अब महाराष्ट्र में कभी भी जाति गणना की घोषणा हो सकती है। शरद पवार की पार्टी एनसीपी ने मुख्यमंत्री से इस मामले को लेकर सर्वदलीय बैठक बुलाने की मांग की है। एनसीपी सत्ता में शिवसेना और कांग्रेस के साथ भागीदारी कर रही है। शिवसेना को तो जाति गणना पर एतराज नहीं, लेकिन कांग्रेस शुरू से ही इस तरह का गणना का विरोधी रही है। सच तो यह है कि 1951 की जनगणना में जाति को हटाने का श्रेय भी कांग्रेस को ही जाता है। 2011 में संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री ने जाति जनगणना की घोषणा कर दी। संसद ने उस घोषणा के लिए धन्यवाद प्रस्ताव भी पास कर दिए। फिर भी कांग्रेस ने 2011 की नियमित जनगणना के साथ जाति जनगणना नहीं कराया। उसके बाद हो हल्ला मचने पर अलग से जाति जनगणना की घोषणा की, जिसे सही रूप से किया ही नहीं गया। उसने मामले को उलझा दिया।
2014 में केन्द्र की सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने कांग्रेस के समय हुई जाति जनगणना के आंकड़े को जारी करने से इनकार कर दिया। इनकार करने का सही कारण वह अबतक नहीं बता पाई है। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनावों में इसलिए ओबीसी को आरक्षण नहीं दिए जा रहे हैं, क्योंकि सरकार के पास जाति का आंकड़ा ही नहीं है। महाराष्ट्र सरकार ने केन्द्र से महाराष्ट्र में की गई जनगणना के आंकड़े मांगे। उसने कहा कि जाति के आंकड़े तैयार नहीं हो पा रहे हैं, क्योंकि वे बहुत उलझे हुए हैं। तक महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि आपके पास जो प्राथमिक आंकड़े हैं, उन्हीं को दे दीजिए हम खुद उलझे हुए जाति आंकड़ों को सुलझा लेंगे और पता लगा लेंगे। लेकिन केन्द्र सरकार ने देने से इनकार कर दिया। तब महाराष्ट्र सरकार ने अदालत का रुख किया और कहा कि वह केन्द्र सरकार को आदेश दे कि उसके पास जो भी आंकड़े हैं, वह उसे उपलब्ध कराएं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने वैसा कोई आदेश जारी नहीं किया और उलटे कहा कि आप ओबीसी को आरक्षण दिए बिना स्थानीय निकायों के चुनाव कराएं।
अब महाराष्ट्र सरकार पर सुप्रीम कोर्ट का दबाव बिना ओबीसी आरक्षण के चुनाव कराने का दबाव है, लेकिन ओबीसी नेताओं की ओर से दबाव है कि यदि ओबीसी आरक्षण नहीं दे सकते, तो चुनाव ही मत कराओ। इस दुविधा से निकलने का एक ही रास्ता महाराष्ट्र सरकार के पास है कि वह जाति गणना कराए और सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार कथित ‘ट्रिपल टेस्ट’ के अनुसार ओबीसी के आरक्षित सीटें तय करे।
सच कहा जाय, तो महाराष्ट्र में इस समय जाति गणना की जरूरत बिहार से भी ज्यादा मायने रखता है। जल्द से जल्द स्थानीय निकाय चुनाव करवाने के लिए यह गणना उसे करानी ही होगी। इसलिए उम्मीद की जाती है कि वहां एक-दो दिन के अंदर ही सर्वदलीय बैठक बुलाई जाएगी। उस बैठक में कांग्रेस तो सहमति दे देगी, इसकी पूरी संभावना है, लेकिन भारतीय जनता पार्टी का रुख क्या रहेगा, यह देखना दिलचस्प होगा। वैसे भारतीय जनता पार्टी विधानसभा के अंदर जाति जनगणना का समर्थन कर चुकी है और उसके महाराष्ट्र के नेता जाति सर्वे नहीं करवाने के लिए उद्धव सरकार की आलोचना भी करते रहे हैं। इसलिए ज्यादा उम्मीद यही है कि भाजपा भी अपनी सहमति दे देगी, वैसे उसकी सहमति का उतना महत्व नहीं, जितना बिहार में उसकी सहमति का था। बिहार में वह सरकार में है और उसके मंत्रियों की रजामंदी के बिना बिहार कैबिनेट जाति गणना का प्रस्ताव पास ही नहीं कर सकता था। महाराष्ट्र में भाजपा विपक्ष में है और कोई निर्णय लेकर अमल में लाने के लिए महाराष्ट्र की उद्धव सरकार भारतीय जनता पार्टी पर निर्भर नहीं है।
