गोपनीय रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रक के रूप में सूचीबद्ध वाहन स्कूटर, मोटरसाइकिल और ऑटो निकले और लाभार्थियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई। एजी ने मुख्य सचिव को एक ‘स्वतंत्र एजेंसी’ के माध्यम से जांच करने और विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करने को कहा है। ‘ऑडिट के निष्कर्ष स्पष्ट रूप से लाभार्थियों की पहचान, उत्पादन, परिवहन, वितरण और टेक-होम राशन (टीएचआर) के गुणवत्ता नियंत्रण में बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी व हेराफेरी का संकेत देते हैं। यह पूरी प्रक्रिया में सुधार और एक आईटी प्रणाली विकसित करने का सुझाव देता है।

रविवार की मध्यरात्रि के करीब राज्य सरकार ने आंशिक रूप से लिपिकीय त्रुटियों को दोषी ठहराते हुए प्रतिक्रिया जारी करते हुए कहा कि सीएम के निर्देश पर सुधारात्मक उपाय पहले ही किए जा चुके हैं। टीएचआर के तहत 6-36 महीने के बच्चों और गर्भवती-स्तनपान कराने वाली महिलाओं को पोषण की कमी को पूरा करने के लिए पौष्टिक भोजन का वितरण किया जाता है। निदेशालय ने लेखा परीक्षकों को सूचित किया कि सरकार ने सिर्फ 2018- 2021 तक सभी श्रेणियों के 1.34 करोड़ लाभार्थियों को वितरित करने के लिए 4.05 मीट्रिक टन की खरीद के लिए 2393 करोड़ खर्च किए।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018-19 में, स्कूल शिक्षा विभाग ने स्कूल से बाहर किशोरियों की संख्या 9,000 होने का अनुमान लगाया है, लेकिन विभाग ने बिना कोई आधारभूत सर्वेक्षण किए उनकी संख्या 36.08 लाख होने का अनुमान लगाया है। ऑडिट में 2018-21 के दौरान डेटा हेरफेर के स्पष्ट संकेत मिले, जिससे र 110.83 करोड़ के टीएचआर का नकली वितरण हुआ। ऑडिटर्स को 4.95 करोड़ रुपये की 821.8 एमटी टीएचआर की नकली आपूर्ति का भी संदेह है।

जब लेखा परीक्षकों ने रिकॉर्ड किए गए ट्रकों और 2.4 करोड़ रुपये के टीएचआर की आपूर्ति करने वाले वाहनों की पंजीकरण संख्या को क्रॉस-चेक किया, तो वे मोटरसाइकिल, ऑटो रिक्शा, कार, ट्रैक्टर और टैंकर निकले। इसी तरह, लगभग 646 मीट्रिक टन टीएचआर, 3 करोड़ रुपये से अधिक मूल्य के उन वाहनों में आपूर्ति की गई थी जो मौजूद भी नहीं हैं।

लेखापरीक्षा में दोषपूर्ण निविदा और वित्तीय त्रुटियों का पता चला, जिसमें रुपये की वसूली न होना भी शामिल है। मप्र राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एमपीएसआरएलएम) को सात संयंत्र स्थापित करने के लिए 141 करोड़ रुपये का अग्रिम भुगतान किया गया।

आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि 24.69 लाख बच्चों, 14.25 लाख गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं सहित 49.58 लाख पंजीकृत लाभार्थियों को लाभ प्रदान किया गया था। लेखा परीक्षकों ने आठ जिलों में 11.98 लाख (24 प्रतिशत) लाभार्थियों को दिए गए टीएचआर की जांच की और इन चौंकाने वाले निष्कर्षों पर पहुंचे। रिपोर्ट ने अन्य सभी जिलों में योजना के ऑडिट की सिफारिश की जैसे ही घोटाले की जानकारी सामने आई प्रदेश पीसीसी प्रमुख कमलनाथ ने मुख्यमंत्री से नैतिक जिम्मेदारी लेने को कहा। प्रदेश कांग्रेस का आरोप है कि यह कम से कम 2,000 करोड़ रुपये का घोटाला है।

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय भोपाल में नाथ ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘घोटाला मुख्यमंत्री के विभाग में हुआ है। जब अनियमितताएं उजागर हुई हैं, तो उन्हें नैतिक आधार पर इस्तीफा देना चाहिए था।’’

कांग्रेस के दिग्गज नेता ने कहा, ‘‘शिवराज सिंह चौहान सरकार के पौष्टिक भोजन घोटाले का पर्दाफाश सीएजी की रिपोर्ट से हो गया था। आज इस राज्य में समाज का हर वर्ग परेशान है। चाहे खाद की बात हो या बीज की, जहां भी देखो, वहीं शिवराज सरकार की भ्रष्ट व्यवस्था है। सीएम चौहान ने ट्वीट किया था, ष्यह सीएजी की अंतिम रिपोर्ट नहीं है। यह एक प्रारंभिक रिपोर्ट है, जिस पर विभाग को अभी अपना पक्ष रखना है।’’

मध्य प्रदेश सरकार ने कहा है कि सुधारात्मक कदम उठाए गए हैं और ऑडिट निष्कर्षों के लिए लिपिकीय त्रुटियों को जिम्मेदार ठहराया है कि मोटरसाइकिल और ऑटो को डिलीवरी ट्रक के रूप में पारित किया गया था।

नाथ ने हमला जारी रखा। उन्होंने कहा, ’’ऐसा लगता है कि शिवराज सरकार के अगले 12 महीने घोटाले के खुलासे से भरे रहेंगे। अगला साल घोटालों का साल होगा। पिछले 18 सालों से उन्होंने घोटालों की व्यवस्था की है। इसका खुलासा रोजाना होगा।’’

नाथ ने आरोप लगाया, ‘‘किसानों को यूरिया और बीज नहीं मिल रहे हैं, सहकारी समितियों को खाद नहीं मिल रही है। उन्हें अब तक कार्रवाई शुरू कर देनी चाहिए थी।’’

कमलनाथ ने कहा कि कांग्रेस सोमवार से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को उठाएगी। ‘‘हम सरकार से मांगेंगे स्पष्टीकरण घोटाले परए’’ उन्होंने कहा। ’’घोटाला सामने आने के अगले दिन सीएम को आरोपों पर अपना स्पष्टीकरण देना चाहिए था। एक प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया’’।

महिला एवं बाल विकास विभाग ने मप्र के महालेखा परीक्षक द्वारा की गई ‘‘टिप्पणियों’’ का जवाब देने के लिए 15 दिन का समय मांगा है। डब्ल्यूसीडी ने ऑडिट को ‘‘ड्राफ्ट रिपोर्ट’’ बताया और कहा कि ऑडिट आपत्तियों पर जवाब भेजने के लिए एक पखवाड़े का समय मांगा गया है।

जिन आठ जिलों का ऑडिट किया गया, उनमें सतना, रीवा, धार, झाबुआ, छझिंदवाड़ा, भोपाल और शिवपुरी के अधिकारियों को सत्यापन के लिए अपने सभी दस्तावेजों के साथ डब्ल्यूसीडी निदेशालय बुलाया गया है. इस मुद्दे पर राज्य सचिवालय में वीडियो कांफ्रेंस भी की गई। (संवाद)