उसके बाद दिल्ली से लेकर पंजाब तक हंगामा है कि प्रधानमंत्री को सुरक्षित यात्रा सुनिश्चित करने में पंजाब सरकार विफल रही। इसके लिए भाजपा के नेता पंजाब की भाजपा सरकार की आलोचना कर रहे हैं। कुछ तो पंजाब की चन्नी सरकार को बर्खास्त कर देने की मांग तक कर रहे हैं। यह सच है कि रैली नहीं होना गलत है और यह भी सच है कि प्रधानमंत्री को सुरक्षित रास्ता उपलब्ध कराया जाना था, लेकिन इस पर जो हंगामा हो रहा है, वह गलत है। इसके लिए पंजाब सरकार की जो भारी आलोचना की जा रही है, वह गलत है। जिस तरह प्रधानमंत्री को विवश होकर वापस आना पड़ा, उसी तरह की विवशता पंजाब की पुलिस की भी रही होगी।

दरअसल, पंजाब के किसान प्रदेश भर में आंदोलन कर रहे हैं और वे मांग कर रहे हैं कि तीन कृषि कानूनों के खिलाफ हुए आंदोलन के दौरान जिन पर मुकदमे किए गए, उन्हें वापस लिया जाय। पंजाब सरकार ने मुकदमे वापस लेने की बात मान भी ली है, लेकिन अन्य राज्यों में भी मुकदमे हुए हैं। वहां से भी सकारात्मक संकेत आ रहे हैं। किसानों की दूसरी मांग है कि आंदोलन के दौरान जिन लोगों की मौत हुई, उनके परिवार के लोगों को मुआवजा दिया जाय और उनके परिवार के सदस्यों को सरकारी नौकरियां दी जाय। न्यूनतम मूल्य समर्थन की उनकी मांग भी अपनी जगह पर कायम है। उनकी ये मांगें केन्द्र सरकार से है। और वे आंदोलन कर रहे हैं। प्रदेश में अनेक स्थानों पर जब-तब सड़कें जाम कर दी जाती हैं। रेल लाइन को भी आंदोलन से कभी कभी प्रभावित होना पड़ता है।

वैसे ही माहौल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पंजाब के फिरोजपुर में वह सभा होनी थी। आंदोलन पहले से ही चल रहा है। और आंदोलनकारियों के निशाने पर नरेन्द्र मोदी ही हैं। जाहिर है, जब उनका कार्यक्रम बना, तो किसानों की मुखरता और भी बढ़ गई। पंजाब में भारतीय जनता पार्टी का आधार बहुत कमजोर है। वह गठबंधन करके ही चुनाव जीतती है। अकेले उसकी जीत का रिकॉर्ड बहुत ही खराब है। आम आदमी पार्टी के उदय ने उसके आधार को और भी कमजोर कर दिया है।

एक तो आधार बहुत ही कम और दूसरी तरफ से बीजेपी का किसानों और उनके हमदर्दां द्वारा हो रहा भारी विरोध। इन दोनों के कारण वहां भाजपा की हालत बेहद पतली है। हालांकि कैप्टन अमरींदर सिंह की नवगठित पार्टी के साथ उसका गठबंधन हो रहा है, पर यह ही नहीं पता है कि अमरींदर सिंह की खुद राजनैतिक ताकत पंजाब में कितनी है, तो भाजपा को उससे कितना लाभ होगा, यह किसी को नहीं पता। पंजाब विधानसभा में भाजपा अपना खाता भी खोल पाएगी, इसके बारे में भी कोई दावा से नहीं कह सकता। चुनाव पूर्व सर्वेक्षण भी भाजपा को शून्य या इक्का दुक्का सीटें जीतने की भविष्यवाणी कर रहे हैं।

अब जब भारतीय जनता पार्टी का वहां कोई समर्थक आधार ही नहीं है और जो कुछ लोग उसके समर्थन में हैं भी, वे भाजपा विरोधी माहौल के कारण चुप ही रहते हैं, इसलिए मोदी की प्रस्तावित सभा में लोग पहुंचे ही बहुत कम थे। वहां 70 हजार कुर्सियां लगाई गई थीं, लेकिन खबरों के अनुसार मुश्किल से 700 लोग ही पहुंचे थे। लोगों की कम उपस्थिति का एक कारण यह भी था कि आंदोलनकारी किसान भाजपा समर्थकों को उस सभा में जाने से रोक भी रहे थे। जाहिर है, कि माहौल बहुत तनावपूर्ण था।

