सरकार और सत्ताधारी पार्टी के निष्ठावान समर्थक इसे इस रूप में बताने की कोशिश कर रहे हैं कि मानो यह उनकी अपनी पार्टी के कुछ ‘फ्रिंज एलिमेंट्स’ की जीभ फिसलने के कारण हुआ है। इस घटना को उस रूप में पेश करने की उनकी बेचैनी का कारण सभी को मालूम है। आधिकारिक वक्ता या मीडिया प्रकोष्ठों के प्रभारी पल भर में फ्रिंज एलिमेंट्स बन रहे हैं। इस ‘‘कठोर और सख्त’’ घटनाक्रम के बाद भी वे उनके निंदनीय दृष्टिकोण को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। संघ परिवार के सोशल मीडिया का संचालन करने वाले उनका अपने अभिमान के नायकों के रूप में गुणगान कर रहे हैं! आरएसएस-भाजपा मौजूदा स्थिति से खुश होकर आसानी से अपना पीछा नहीं छुड़ा सकती। बहस के इरादे से, यदि कोई उनकी ‘फ्रिंज एलिमेंट सिद्धांत’ को मान लेता है फिर भी कुछ खास गंभीर सवाल रह जाते हैंः कहां से इन फ्रिंज एलिमेंट्स को इस तरह के एकदम गैर-जिम्मेदार और निंदनीय वक्तव्यों के लिए ताकत मिलती है। यह कहने के लिए कहां से उन्हें समर्थन मिलता है। यहां तक कि अनुशासनात्मक कार्यवाही के बाद भी वे इस तरह के विशाल जनाधार को लामबंद कर सकते हैं? इन सवालों के जवाब इन सारे घटनाक्रम से जुड़ी वास्तविकताओं को बताएंगे। ये जवाब बताएंगे कि नुपूर शर्मा और नवीन जिंदल अपवाद नहीं हैं लेकिन नियम हैं।

भारतीय सरकार और विदेश में भारतीय मिशन भारतीय जनता पार्टी में ‘‘फ्रिंज एलिमेंट’’ के कारण उत्पन्न संकट से बाहर आने के लिए ओवरटाइम काम में लगी है। सत्तारूढ़ दल को समझ आ गया होगा कि भारत जैसे महान देश का शासन उनके संकीर्ण धारणाओं से कहीं बड़ा काम है। वे ‘‘सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास’’ जैसे नारों के प्रमुख निर्माता हो सकते हैं, लेकिन वे इसे व्यवहार में चरितार्थ करने में पूरी तरह असफल रहे हैं। देश इन असफलताओं का आंतरिक और बाह्य रूप से मूल्य चुका रहा है।

देश के अंदर, लोगों की पीड़ाएं सरकार की सामाजिक-आर्थिक नीतियों के कारण बढ़ गई हैं। इस समस्या का समाधान करने की बजाय आरएसएस-भाजपा सांप्रदायिक तनाव भड़काने में लगी है ताकि जनता का ध्यान वास्तविक समस्याओं से हटाया जा सके। उनके नेता और कार्यकर्ता इसी उद्देश्य के लिए विशिष्ट रूप से नस्लीय गर्व के स्कूल में प्रशिक्षित हैं। पार्टी से निलंबित वक्ता भी उसी स्कूल के उत्पाद हैं जिसमें नरेन्द्र मोदी और अमित शाह गढ़े हुए हैं। भिन्न तरह के कुशलताओं और विभिन्न सुरों में वे सभी हिंदुत्व, हिटलर के फासीवाद के भारतीय रूप, को अंजाम देने में लगे हैं।

