इन दोनों वर्सनों में जो भी सही हो, उसकी हत्या अत्यंत ही निंदनीय और दुर्भाग्यपूर्ण है। उसने जो किया, वह तो गलत था ही, क्योंकि उसे लोगों की धार्मिक आस्था को चोट नहीं पहुंचानी चाहिए थी और उसे वैसा कुछ नहीं करना चाहिए था, जो सिख धर्म के खिलाफ हो। लेकिन उसके साथ जो हुआ वह तो और भी गलत था। उसकी हत्या किए जाने को कोई भी वाजिब नहीं ठहरा सकता। सिख धर्म प्रेम का धर्म है। इसके संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी प्रेम की पुजारी थे, और गुरुद्वारों में प्रेम का पाठ ही किया जाता है। इस पृष्ठभूमि में किसी बेअदबी करने वाले के साथ इस तरह का व्यवहार प्रेम और भक्ति के सिद्धांतों के खिलाफ है। और यह भी स्पष्ट नहीं है कि वह वास्तव में बेअदबी करना चाहता था या मानसिक रूप से वह विक्षिप्त था और उसे पता ही नहीं था कि वह सही कर रहा था या गलत।

यदि वह किसी ऐसे गिरोह का सदस्य था, जो सिखों की धार्मिक आस्थाओं पर चोट कर रहा हो, तब भी उसकी हत्या बिल्कुल गलत थी। पहली बात तो यह है कि हमारे देश का संविधान और कानून किसी हत्या की इजाजत किसी को नहीं देते। दूसरी बात यह है कि यदि वास्तव में वह किसी सिख विरोधी गिरोह का सदस्य था, तो उस गिरोह के बारे में पता उसे जिंदा रखकर ही लगाया जा सकता है। अब पंजाब की सरकार ने एक स्पेशल इन्वेस्टीगेशन टीम को गठन किया गया है, जो पता करेगा कि उस बेअदबी के पीछे कौन था। जब वह व्यक्ति जिंदा ही नहीं रहा, तो फिर टीम को पता कैसे चलेगा कि उसके पीछे कोई गिरोह भी था या वह व्यक्ति दिमागी रूप से कमजोर होने के कारण वह काम कर रहा था।

वह व्यक्ति भीड़ की हिंसा का शिकार हुआ। उसके साथ गलत हुआ, लेकिन पंजाब की सरकार और पुलिस ने जो किया, वह तो भीड़ की हिंसा से भी ज्यादा आपत्तिजनक है। भीड़ तो अपना आपा खो चुकी थी, लेकिन पंजाब सरकार और पुलिस ने तो आपा नहीं खोया था। उसने मारे गए व्यक्ति के ऊपर ही मुकदमा कर दिया। इससे ज्यादा उटपटांग बात और क्या हो सकती है? जो व्यक्ति जिंदा ही नहीं है और जिसकी पहचान भी स्थापित नहीं है, उस पर आप मुकदमा करेंगे और जो जिंदा ही नहीं है, उसे कौन सी सजा दी जाएगी? आखिर यह बेतुकापन क्यों? क्या इसलिए कि पंजाब में चुनाव होने जा रहे हैं और चन्नी की सरकार दिखाना चाहती है कि वे सिखों की भावनाओं को लेकर बहुत ही सजग और चिंतित है। पंजाब सरकार ही नहीं, पंजाब के विपक्ष की भूमिका भी सही नहीं है। आम आदमी पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल हो या शिरोमणि अकाली दल के शीर्ष नेता प्रकाश िंसंह बादल- सभी एक स्वर में बोल रहे हैं। कोई भीड़ द्वारा की गई हत्या की निंदा नहीं कर रहा है। सभी बेअदबी को लेकर चिंतित हैं। बेअदबी को लेकर चिंतित हों, यह अच्छी बात है, लेकिन स्वर्ण मंदिर परिसर में कानून की भी तो बेअदबी हुई है। कानून तोड़ने वालों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं होनी चाहिए?

अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर की उस घटना के बाद कपूरथला के एक गुरुदारे में भी एक व्यक्ति भीड़ की हिंसा का शिकार हुआ और मारा गया। उसके बारे में भी कुछ पता नहीं चला है। सिर्फ यह बताया जा रहा है कि वह दिल्ली का था। उसने यह बात पकड़े जाने के बाद खुद बताई थी। उसके बारे में गौर करने की बात यह है कि वह गुरुद्वारे के अंदर से नहीं बल्कि उसके बाहर से पकड़ा गया था। गुरुद्वारे के लोगों के अनुसार कोई व्यक्ति सुबह गुरुद्वारे में घुसा था। उसका इरादा बेअदबी या चोरी का रहा होगा। फिर गुरुद्वारे के लोगों ने हल्ला कर बाहर के लोगों का भी बुलाया और वह उस व्यक्ति को ढूंढ़ने लगे, जो गुरुद्वारे के अंदर घुसा था। अंदर तो कोई नहीं मिला, बाहर से किसी को पकड़ लिया और मान लिया कि वह अंदर घुसा था। उसके बाद उसकी पिटाई की और विडियो बनाया। विडियो देखकर और लोग भी आए। पुलिस भी आई। पुलिस ने उस व्यक्ति को बचाने की कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उसे बचाने का मौका ही नहीं दिया। जब उस व्यक्ति की मौत हो गई, तभी पुलिस उसे अपने कब्जे में कर सकी और अस्पताल ले गई, जहां उसे पहले से ही मृत घोषित कर दिया।

ये दोनों घटनाएं पागलपन के दौर की कहानी कहती हैं। दूसरी घटना तो कुछ ज्यादा ही भयावह है। धार्मिक स्थलों पर दूरदराज के लोग पहुंचते हैं। गुरुद्वारों में बाहर के लोगों को भोजन दिया जाता है और पानी भी पीने के लिए लोग वहां जाते हैं। ज्यादातर धार्मिक लोग ही वहां जाते हैं और उनमें कुछ मानसिक रूप से कमजोर भी हो सकते हैं और ऐसी हरकतें भी कर सकते हैं जो धार्मिक दृष्टि से बहुत ही अनुचित हो, लेकिन तब क्या उस व्यक्ति को भीड़ के न्याय का शिकार होने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए? यदि ऐसा हो रहा है, तो हम कह सकते हैं कि हमारा देश पागलपन के दौर में प्रवेश कर रहा है। (संवाद)