केन्द्र सरकार को ही देखें, तो पाएंगे कि 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले मोदी मंत्रिमंडल ने 2021 में जाति जनगणना कराने का फैसला किया था। तत्कालीन गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने इसकी बहुत उत्साह से घोषणा की थी। जनगणना केन्द्र का गृहमंत्रालय ही करवाता है, इसलिए गृहमंत्री के उस बयान और उसके पहले केन्द्रीय मंत्रिमंडल द्वारा लिए गए निर्णय के बाद लग रहा था कि जाति जनगणना हो ही जाएगी। लेकिन 2019 की लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद मोदी सरकार ने अपना इरादा बदल दिया। संसद में सरकार ने कहा कि वह जाति जनगणना नहीं कराएगी।

बिहार के मुख्यमंत्री प्रदेश के सभी दलों के नेताओं के एक प्रतिनिधि मंडल के साथ प्रधानमंत्री मोदी से मिले और दस साला जनगणना के साथ जाति की गणना कराने की मांग की। प्रधानमंत्री ने कहा कि केन्द्र तो यह काम नहीं करेगा, लेकिन राज्य सरकार चाहे तो करवा ले, हमें कोई आपत्ति नहीं। अब जब बिहार में नीतीश सरकार ने जाति जनगणना करवाने की घोषणा की तो भाजपा नेताओं के हाथ पांव फूलने लगे। बिहार के भाजपा नेता टालमटाले वाली बातें करने लगे। कोई कहने लगा कि इसकी जरूरत क्या है? कोई कहना लगा इसकी जरूरत ही नहीं है। कोई कहने लगा यह केन्द्र सरकार का काम है, जबकि सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल में भाजपा के नेता भी शामिल थे और उनके सामने ही प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि प्रदेश सरकार अपनी तरफ से यह जनगणना चाहे तो करवा ले, उनको कोई आपत्ति नहीं।

जाहिर है कि दिल्ली के भाजपा नेताओं की ओर से बिहार के भाजपा नेताओं पर दबाव पड़ रहा था कि वे जाति जनगणना का विरोध करें। नीतीश सरकार भाजपा के गठबंधन और समर्थन से चल रही है। इसका फायदा उठाते हुए भाजपा ने नीतीश को कदम उठाने ही नहीं दिया। नीतीश भी टाल मटोल की बातें करने लगे, हालांकि वे जाति जनगणना चाहते थे। अब चूंकि वे मुख्यमंत्री हैं, इसलिए ऐसा भी नहीं कह सकते थे कि भाजपा उनको वैसा करने से रोक रही है।

दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी राष्ट्रीय जनता दल ने नीतीश कुमार के ऊपर जाति जनगणना कराने के लिए दबाव बढ़ा दिया। तेजस्वी इस जनगणना के लिए प्रदेश व्यापी आंदोलन की तैयारी करने लगे। उन्होंने यह घोषणा भी कर दी कि यदि केन्द्र सरकार बिना जाति जनगणना के जनगणना कराती है, तो वे अगली जनगणना होने ही नहीं देंगे। जनगणना लोगों के सहयोग से ही होती है। सभी लोग जनगणनना कर्मचारी को अपने परिवार और अपने बारे में जानकारी उपलब्ध कराते हैं, तभी जनगणना होती है। अब यदि तेजस्वी के आह्वान पर लोगों ने जनगणना कर्मचारियों से असहयोग शुरू कर दिया, तो जनगणना हो ही नहीं सकती।

बहरहाल, केन्द्र सरकार कब जनगणना कराएगी या 2031 के पहले कराएगी ही नहीं, यह स्पष्ट नहीं है, लेकिन प्रदेश में जाति जनगणना को लेकर होने वाले आंदोलन का सामना करने की स्थिति में न तो नीतीश हैं और न ही उनकी सरकार है। प्रदेश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा न केवल जाति जनगणना चाहता है, बल्कि वह इसके लिए सघन और लंबा आंदोलन चलाने के लिए भी तैयार है। तेजस्वी प्रदेश के युवाओं के साथ अपने को आसान से कनेक्ट कर लेते हैं। उनकी अपनी जाति के युवा तो उनके पीछे दीवाने हैं और इस मसले पर ओबीसी की अन्य जातियों के युवा भी उनके साथ आसानी से आ जाएंगे। इसलिए यदि प्रदेश में जाति जनगणना नहीं हुई, तो बहुत ही जबर्दस्त आंदोलन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता, बशर्ते तेजस्वी उसका नेतृत्व करने के लिए तैयार हों।

बिहार की राजनीतिक नब्ज की बेहरत समझ रखने वाले नीतीश इस खतरे से अनजान नहीं हैं और दूसरी तरफ वह खुद भी जाति जनगणना के समर्थक हैं, इसलिए उन्होंने इस मसले पर भाजपा के साथ दो दो हाथ कर लेना जरूरी समझा। वैसे भी भाजपा के नेता नीतीश कुमार के लिए अपमानजनक बयानबाजी कर रहे थे। उनकी शबराबंदी कानून का मजाक उड़ा रहे थे। कानून-व्यवस्था पर नीतीश सरकार को भाजपा के नेता ही कटघरे में खड़े कर रहे थे। भाजपा के कुछ नेता तो नीतीश को हटाकर भाजपा के किसी नेता को मुख्यमंत्री बनाने की मांग भी कर रहे थे। जदयू के कम विधायकों का बार बार हवाला देकर भी नीतीश कुमार का अपमान किया जा रहा था।

ऐसे माहौल में नीतीश ने भाजपा से आर-पार की लड़ाई लड़ने को ठान ली और तेजस्वी से अपना संवाद बढ़ा लिया। दोनों के बीच क्या बातचीत हुई, यह तो वे दोनों ही जानें, लेकिन संदेश यह जाने लगा कि जाति जनगणना के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की नेता प्रतिपक्ष से तालमेल बैठ रहा है और यदि भाजपा ने इस मसले पर नीतीश का साथ नहीं दिया, तो वे तेजस्वी के साथ हाथ मिलाकर भी जाति जनगणना करवा सकते हैं। तेजस्वी को नीतीश मुख्यमंत्री बना दें अथवा तेजस्वी नीतीश को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार कर लें, इसकी संभावना तो बहुत कम है, लेकिन जाति जनगणना कराने के लिए दोनों के बीच कुछ न कुछ तो पका है, इसका अनुमान कोई भी लगा सकता है।

यही कारण है कि भाजपा के विकल्प सीमित हो गए। उसके पास दो ही विकल्प बच गया। वे या तो जाति जनगणना होने दे या नीतीश से अलग हो जाए। अलग होने का मतलब सत्ता से अलग होना था, लिहाजा भाजपा ने फिलहाल जाति जनगणना के लिए सहमति दे दी है। जाति जनगणना पर एक जून को होने वाली सर्वदलीय बैठक में वह भी शामिल होगी। लेकिन इसपर सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि भाजपा रक्षात्मक हो गई है, क्योंकि जाति जनगणना पर अड़ंगे वह बाद में भी लगा सकती है। (संवाद)