इस तरह से यह संशय समाप्त हो गया कि विपक्ष का उम्मीदवार कोई चमत्कार कर सकता है। विपक्ष की जीत की उम्मीद तो पहले भी नहीं थी, लेकिन सुश्री मुर्मू की उम्मीदवारी ने चुनावी नतीजे पर किसी तरह की अटकलबाजी पर भी विराम लगा दिया। इससे यूपीए में भी फूट पड़ गई। झारखंड में यूपीए की सरकार है और सरकार का नेतृत्व झारखंड मुक्ति मोर्चे के पास है। विपक्ष के लिए उम्मीदवार के चयन की कसरत में झारखंड मुक्ति मोर्चा भी शामिल था। यशवंत सिन्हा को विपक्ष का उम्मीदवार बनाने में उसकी भी भूमिका थी। श्री सिन्हां भले ही बिहार में पैदा हुए हों, लेकिन वे हजारीबाग में बस गए हैं, जो झारखंड में है। वे वहां से सांसद भी रहे हैं और इस समय उनका बेटा वहां से सांसद हैं। बिहार के बंटवारे के बाद यशवंत सिन्हा ने झारखंड को ही अपना गृह प्रदेश बना लिया है। लिहाजा, झामुमो नेता शीबू सोरेन को यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी पर सहमति जताने में कोई दिक्कत नहीं हुई।

लेकिन अब उसे श्री सिन्हा को वोट देने में दिक्कत हो रही हैं। द्रौपदी मुर्मू भले ही उड़ीसा से हों, लेकिन वे संथाली हैं और वे उड़ीसा के उस हिस्से की हैं, जिसे झामुमो ग्रेटर झारखंड का हिस्सा मानता है। उसका संघर्ष बिहार, पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और मध्यप्रदेश के आदिवासी हिस्सों को मिलाकर झारखंड निर्माण करने का था और द्रौपदी मुर्मू का घर जिस हिस्से में है, वह भी ग्रेटर झारखंड के हिस्से में शामिल था। भौगोलिक तथ्य तो अपनी जगह है, लेकिन द्रौपदी का आदिवासी संथाल होना एक ऐसा तथ्य है, जिसे नजरअंदाज कर झामुमो श्री सिन्हा को वोट नहीं कर सकता। इसलिए उसे द्रौपदी मुर्मू को ही वोट करना है, इससे कोई खुश हो या नाखुश।

राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष सत्ताधारी दल से नैतिक संघर्ष कर सकता था, लेकिन उम्मीदवार की उसकी पसंद ऐसी है, जिससे वह नैतिक लड़ाई भी हार गया। उसने उस यशवंत सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया, जिनका बेटा भाजपा का सांसद है और राष्ट्रपति चुनाव में एक मतदाता भी, लेकिन श्री सिन्हा ऐसे उम्मीदवार हैं, जिन्हें अपने बेटे का भी वोट नहीं मिलेगा, हालांकि उनका बेटे उन्हीं के कारण लोकसभा के सदस्य हैं। उनके बेटे होने के कारण ही भाजपा ने 2014 में उन्हें उनकी जगह हजारीबाग से अपना उम्मीदवार बनाया था।

भाजपा मूलरूप से भाजपा के ही हैं। वे भाजपा की अटल सरकार में वित्त और विदेश मंत्री थे। उन पर भ्रष्टाचार के अनेक आरोप उन लोगों ने ही लगाया था, जिन्होंने आज उन्हें अपना उम्मीदवार बना रखा है। उन्हें उम्मीदवार बनाकर विपक्ष ने यह साबित कर दिया कि उसे भी राजनैतिक शुचिता की परवाह नहीं है। भाजपा में दरकिनार कर दिए जाने के बाद यशवंत सिन्हा एक बेचैन राजनीतिज्ञ की तरह व्यवहार करते रहे। राजनीति से संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद वे एक पार्टियों से दूसरी पार्टियों की ओर चक्कर लगाते रहे। कभी आम आदमी पार्टी से गलवाहियां की, तो कभी कांग्रेस और अंत में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने तृणमूल कांग्रेस का साथ छोड़ने में भी तनिक भी देर नहीं लगाई।

इस तरह से राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा को चुनौती देने का मौका विपक्ष ने गंवा दिया। यशवंत सिन्हा का चुनाव प्रचार निष्तेज है। जिन लोगों ने उन्हें उम्मीदवार बनाया, उनमें से अनेक उनका साथ छोड़ चुके हैं। उनके समर्थक दलों और नेताओं में उनके चुनाव अभियान के लिए कोई उत्साह नहीं रहा। यदि विपक्ष ने कि सी उच्च नैतिकता वाले और साफ सुथरी छवि वाले किसी व्यक्ति को अपना उम्मीदवार बनाया होता, तो कम से कम विपक्ष राजग पर नैतिक रूप से हावी तो रहता ही, लेकिन अब बस सब कुछ औपचारिकता रह गई है और विपक्ष का उम्मीदवार न केवल हारने वाला है, बल्कि भारी मतों से हारने वाला है। इसके कारण विपक्ष में बिखराव भी पैदा हो गया है। झारखंड और शिवसेना ही नहीं, ओमप्रकाश राजभर, शिवपाल यादव और मायावती तक ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन की घोषणा कर दी है।

आश्चर्य होता है कि विपक्ष भाजपा की आक्रामक राजनीति का मुकाबला इतना निष्तेज होकर क्यों कर रही है। क्या उनके नेताओं को राजनीति की समझ नहीं है? यह सच है कि यशवंत सिन्हा विपक्ष की पहली पसंद नहीं थे, लेकिन उसके पास और भी अनेक बड़े नाम थे। वे शरद यादव को अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार बना सकते थे। वे वामपंथियों के बीच में से ही किसी को अपना उम्मीदवार बना सकते थे। तृणमूल कांग्रेस के अन्य नेताओं में से भी किसी को उम्मीदवार बनाया जा सकता था। शत्रुघ्न सिन्हा एक निष्कलंक राजनेता रहे हैं। तृणमूल ने उन्हें लोकसभा का सदस्य बनवा दिया, लेकिन सांसद के राष्ट्रपति चुनाव लड़ने पर कोई रोक नहीं है। शत्रुघ्न सिन्हा को भी विपक्ष राष्ट्रपति का उम्मीदवार बना सकता था। या इन सभी पार्टियों से बाहर के किसी व्यक्ति को भी उम्मीदवार बनाया जा सकता था।

अब उपराष्ट्रपति के लिए उम्मीदवार का चयन करने का समय है। हार तो सुनिश्चित ही है, लेकिन यदि चुनाव लड़ना हो, तो काई ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना होगा, जिन पर विवाद न हो और जो कम से कम विपक्षी वोट हासिल कर सके। देखना दिलचस्प होगा कि विपक्ष अपनी गलतियां से सबक लेता है या नहीं। (संवाद)