मध्यप्रदेश में भी जाति गणना की मांग उठी है, हालांकि वहां की सरकार ने यूपीए सरकार द्वारा कराए गए सोशियो इकनॉमिक जाति जनगणना के आंकड़ों के हवाले से हाई कोर्ट को बताया था कि वहां ओबीसी कुल आबादी के 51 प्रतिशत हैं। यह किसी को आश्चर्य हो सकता है कि जब मध्यप्रदेश सरकार को ओबीसी के सटीक आंकड़े पता हैं, तो अन्य राज्यों को क्यो नहीं है। जब यह गणना हो रही थी, तो उसमें राज्य सरकार की भी भूमिका थी। आंकड़े जेनेरेट करने में राज्य सरकार की बड़ी भूमिका थी। लगता है कि उस समय शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने अपने प्रदेश से संबंधित जनगणना आंकड़ों की एक कॉपी अपने पास भी रखी। यदि अन्य राज्यों ने भी वैसा किया होता, तो सभी राज्यों के पास वे आंकड़े होते। बहरहाल, वहां स्थानीय निकाय चुनाव उन आंकड़ों पर आधारित ओबीसी संख्या के आधार पर करवाए जा रहे हैं, लेकिन जातियों के अलग अलग आंकड़ें भी ज्यादा मायने रखते हैं। यह तो केन्द्र सरकार द्वारा कराए गए जाति जनगणना के आंकड़ों को मध्यप्रदेश जारी करे या अपनी तरफ से बिहार की तरह जाति गणना कराए।
बिहार के बाद झारखंड में भी जाति गणना के लिए मांग तेज हो गई है। उसके पड़ोसी उड़ीसा तो इसके लिए पहले से ही तैयार है और एक निर्णय के द्वारा उसने ओबीसी आयोग को ओबीसी आंकड़े जुटाने का जिम्मा दे रखा है। लेकिन ओबीसी आंकड़ों को अलग से जुटाने की कोशिश व्यर्थ जाएगी। उसे बिहार के तर्ज पर ही सभी जातियों के आंकड़े इकट्ठे करने होंगे। सबके आंकड़े पता चलेंगे, तो ओबीसी के आंकड़े भी अपने आप सामने आ जाएंगे। संकेत है कि उड़ीसा की पटनायक सरकार अपने निर्णय पर पुनर्विचार कर रही है।
यह मांग उड़ीसा के पड़ोसी प्रदेश तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में भी जोरशोर से उठ रही है। उनके बगल के तमिलनाडु में भी इसकी मांग बहुत पुरानी है। 2011 में पीएमके नेता रामदॉस प्रदेश में जाति गणना प्रदेश सरकार द्वारा कराने की मांग कर रहे थे, लेकिन तब प्रदेश सरकार ने कहा कि जब केन्द्र सरकार यह काम करवा ही रही है, तो हम क्यों करें। फिर मामला शांत हो गया था। केन्द्र द्वारा जाति जनगणना कराने से साफ इनकार कर दिए जाने के बाद तमिलनाडु सरकार को खुद जाति गणना करवाने के अलावा और कोई रास्ता नहीं रह जाएगा। इस तरह बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने जो निर्णय लिया है, उसका असर राष्ट्रव्यापी होगा। फिर केन्द्र सरकार द्वारा जाति जनगणना नहीं कराने की जिद को कोई मतलब नहीं रह जाएगा। (संवाद)
बिहार की जातिगणना और उसके बाद
देश में जाति जनगणना को अब रोका नहीं जा सकता
उपेन्द्र प्रसाद - 2022-06-04 10:43
आखिरकार जातिगणना को बिहार मंत्रिमंडल की स्वीकृति मिल ही गई। इसके साथ देश की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाले प्रदेश की जाति गणना का काम सुनिश्चित हो गया है, लेकिन इसका असर सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहेगा। देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले महाराष्ट्र में भी इसी तरह की गणना की मांग तेज होने लगी है और मांग करने में शरद पवार की एनसीपी सबसे आगे है। महाराष्ट्र विधानसभा ने तो बतौर प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार से कहा था कि वह राष्ट्रीय जनगणना में जाति की गणना भी कराए। हालांकि केन्द्र सरकार ने वैसा कराने से साफ तौर से इनकार कर दिया। वैसे न कराने का कोई ठोस कारण केन्द्र सरकार नहीं दे पाई।