यातायात- अंडमान द्वीप समूह मुख्यभूमि से अलग ‑ थलग है और गहरे सागर में उत्तर‑दक्षिण में स्थित है। यह 800 किलोमीटर तक समुद्र में फैला है। यातायात ही यहां की जीवन रेखा है। शुरुआत में पहले कोलकाता से हपऊते में एक ही उड़ान थी लेकिन बाद में चेन्नै से भी हवाई जहाज सेवा शुरू हो गई। अब तो रोज ही
संचार- मोबाइल फोन का आगमन यहां की लगभग चार लाख आबादी के लिए वरदान साबित हुआ है। अब बटन दबाकर केवल मुख्यभूमि में रहने वाले लोगों से ही बातचीत नहीं की जा सकती बल्कि ग्रेट निकोबार के धुर दक्षिण में स्थित द्वीप जहां नौका से पहुंचने में दो दिन लगते हैं, वहां भी उतनी ही आसानी और स्पष्टता से बात की जा सकती है। डाक सुविधाओं में भी उल्लेखनीय विकास हुआ है। जहां दूरदराज में स्थिति बारातंग जैसे इलाकों में निजी कोरियर सेवा नहीं पहुंच पाती वहां कुशल स्पीड पोस्ट पूरी तेजी से पहुंच जाती है।
पर्यटन- चांदी सी चमकने वाली रेत, तलैयों और हरियाली से भरापूरा अंडमान हमेशा से पर्यटन का आकर्षण रहा है। पर्यटन ही बीते वर्षों में पर्यटकों के लिए कई नए स्थान खोल दिए गए हैं, जैसे रॉस आईलैंड जहां पहला बंदोबस्ती मुख्यालय कायम किया गया, वाईपर आईलैंड जहां सबसे पहले दण्डात्मक बंदोबस्त कायम किया गया और चैथम आईलैंड जहां एशिया की सबसे पहली और सबसे बड़ी आरा मिल कायम की गई जो आज भी चल रही है। कई संग्रहालय भी कायम किए गए जैसे समुद्रिका संग्रहालय, वन्य संग्रहालय और मछलीघर जहां अंडमान की वनस्पतियों और जीव‑जंतुओं का प्रदर्शन किया गया है। मानवशास्त्र संबंधी संग्रहालय तो देखने लायक है जहां पुराने प्रस्तर युगीन जरावा और सेन्टीनल वनवासियों के बारे में बताया गया है। यह दोनों वनवासी समूह आज भी सभी प्रतिकूलताओं का सामना करते हुए अंडमान में मौजूद हैं।
पानी के भीतर सांस लेने के लिए नलिका लगाकर समुद्र में गोताखोरी करना, शीशे के तल वाली नौका में बैठकर समुद्र में सैर करना और प्रशिक्षित व अनुभवी लोगों के लिए स्कूबा डाइविंग नए आकर्षण हैं। महात्मा गांधी राष्ट्रीय समुद्री उद्यान में पानी में तैरती जेली फिश को देखना ऐसा लगता है जैसे डिस्कवरी चैनल का सीधा प्रसारण देख रहे हों। जो पर्यटक प्रकृति से प्रेम करते हैं उनके लिए बारातंग के पास पैरट आईलैंड, मिट्टी वाले ज्वालामुखी, चूना‑पत्थर की गुफाएं और मैनग्रोव के आसपास बनी छतरीदार राहदारी में सैर करना अतिरिक्त आकर्षण है।
इसके साथ साथ पर्यटन में प्रकृति को बचाने और उसके संरक्षण पर भी कड़ाई से ध्यान दिया जाता है। निषिद्ध सीपों और मूंगों को उठाने और उन्हें अपने साथ लेने की अनुमति पर्यटकों को नहीं दी जाती।
