्य और अक्षम मंत्री बताते हुए बाहर कर दिया।
लेकिन राहुल और प्रियंका गांधी से उन्होंने बेहतर संबंध बना लिए और फिर कैप्टन का जीना हराम कर दिय। राहुल और प्रियंका भी कैप्टन अमरीन्दर सिंह को मुख्यमंत्री के पद से हटाना चाहते थे और ऐसा करने के लिए उन्होंने सिद्धू का इस्तेमाल करना शरू कर दिया। पहले कैप्टन की इच्छा के खिलाफ सिद्धू को पंजाब कां्रग्रेस का अध्यक्ष बना दिया और फिर उन्हें मुख्यमंत्री के पद से भी हटा दिया। लेकिन सिद्धू मुख्यमंत्री पद से वंचित ही रह गए। अब वही सिद्धू कांग्रेसका काल बन गए हैं। उन्होंने एक बार अध्यक्ष पद से इस्तीफे की घोषणा भी कर दी, लेकिन सोनिया गांधी ने उसे स्वीकार करने से मना कर दिया और वे अध्यक्ष बने रहे। अब वे अध्यक्ष रहकर अपनी ही सरकार की वोट जुटाऊ नीतियों की आलोचना कर रहे हैं और आलाकमान मूक दर्शक बना हुआ है।(संवाद)
पंजाब में कांग्रेस का गृहयुद्ध जारी
सिद्धू को अध्यक्ष बनाना पार्टी पर पड़ रहा है भारी
उपेन्द्र प्रसाद - 2021-11-02 11:14
पंजाब में कांग्रेस की मुश्किलें लगातार बढ़ती जा रही हैं। विधानसभा के चुनाव सिर पर हैं, लेकिन प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री के बीच चल रहा जंग रुकने का नाम नहीं ले रहे है। प्रदेश अध्यक्ष सिद्धू लगातार पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त हैं और कांग्रेस आलाकमान चुपपाप तमाशा देख रहा है। ताजा मामलों में सिद्धू ने अपनी सरकार की आलोचना इस बात के लिए कर दी कि सरकार बिजली सस्ती या मुफ्त क्यों दे रही है।