अभी के समय इस्लाम का भय उनके विचार और व्यवहार का मूल तत्व बन गया है। इस इस्लाम के भय को अभिव्यक्ति मीडिया चैनलों की बहसों और सांप्रदायिक टकरावों से मिलती है। भारत के धर्मनिरपेक्ष आधारों पर गहरे घावों के बार में वे कम चिंतित हैं। वे घृणा का सांप्रदायिक जहर उगलते हैं जो कि उनके लिए आसान है। उनकी इस बहुसंख्यकवाद की योजनाओं को पूरा करने के लिए इस्लाम अतिवाद भी अपनी भूमिका कई तरह से निभाता है। जनता भी ‘बांटो और नियंत्रण करो’ से पीड़ित है। देश में ओर देश के बाहर लोग भाजपा द्वारा दिए गए वक्तव्यों के कारण परेशानियों से गुजर रहे हैं।

सांप्रदायिक कट्टरवादी ताकतों के बोलों और कामों से भारत सरकार की दुनिया के देशों के साथ संबंधों को मजबूत करने की काशिशें बुरी तरह प्रभावित हुई हैं। धार्मिक आस्था और धार्मिक अतिवाद को बांटने वाली रेखा को विश्व भर में मजबूत करने की जरूरत है। शोषक ताकतें सभी ओर से जनता और उनके संघर्षों को कॉरपोरेट की लूट के लिए, विभाजित करने की कोशिश में है। शोषक ताकतें धार्मिक प्रकृति की किसी भी घटना को आसानी से अनपेक्षित जनहानि के साथ किसी भी हद तक भड़का सकती हैं। आज की राजनीति और कूटनीति को इस सच्चाई के प्रति सजग रहना है।

अभी दो दिन पहले की बात है कि धार्मिक मामलों के लिए अमेरिकी एजेंसी ने भारत के अल्पसंख्यकों की स्थिति पर अपनी नाराजगी व्यक्त की थी। अब इस्लामिक कोऑपेरशन संगठन ने भारत के सत्तारूढ़ दल के वक्ता के खिलाफ कड़ा रूख अपनाया है। खाड़ी सहयोग समिति (गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल) के कई देशों ने इस मामले में अपनी व्यथा प्रकट करने के लिए भारतीय मिशनों के प्रमुखों को बुला भेजा। कुछ देशों में भारत के उत्पादों का बायकॉट करने का आह्वान किया गया है। इनमें से कई देशों के साथ भारत के लंबे समय से आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक संबंध रहे हैं। भारत की आर्थिक विकास के लिए इन देशों के साथ हमारे संबंध बहुत जरूरी हैं। इस तरह के गंभीर समय में कोई भी जिम्मेदार राजनीतिक पार्टी अपने किसी भी ‘‘फ्रिंज एलिमेंट’’ को इस तरह के संवेदनशील मामलों पर बोलने के लिए खुला नहीं छोड़ सकती। इन ‘फ्रिंज एलिमेंट्स’ के नाम अलग हो सकते है, विषय अलग हो सकते हैं, लेकिन जहर वही है। वे उसी स्रोत से निकलते हैं जिस स्रोत से हिंदुत्व विचारधारा का नस्लीय गर्व निकलता है। इसी विचारधारा ने एक दूसरे दिन संस्कृतिक मंत्रालय को हजारों सालों के बीच भारतीयों की नस्लीय शु(ता के अध्ययन के लिए प्रेरित किया था। यही विचारधारा बाबरी मस्जिद को तोड़ने का कारण बनी जो कि भारत के धर्मनिरपेक्ष कामों को जख्मी कर रही है। वही विचारधारा आज देश भर में सभी मस्जिदों के नीचे मूर्तियों को ढूंढ रही है। अभी हालिया विवाद से घृणा की इस विचारधारा और इसकी राजनीति ने दुनिया भर में भारत की छवि को कलुषित कर दिया है। यह नस्लीय गर्व की वही विचारधारा है जो कि ‘फ्रिंज एलिमेंट’ और उपद्रवियों के कथनों और कामों के प्रेरक कारक हैं। क्या सरकार स्वयं को विनाशकारी घृणा की विचारधारा से दूर रखने का सोच सकती है? (संवाद)