ये 6 वस्तुएं हैं खनिज ईंधन, तेल और बिटुमिनस पदार्थ (एचएस कोड 27); प्राकृतिक या संवर्धित मोती, अर्द्ध कीमती पत्थर, हीरे और सोना (एचएस कोड 71); विद्युत मशीनरी और उपकरण, ध्वनि रिकॉर्डर, और टीवी (एचएस कोड 85); परमाणु रिएक्टर बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण (एचएस कोड 84); कार्बनिक रसायन (एचएस कोड 29); और लोहा और इस्पात (एचएस कोड 72)। ये सभी वस्तुएँ आय-लोचदार हैं, अर्थात् किसी भी अर्थव्यवस्था के बढ़ने पर इनके आयात बढ़ने की संभावना होती है। भारत सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, इस वित्तीय वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 7% बढ़ने का अनुमान है। इसलिए, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि विकास को बनाये रखने के लिए भारत को कोयला, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस जैसे अधिक खनिज ईंधन की आवश्यकता होगी।

इन छह प्रमुख वस्तुओं में, खनिज ईंधन (एचएस कोड 27) के अंतर्गत आने वाली वस्तुएं सबसे अलग हैं। पिछले चार वर्षों में, औसतन खनिज ईंधन मदों का कैड में सालाना लगभग 93,313 मिलियन अमेरिकी डॉलर का योगदान था। हालांकि, चालू वित्त वर्ष के दौरान, अकेले पहली तिमाही में, इसने भारत के कैड को 68,031 मिलियन अमेरिकी डॉलर तक कम करने में योगदान दिया। खनिज ईंधन के कारण आयात बिलों में अचानक वृद्धि का संबंध अमेरिकी डॉलर के मजबूत होने (अर्थात रुपये में गिरावट) और अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमत में वृद्धि से है। उदाहरण के लिए, तेल की कीमतें जनवरी 2022 में लगभग 87 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर जून 2022 में लगभग 118 अमेरिकी डॉलर हो गयीं। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष से भारतीय रुपये के मूल्य में 7% से अधिक की गिरावट आयी है तथा डॉलर के मुकाबले 82 रुपये के ऐतिहासिक निचले स्तर को तोड़ दिया।

भारत के कुल आयात में खनिज ईंधन मदों का हिस्सा लगभग 38% है जबकि भारत के कुल निर्यात में इसका हिस्सा लगभग 22% है। भारत मुख्य रूप से कच्चे तेल और थर्मल कोयले का आयात करता है। रिलायंस जैसे कॉरपोरेट समूह आयातित कच्चे तेल को परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों जैसे मोटर गैसोलीन, डीजल ईंधन, तरल पेट्रोलियम गैस आदि में परिवर्तित करते हैं, जो घरेलू खपत और निर्यात के लिए होते हैं। एक बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था का अर्थ है परिवहन और ऊर्जा की अधिक मांग जो मुख्य रूप से थर्मल कोयले के आयात से पूरी होती है।

खनिज ईंधन के अलावा, एक अन्य उत्पाद श्रेणी जिसने बढ़ते कैड में सबसे अधिक योगदान दिया है, वह है प्राकृतिक या संवर्धित मोती, अर्ध कीमती पत्थर, हीरे और सोना (एचएस कोड 71)। रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इस श्रेणी में नुकसान हुआ। रूस से कच्चे हीरों और अर्ध-कीमती पत्थरों की आपूर्ति में कमी के कारण, भारत को अफ्रीका में उच्च लागत वाले आपूर्ति करने वाले देशों से समान वस्तुओं का आयात करना पड़ा। जैसे खनिज ईंधन के मामले में, भारत कच्चे हीरे और अर्ध-कीमती पत्थरों का आयात करता है, पॉलिश करता है और उन्हें गहनों में डिजाइन करता है, और उसके बाद फिर से निर्यात करता है।
सोने का मामला थोड़ा अलग है। पिछले दस वर्षों में, 2021 के दौरान, भारत में सबसे अधिक सोने का आयात हुआ। आयातित सोने का अधिकांश हिस्सा घरेलू खपत के लिए होता है, जिसमें उद्योग के भीतर व्यापार का एक छोटा सा तत्व होता है।

