सूअर का मांस खाने वाले मुस्लिम जिन्ना धर्म के आधार पर भारत के द्वि-राष्ट्र सिद्धांत और विभाजन में विश्वास करते थे। हालांकि एक अधार्मिक मुस्लिम, जिन्ना महात्मा गांधी के विपरीत सांप्रदायिक थे, जो एक बहुत ही धार्मिक और धर्मनिरपेक्ष नेता थे, जो चाहते थे कि देश का विभाजन न हो। गांधी सांस्कृतिक, क्षेत्रीय और धार्मिक विविधता के साथ संयुक्त भारत में भी विश्वास करते थे।
लाहौर गवर्नमेंट कॉलेज के एक पूर्व विजिटिंग प्रोफेसर और एक स्तंभकार, इश्तियाक खान ने जिन्ना के सौदेबाजी सिद्धांत को खारिज करने के लिए अपनी हालिया पुस्तक में सबूतों का खजाना प्रदान किया है, जिसे पहले कैम्ब्रिज और हार्वर्ड विद्वान आयशा जलाल द्वारा लोकप्रिय बनाया गया था और उसके बाद भाजपा के पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिह सहित कई अन्य लोगों द्वारा लोकप्रिय किया गया था। भाजपा के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी जिन्ना की धर्मनिरपेक्ष साख की बात की थी। परिणामस्वरूप आडवाणी को आरएसएस से आलोचना का सामना करना पड़ा।
इश्तियाक खान ने कहा, ‘‘जिन्ना ने कभी भी, एक बार भी एक संयुक्त भारत में और केंद्र में सत्ता साझा करने वाले समान राष्ट्रों के रूप में हिंदुओं और मुसलमानों के साथ सत्ता साझा करने के सौदे में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। जलाल उन सभी भाषणों, बयानों और संदेशों को छोड़ देती है जहां वह (जिन्ना) दोहराते हैं कि लाहौर प्रस्ताव का मतलब हिंदुस्तान और पाकिस्तान में भारत का विभाजन है’’, खान अपनी पुस्तक में इस आशय के सबूतों का हवाला देते हुए कहते हैं।
खान ने कहा, ‘‘हम किसी अन्य निष्कर्ष पर नहीं आ सकते कि जिन्ना न केवल भारत के विभाजन में विश्वास करते थे, बल्कि भारत के विभाजन के अधिक कट्टरपंथी विचार के साथ और दक्षिण भारत में द्रविड़स्तान के अलग देश और सिखों के लिए अलग राज्य का समर्थन करते थे। इस्तियाक खान ने इस विषय पर ‘द वायर’ के करण थापर को दिए एक साक्षात्कार में अपनी पुस्तक में जो कुछ लिखा था, उसके बारे में विस्तार से बताया। खान ने कहा कि भारत में 565 रियासतों में से जिन्ना ने न केवल जुनागढ़ जैसी मुस्लिम रियासतों को लुभाने की कोशिश की, बल्कि कुछ हिंदू रियासतों को पाकिस्तान में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करने की भी कोशिश की। जिन्ना ने हैदराबाद के निजाम को कुर्बानी देने के लिए तैयार रहने को कहा था।
जिन्ना भारत में रह गए मुसलमानों की दुर्दशा के बारे में चिंतित नहीं थे। जिन्ना भारत में पीछे रह गए मुसलमानों के लिए थोड़ी सी परवाह भी नहीं करते थे। 1941 में, जब उनके विभाजन के सिद्धांत ने कुछ क्षेत्रों में गति प्राप्त की, तब भारत में 9 करोड़ मुसलमान थे, जिनमें से 2 करोड़ मुसलमान भारत में रह जाते यदि विभाजन उनके विचार के अनुसार होता। वास्तव में जिन्ना भारत में रह गए मुसलमानों के साथ क्या होगा, इसके प्रति क्रूर थे। जिन्ना को भारत में रह गए मुसलमानों की देखभाल करने के बजाय बंबई के मालाबार पहाड़ी में अपनी संपत्ति हासिल करने की अधिक चिंता थी। खान का कहना है कि जिन्ना ने स्वतंत्रता के बाद दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को लिखा था कि वह चाहते हैं कि की उनकी संपत्ति सुरक्षित हो और एक विदेशी को 3,000 रुपये प्रति माह के किराए पर दिया जाए। जिन्ना ने यह भी उल्लेख किया था कि वह नहीं चाहते थे कि इसे एक देशी हिंदू या मुस्लिम को किराए पर दिया जाए। यह इस बात का सबूत है कि स्थानीय लोगों के लिए उनके मन में बहुत कम सम्मान था।
