कोलकाता नगर निगम में मतदाता 141 पार्षदों का चुनाव करेंगे। 2005 में हुए चुनाव में 141 में 72 सीटों पर कब्जा किया था। इस बार यह संख्या घटकर 35 हो सकती है। 2005 में हुए 81 नगरपालिकाओं के चुनाव में वाममोर्चा को 54 में पूर्ण बहुमत हासिल हुआ था। इस बार वे शायद 30 में ही इस प्रकार की जीत दर्ज कर सकें।

पिठले लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस ने गठबंधन करके चुनाव लड़ा था। नगर निकायों के चुनावों में यह गठबंधन टूट गया है। इसका लाभ वाम मोर्चा को अवश्य होगा, लेकिन उसके बावजूद उसकी स्थिति अच्ठी रहने की संभावना नहीं है, क्योंकि गठबंधन टूटने के बावजूद तृणमूल कांग्रेस का सितारा बुलंदी पर दिखाई पड़ रहा है।

सीपीएम की केन्द्रीय समिति ने फरवरी महीने में एक वक्तव्य जारी कर कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के बीच दरार र्पदा करने की कोशिश की। उसमें कहा गया कि तृणमूल कांग्रेस पार्टी के लिए ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि कम्युनिस्टों पर हमला उनकी ओर से हो रहा है। इसलिए पार्टी का मुख्य निशाना तृणमूल कांग्रेस होगी, कांग्रेस नहीं।

वक्तव्य में यह भी कहा गया कि 1970 के दशक की शुरुआत में भी कम्युनिस्टों पर अदर््ध फासीवादी हमले हुए थै, पर वे हमले शहरों और औद्योगिक क्षेत्रों तक ही सीमित थे, जबकि इस बार हमले व्यापक तौर पर हो रहे हैं। शहरो के साथ साथ गांवों में भी कम्युनिस्टों पर हमले बढ़े हैं और उन हमलों का नेतृत्व तृणमूल कोग्रेस के लोग कर रहे हैं।

तृणमूल और कांग्रेस के बीच समझौता टूटने के बावजूद स्थानीय स्तर पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्त्ताओं के बीच तालमेल बना हुआ है। यही कारण है कि मतदान के पहले दोनो पाटियों के समर्थक किसी एक मजबूत उम्मीदवार के साथ खड़े दिखाई पड़ सकते हैं। वाममोर्चा के चेयरमैन बिमान बोस ने कुछ इसी तरह के विचार व्यक्त किए। उन्होंने अपने समर्थकों से कहा कि उन्हें यह नहीं समझना चाहिए कि गठबंधन टूटने के कारण वामपंथी उम्मीदवारों का काम असान हो गया है।

अनुमान है कि तृणमूल कांग्रेस कोलकाता नगर निगम की 141 में से 85 सीटों पर जीत दर्ज कर अपने बूते वहां सत्ता हथिया ले। राज्य की 12 नगरपालिकाओं पर भी उसका अकेले दम कब्जा हो सकता है। वहीं कांग्रेस मुर्शीदाबाद की 4 नगरपालिकाओ ंपर कब्जा कर सकती है। चुनाव के बाद दोनों मिलकर कई नगरपालिकाओं पर कब्जा कर सकती है। (संवाद)