राज्यसभा राज्य के प्रतिनिधियों के लिए ही मूल रूप से थी। इसलिए यह नियम था कि जिस व्यक्ति का नाम किसी राज्य की निर्वाचन सूची में नहीं हो, वह उस राज्य से राज्यसभा में जा ही नहीं सकता। इस नियम की काट निकालने के लिए कुछ नेता किसी राज्य विशेष का निवासी नहीं होने के बावजूद वहां की निर्वाचन सूची में अपना नाम डलवा देते थे। जैसे इन्द्र कुमार गुजराल बिहार के नहीं थे और उन्हें लालू यादव बिहार से राज्यसभा में लाना चाहते थे, तो उन्होंने पटना के एक पते से वहां के मतदाता सूची में अपना नाम डलवा दिया और फिर वहां के राज्यसभा सदस्य हो गए। जब वे प्रधानमंत्री थे, तो राज्यसभा में वे बिहार का ही प्रतिनिधित्व कर रहे थे।
दूसरा बड़ा उदाहरण मनमोहन सिंह हैं। वे असम से राज्यसभा में सदस्य थे, लेकिन वे असम के थे नहीं। खानापूर्ति के लिए उन्होंने असम के किसी पते से मतदाता सूची में अपना नाम डलवा लिया था, क्योंकि जिस प्रदेश के आप निवासी नहीं हैं, उस प्रदेश से आप राज्यसभा में प्रवेश नहीं कर सकते।
लेकिन वाजपेयी सरकार ने इस अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया। भारत की मतदाता सूची में कहीं भी नाम होने पर कोई किसी भी राज्य से राज्यसभा का सदस्य बन सकता है। ऐसा कानूनी प्रावधान अटलबिहारी वाजपेयी सरकार ने कर दिया। पत्रकार कुलदीप नैयर ने इसका विराध किया और अदालत में भी गए, लेकिन अदालत में उनकी बात नहीं सुनी गई।
ऊपर की चर्चा मैंने इस बात पर जोर देने के लिए की कि हमारा संविधान यही चाहता था कि राज्यसभा में राज्य विशेष से राज्य विशेष के निवासी ही चुनकर आएं, ताकि उनके राज्यों के मसलों को भी संसद में उठाया जा सके। जब लोकसभा में किसी विषय पर सांसद चर्चा करते हैं, तो अनेक बार कहा जाता है कि यह राज्य का मामला है, राज्य विधानसभा में ही चर्चा हो। वैसे मसलों को संसद में उठाया जाय, इसके लिए राज्यसभा है।
फिलहाल हम कांग्रेस की राज्यसभा सूची की चर्चा कर रहे हैं। उस सूची को देखकर कोई साधारण राजनैतिक समझ वाला व्यक्ति भी कह सकता है कि यह कांग्रेस का आत्मघाती फैसला है। कांग्रेस देश से धीरे धीरे समाप्त होती जा रही है। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसकी सरकारें हैं और वहां भी अगले साल चुनाव होने जा रहे हैं। वहां के स्थानीय नेताओं को राज्यसभा का टिकट नहीं देकर कांग्रेस आलाकमान ने उन दोनों राज्यों में पार्टी की हार का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
गलती सिर्फ उन दोनों राज्यों में ही नहीं की गई है। मुकुल वासनिक महाराष्ट्र के हैं। उन्हें महाराष्ट्र से भेजा जाना चाहिए था, लेकिन उन्हें राजस्थान से टिकट दे दिया गया है और उत्तर प्रदेश के किसी प्रतापगढ़ी को महाराष्ट्र का टिकट दे दिया गया। सुरजेवाला हरियाणा से हैं, उन्हें हरियाणा से टिकट देना चाहिए था, लेकिन राजस्थान से टिकट दे दिया गया है और दिल्ली वाले अजय माकन को हरियाणा से टिकट दे दिया गया। यानी कांग्रेस आलाकमान ने पूरी कोशिश की है कि सभी राज्यों के कांग्रेसी उससे नाराज हों। उसने इसकी टोपी उसके सिर और उसकी टोपी इसके सिर का खेल खेला है और यह खेल कांग्रेस की समाप्ति की गति को तेज करेगा। इसके लिए किसी और को जिम्मेदार ठहराना उचित नहीं, बल्कि खुद सोनिया गांधी और उनकी दोनों संताने जिम्मेदार हैं।