उसी तनावपूर्ण माहौल में प्रधानमंत्री ने बहुत ही आखिरी समय में अपना मार्ग बदलने का फैसला किया। वे भटिंडा मे अपने हवाई जहाज से उतरे थे। वहां से वे हेलिकॉप्टर से सभा स्थल पर जाने वाले थे। प्रधानमंत्री की बात मानें, तो खराब मौसम के कारण उन्होंने सड़क मार्ग से जाने का फैसला किया। सड़क मार्ग से जाने में ज्यादा समय लगता और उस बीच कुछ और लोग सभा स्थल पर आ जाते और खराब मौसम का खतरा भी नहीं रहता। इसलिए सड़क मार्ग से जाने का उनका निर्णय गलत नहीं था।

लेकिन सड़क पर जहां तहां भाजपा का विरोध हो रहा था। भाजपा समर्थकों को भी सभा स्थल पर जाने से रोका जा रहा था और उसी बीच प्रधानमंत्री ने खुद सड़क से जाने का फैसला कर लिया और वही हुआ, जो होना निश्चित था। आंदोलनकारी किसानों ने उनका रास्ता रोक दिया। हालांकि वे किसान कह रहे हैं कि वे वहां भाजपा समर्थकों को सभा स्थल पर जाने से रोकने के लिए एकत्र हुए थे और उन्हें पता नहीं था कि प्रधानमंत्री भी वहीं से गुजरने वाले हैं। उन्हें हटाने के लिए जब पुलिस ने प्रधानमंत्री के आने की बात की, तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ। उन्हें लगा कि पुलिस झूठ बोलकर वहां से हटाना चाहती है, ताकि भाजपा समर्थकों का रास्ता साफ हो सके। मुख्यमंत्री के अनुसार प्रधानमंत्री की कार और किसानों के आंदोलन स्थल में एक किलोमीटर की दूरी थी, जाहिर है किसानों को पता ही नहीं होगा कि उनके नाम के कारण प्रधानमंत्री फ्लाइओवर पर फंसे हुए हैं।

प्रधानमंत्री के काफिले के हटाने के लिए पुलिस बल का प्रयोग भी कर सकती थी, लेकिन उससे हिंसा फैलने की आशंका थी, इसलिए वैसा नहीं किया गया। शायद पुलिस को कुछ समय मिलता तो वे किसानों को समझा बुझा कर वहां से हटा देते, लेकिन प्रधानमंत्री ने पुलिस को और समय नहीं दिया और 15 से 20 मिनट का इंतजार कर वे वापस लौट आए। और उसके बाद हगामा हो रहा है।

इस मामले को ज्यादा तूल देने की जरूरत नहीं। राजनेताओं के विरोध होते रहे हैं। इन्दिरा गांधी को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में आंदोलनकारी छात्रों ने प्रवेश तक नहीं करने दिया था। और अनेक ऐसे मामले अतीत मे मिल जाएंगे, जिनमें प्रधानमंत्री का रास्ता बाधित किया गया है। लोकतंत्र में ऐसा होता है। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। सरकार के पास पुलिस बल होता है। वह चाहे, तो इस तरह के प्रतिरोध को कुचल दे, लेकिन राजनैतिक प्रक्रिया को पुलिस बल से कुचलना कोई अच्छी बात नहीं है। जब आंदोलनकारी हिंसक हो जाएं, तब तो इसे सही माना जा सकता है, लेकिन पंजाब के किसान अहिंसक आंदोलन कर रहे हैं और उनके खिलाफ गोली चलाना पहला क्या, दूसरा, तीसरा या चौथा विकल्प भी नहीं हो सकता।

इसलिए किसी पर दोष लगाने से बेहतर है कि इस मामले को भुला दिया जाय। इसे यह सामान्य राजनैतिक प्रकिया का हिस्सा मान लिया जाय। पंजाब के कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस को भी चुनाव लड़ना है। उसे भी वोट चाहिए। फिर कोई कैसे उम्मीद कर सकता है कि कांग्रेस सरकार प्रधानमंत्री के लिए रास्ता साफ करने के लिए किसानों पर बल का प्रयोग करती। सुरक्षा देना पुलिस का काम है और प्रधानमंत्री की सुरक्षा बाधित हुई हो, वैसा कुछ दिख नहीं रहा। (संवाद)