वह इस विचार से भी असहमत थे कि जिन्ना एक धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान चाहते थे। पाकिस्तान के गठन से तीन दिन पहले उनका भाषण जहां उन्होंने धर्मनिरपेक्षता की बात की थी, केवल कठिनाइयों को कम करने और यह सुनिश्चित करने के लिए एक मुखौटा था कि भारत में रह रहे मुसलमान पाकिस्तान जाने का प्रयास नहीं करे। इसका मतलब होता पाकिस्तान में अधिक आर्थिक बोझ की अराजकता। यह अंतरराष्ट्रीय दर्शकों को विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका को संबोधित करने के लिए भी था, जो उस समय पाकिस्तान के गठन को एक व्यावहारिक विकल्प नहीं मानता था।
खान ने यह भी कहा कि भारत और उसके नेतृत्व ने कभी भी मुसलमानों को पाकिस्तान पार करने के लिए धक्का देने की कोशिश नहीं की, पाकिस्तान के विपरीत जहां हिंदुओं को बाहर निकाल दिया गया था। साथ ही जिन्ना के उस भाषण में जहां उन्होंने धर्मनिरपेक्ष पाकिस्तान की बात की थी, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि भारत में रहने का विकल्प चुनने वाले 35 मिलियन मुसलमानों को पाकिस्तान में धकेला नहीं जाय, जिससे नवगठित देश में और अधिक समस्याएं पैदा हां। वास्तव में, खान के अनुसार, जिन्ना सांप्रदायिक थे और वे कभी भी तुर्की जैसे धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम राष्ट्र का निर्माण नहीं चाहते थे। जिन्ना को धर्मनिरपेक्ष या लोकतंत्र जैसे शब्दों से ‘विरोध’ था, खान ने जोर दिया।
जिन्ना ने हालांकि एक पारसी से शादी की, वे अन्य धर्मों में विश्वास नहीं करते थे, खान ने कहा, ‘हिटलर शाकाहारी था, लेकिन क्या यह उसे अहिंसक बनाता है’। जिन्ना ने वास्तव में अपनी पारसी पत्नी को शादी से पहले बंबई की एक सुन्नी मस्जिद में इस्लाम में कनवर्ट किया और फिर उससे शिया रीति-रिवाज से निकाह दिया गया। जिन्ना शिया मुसलमान थे। तथ्य यह है कि एक गैर-मुस्लिम पत्नी का धर्म परिवर्तन इस्लामी दृष्टिकोण से एक ‘प्लस थिंग’ है। उन्होंने आरोप लगाया कि जिन्ना ‘बेहद सांप्रदायिक’ थे। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि जिन्ना ऐसा देश नहीं चाहते थे जो धर्मनिरपेक्ष रहे। इसलिए जिन्ना के भाषणों में धर्मनिरपेक्षता के किसी भी संदर्भ का सीमित एजेंडा था और उद्देश्य प्राप्त होने के बाद उनके द्वारा भुला दिया गया था। (संवाद)
जिन्ना भारत के टुकड़े टुकड़े देखना चाहते थे, एक नई किताब का निष्कर्ष
पाकिस्तान के संस्थापक ने भारतीय मुसलमानों की परवाह नहीं की
के आर सुधामण - 2022-05-17 05:43
मोहम्मद अली जिन्ना, जिनकी अब कुछ भारतीय राजनेताओं द्वारा विशेष रूप से चुनावों के दौरान प्रशंसा की जा रही है, ने भारत में रह गए मुसलमानों की परवाह नहीं की और पाकिस्तान को चुनने वालों की भलाई सुनिश्चित करने के लिए उनका बलिदान करने को तैयार थे। स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के मानद प्रोफेसर इश्तियाक अहमद ने एक साक्षात्कार में कहा है कि जिन्ना केवल भारत का विभाजन नहीं चाहते थे, बल्कि दक्षिण भारत में द्रविड़स्तान और सिखों के लिए अलग राज्य भी देखना चाहते थे।