दो अन्य मदों, अर्थात् कार्बनिक रसायन (एचएस कोड 29) और आयरन एंड स्टील (एचएस कोड 72) ने कैड में छिटपुट योगदान दिया। उदाहरण के लिए, ऑर्गेनिक केमिकल्स को ही लें। कोविड काल में भारत चीन से दवाओं के निर्माण के लिए उपयोग किये जाने वाले कच्चे माल या सक्रिय फार्मास्युटिकल आयात (एपीआई)पर बहुत अधिक निर्भर था। चीन से एपीआई आयात का प्रतिशत हिस्सा 1991 में 1% से बढ़कर 2020 में 70% हो गया। जैविक रसायनों का उपयोग कार्मिक सुरक्षा उपकरण किट (पीपीई) के निर्माण में भी होता है। हालांकि भारत जेनेरिक दवाओं का एक प्रमुख निर्यातक है, व्यापार संतुलन में अंतर महामारी की शुरुआत के साथ ही स्पष्ट था।

लोहे और इस्पात के आयात में वृद्धि के मामले को सड़कों, भूमि बंदरगाहों, समुद्री बंदरगाहों और हवाई अड्डों के रूप में अधिक भौतिक बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए भारत की प्रतिबद्धता के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। गौरतलब है कि वित्त वर्ष 2022-2023 के बजटीय आवंटन में वित्त मंत्री सीतारमण ने पूंजीगत व्यय को पिछले साल के 5.5 लाख करोड़ रुपये से बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये कर दिया था। इससे भारत में घरेलू स्तर पर अधिक आयरन और स्टील की खपत हुई तथा निर्यात के लिए बहुत कम गुंजाईश बची।

शेष दो क्षेत्रों - विद्युत मशीनरी और उपकरण, ध्वनि रिकॉर्डर, और टीवी (एचएस कोड 85)और परमाणु रिएक्टर बॉयलर, मशीनरी और यांत्रिक उपकरण (एचएस कोड 84) – के रूझान बहुत चिंताजनक नहीं हैं।
विदेशी आयात पर निर्भरता को कम करने के लिए, भारत सरकार ने 2011 में राष्ट्रीय विनिर्माण नीति जैसे कार्यक्रम शुरू किये। इसके बाद, मेक इन इंडिया (2014) और आत्मानिर्भर भारत अभियान (2020) जैसी योजनाएं भी शुरू की गयीं। इसके अतिरिक्तकई उपाय किए गये। फोकस मार्केट स्कीम (एफएमएस) और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) जैसी योजनाएं शुरू की गयीं। एफएमएस के तहत, सरकार निर्यात पर प्रोत्साहन प्रदान कर रही है जिसका उपयोग बाद में निर्यात के लिए उपयोग किए जाने वाले कच्चे माल पर भविष्य के आयात शुल्क के निपटान के लिए किया जा सकता है। पीएलआई को कर छूट, आयात और निर्यात शुल्क रियायतों और भूमि-अधिग्रहण की आसान शर्तों जैसे भूमि-पंजीकरण कर में कटौती के रूप में दिया गया था। इसका उद्देश्य विदेशी और घरेलू फर्मों को ग्रीनफील्ड और ब्राउनफील्ड परियोजनाओं में निवेश करने में सक्षम बनाना है।

जहां एक ओर पीएलआई योजनाओं के प्रभाव का परीक्षण किया जाना बाकी है, नीति निर्माता बढ़ते कैड को रोकने के लिए संघर्षरत हैं। उदाहरण के लिए, भारत ने रूस से सस्ता तेल खरीदना जारी रखा है। इसके अतिरिक्त, भारत ने 100% टूटे चावल के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया। ईंधन के वैकल्पिक स्रोत इथेनॉल के उत्पादन के लिए टूटे चावल का उपयोग करने का विचार है। 1 जुलाई को, सरकार ने सोने के आयात पर सीमा शुल्क को 7.5% से बढ़ाकर 12.5% कर दिया। विकसित देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सुविधा के लिए, फार्मा और चिकित्सा-उपकरण क्षेत्रों में स्वचालित मार्ग के माध्यम से 100% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) की अनुमति दी गयी है।

ये कदम पहले ही कुछ क्षेत्रों के लिए फायदेमंद साबित हुए हैं। फार्मास्युटिकल, जैसे दवाएं तथा वैक्सिन, निर्यात के मामले मेंभारत अच्छा प्रदर्शन कर रहा है। पीएलआई योजना में फॉक्सकॉन, विस्ट्रॉन, नोकिया, कोरल टेलीकॉम जैसे विदेशी स्मार्टफोन निर्माताओं ने भारत में निवेश करने में रुचि दिखायी है। इससे भारतीय विनिर्माण फर्मों के लिए प्रतिस्पर्धात्मकता और उत्पादकता में वृद्धि होगी तथा चालू खाता घाटे पर लगाम लगने की संभावना है। (संवाद)