राष्ट्रीय स्मारक- कालापानी कारावास को 1857 से औपनिवेशिक प्रताड़ना सहने वाले हमारे स्वंतत्रता संग्राम सेनानियों के सम्मान में राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया है। इस कारावास के आसपास सौन्दर्यीकरण किया गया है। इस संग्रहालय को ऐसा रूप दिया गया है जो उस दण्डात्मक विधान के इतिहास और उन स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के बलिदान की याद दिलाता है जिनके कारण आज हम आजादी की सांस ले रहे हैं। कालापानी कारावास में ध्वनि‑प्रकाश कार्यक्रम पेश किया जाता है जिसके द्वारा हमारे स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के साहस और बलिदान के बारे में हमें जानकारी मिलती है। यह देखने लायक कार्यक्रम है।
सामाजिक जीवन- मुख्यभूमि की आपाधापी से दूर द्वीप के सामाजिक जीवन में चमक‑दमक नहीं है, हालांकि उपग्रह, केबल टेलीविजन और डीवीडी के जरिए रिमोट का बटन दबाने भर से पूरी दुनिया आपके सामने खुल जाती है। राष्ट्रीय राजमार्ग 223 पर चहल कदमी करते हुए तीस साल पहले की जो यादें दिमाग में बसी थीं वह वहां होने वाले बदलावों में दब सी गर्इं। बाजारों का रंग‑रूप बदल गया है। पहले तो ऊंघता हुआ बाजार हुआ करता था लेकिन जब से मुख्यभूमि से जहाजों का आना शुरू हुआ है, बाजार में रौनक आ गई है। बाजारों में चहल पहल होने लगी है और तमाम दुकानें खुल गई हैं जिनमें आभूषणों की दुकानें भी हैं और मिनी सुपर मार्केट भी हैं जहां हर तरह की चीजें मिलती हैं। स्थानीय दस्तकारी क्षेत्र में भी तेजी से सुधार हुआ है। रसोई गैस द्वीप में पहुंच चुकी है। पहले जहां दूध का पाउडर ही एकमात्र सहारा था, वहां अब खुद दूध पहुंच गया है। स्थानीय स्तर पर फलों और सब्जियों का बाजार बढा़ तो है लेकिन मांग की पूर्ति ज्यादातर मुख्यभूमि से ही की जाती है जो महंगी पड़ती है।
बिजली और पानी
बिजली की खपत में कई गुना बढा़ेतरी होने के बावजूद, आज भी डीजल जेनरेटर ही बिजली का एकमात्र साधन हैं। ऊर्जा के अन्य रुाोत जैसे गोबरबायो गैस, सौर, तरंग और वायु को अभी बड़े पैमाने पर आजमाया जाना है। इसी तरह, छह माह से ज्यादा वर्षा होने के बावजूद पानी की कमी हमेशा बनी रहती है। खारे पानी को पीने लायक बनाने के संयंत्रों को लगाने और वर्षा जल के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा सकता है।
वैसे तो अंडमान एवं निकोबार की जिंदगी में आमतौर पर सुधार आया है लेकिन विकास की सबसे बड़ी कीमत प्रकृति को ही चुकानी पड़ती है। जहां तक वनवासियों का सवाल है तो हमें विकास के पथ पर बहुत सावधानी से चलना होगा। (पसूका फीचर)
अंडमान बदलाव की बयार के तीस वर्ष
एस. बालाकृष्णन - 2010-05-20 10:40
बंगाल की खाड़ी के पूर्व में स्थित भारत के पन्ना द्वीपों की यह दूसरी यात्रा थी जब इंडियन एयरला अतीत की छवि और वर्तमान की हकीकतों में भारी अन्तर था। द्वीपों की सप्ताह भर की यात्रा के दौरान साफ तौर पर महसूस हो रहा था कि कालान्तर में अंडमान में कितना बदलाव आ चुका है। इमारतों, पुलों का बदलाव, सड़कों, गलियों का बदलाव, समुद्री किनारों से लेकर क्षितिज तक बदलाव नजर आ रहा था। मूंगा द्वीप में हर तहफ बदलाव की बयार चल रही थी।