कांग्रेस के पास अब देने के लिए राज्यसभा सीटें कम रह गई हैं और उसमें महत्वाकांक्षी नेताओं की बहुतायत है। जाहिर है, जिन कथित राष्ट्रीय नेताओं को राज्यसभा में जगह नहीं मिली वे फुंफकार रहे हैं। आनंद शर्मा तो पूछेंगे ही कि राजीव शुक्ला को टिकट क्यों मिला, उन्हें क्यों नहीं। नगमा पूछ रही हैं कि प्रतापगढ़ी को टिकट क्यों मिला, उन्हें क्यों नहीं। प्रवक्ता पवन खेड़ा भी पूछ रहे हैं कि दूसरे प्रवक्ता को तो मिला, मुझे क्यों नहीं।
जाहिर है, कांग्रेस के अंदर विरोध सिर्फ राज्य स्तरों पर ही नहीं, बल्कि कथित राष्ट्रीय स्तर पर भी हो रहा है। अगर कांग्रेस नेतृत्व में राजनीति की समझ होती तो, यह नियम बनाकर कि प्रदेश से बाहर का कोई व्यक्ति राज्यसभा का सदस्य नहीं बनेगा, वह न केवल स्थानीय स्तर पर होने वाले असंतोष को रोक सकता था, बल्कि टिकट पाने से वंचित अन्य कांग्रेसी नेताओं के असंतोष से भी बच सकता था। लेकिन उसने पार्टी के भविष्य को बेहतर बनाने की जगह कांग्रेस के खात्मे का रास्ता अपनाना ही जरूरी समझा।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल पड़े मतों का ढाई प्रतिशत भी नहीं मिला और उसके कुल दो विधायक ही जीत पाए, लेकिन यूपी के तीने नेताओं को उसने दूसरे राज्यों से राज्यसभा का टिकट दे डाला। जो अपने प्रदेश में पार्टी में जान नहीं फूंक सके, वे राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस में क्या जान फूंक पाएंगे? राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने सही कहा है, ‘‘ विनाश काले विपरीत बुद्धि’’। यह कांग्रेस का विनाशकाल चल रहा है, तो कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की बुद्धि भी विपरीत हो गई है। कांग्रेस के राज्यसभा उम्मीदवारों की यह सूची वस्तुतः कांग्रेस पार्टी का सुसाइड नोट है। (संवाद)
कांग्रेस की राज्यसभा उम्मीदवारों की सूची
यह सबसे पुरानी पार्टी का सुसाइड नोट है
उपेन्द्र प्रसाद - 2022-05-30 12:00
उदयपुर के चिंतन शिविर के चिंतन के बाद कांग्रेस ऐसा करेगी, यह बहुत कम लोग ही सोच सकते थे। लेकिन कांग्रेस ने ऐसा किया और डंके की चोट पर किया। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में उसकी सरकार है और विधायकों की संख्या के बूते 5 राज्यसभा सांसद वहां से इसके आने हैं। अपनी आत्महंता प्रवृति का एक बार फिर प्रदर्शन करते हुए कांग्रेस ने उन दोनों राज्यों में ऐसे लोगों को नामित किया है, जो उन राज्यों से हैं ही नहीं। अब वहां के लोग पूछ रहे हैं कि हम जीतते और जिताते हैं, तो फिर हमारे लोग या हम अपने प्रदेशों से राज्यसभा का सदस्य क्यों नहीं बन सकते हैं।