पांच सदस्यीय ईसीपी ने जानबूझकर भौतिक तथ्यों को छिपाने के साथ-साथ उसके सामने एक गलत बयान देने के लिए तोशाखाना (गिफ्ट डिपॉजिटरी) संदर्भ में खान को अयोग्य घोषित कर दिया। ईसीपी के फैसले में कहा गया है: "जैसा कि प्रतिवादी (इमरान खान) ने झूठे बयान और गलत घोषणा की है, इसलिए उसने चुनाव अधिनियम, 2017 की धारा 167 और 173 के तहत परिभाषित भ्रष्ट आचरण का अपराध भी किया है, जो चुनाव की धारा 174 के तहत दंडनीय है। चुनाव अधिनियम, 2017 की धारा 190 (2)के तहतकार्यालय को कानूनी कार्यवाही शुरू करने का निर्देश दिया जाता है।"

खान ने बैरिस्टर अली जफर के माध्यम से इस्लामाबाद उच्च न्यायालय (आईएचसी) का रुख किया है और ईसीपी के आदेश को रद्द करने की मांग की है। लेकिन आईएचसीके मुख्य न्यायाधीश अतहर मिनल्लाह इस मामले की सुनवाई नहीं कर रहे हैं क्योंकि उनका नाम सुप्रीम कोर्ट में उनकी पदोन्नति के लिए पाकिस्तान के न्यायिक आयोग के समक्ष विचाराधीन है। जहां एक ओर उच्चतर न्यायालय से चुनावी मामलों में अंतरिम राहत मिलने की उम्मीद है, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश उमर अता बंदियाल सार्वजनिक पद धारकों की वित्तीय पारदर्शिता के मामलों पर अपने कठोर फैसलों के लिए जाने जाते हैं।

वरिष्ठ और उच्च सम्मानित वकील हैं जो मानते हैं कि अगर इमरान खान उपहारों की खरीद के संबंध में पैसे का लेन-देन करने में विफल रहते हैं तो उससे गंभीर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। इस प्रकार वकीलों की ईसीपी आदेश पर अलग-अलग धारणाएं हैं, जिसने एक गर्म बहस शुरू कर दी है। इसलिए मामला लंबा खिंच सकता है और अयोग्यता के मामले पर अंतिम निर्णय कई कारकों के अधीन है।

‘द इंटरनेशनल न्यूज’ दैनिक समाचार पत्र ने सहानुभूतिपूर्ण संपादकीय में कहा, "कई मायनों में, ऐसा लगता है कि हम 2018 के चुनाव के बाद से एक चक्र पूरा कर ऐसी जगह आ गये हैं जहां परिस्थितियों की कुरूपता जाहिर हो गयी है, जिसने उस अभ्यास को पूरा किया है जिसके तहत पाकिस्तान अपना इतिहास दोहराता है, यह बताते हुए कि पूर्व प्रधान मंत्री मियां नवाज शरीफ को भी अयोग्य घोषित किया गया था तथा इस बार तोशाखाना मामले में, पूर्व प्रधान मंत्री इमरान खान को चुनाव आयोग के उसी फैसले का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें उन्होंने बार-बार कहा है कि उन्हें विश्वास नहीं है।”

निस्संदेह, पीटीआई प्रमुख ने प्रधान मंत्री के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान तोशाखाना उपहारों और उनकी बिक्री से प्राप्त आय के विवरण को साझा न करके अपनी अयोग्यता का मार्ग प्रशस्त किया। जाहिर है, उन पर झूठा बयान देने और चुनाव अधिनियम की धारा 174 के तहत दंडनीय भ्रष्ट आचरण का अपराध करने का आरोप लगाया गया था। उन्होंने स्पष्ट रूप से ईसीपी को हल्के से लिया और संवैधानिक अधिकार रखने वाले चुनावी प्राधिकरण के प्रति संवैधानिक शिष्टाचार की अनदेखी की।

इस्लामाबाद के एक वर्ग में कानूनी राय है कि तोशाखाना से कानूनी साधनों के माध्यम से उपहार प्राप्त करना 'यहाँ मुद्दा नहीं था या उन्हें बेचना भी नहीं था, लेकिन इमरान ने उन्हें एक सांसद के रूप में घोषित नहीं किया, इसे अयोग्यता के आधार के रूप में देखा गया है'।

प्रसिद्ध वकील सलमान अकरम राजा कोलगता है कि अगर किसी को गलत बयान दर्ज करने के कारण "ग़ैर-सादिक" के रूप में अयोग्य घोषित किया जाना है, तो अनुच्छेद 62 (1) (एफ) के तहत केवल न्यायपालिका से घोषणा की जा सकती है, ईसीपी से नहीं। इसलिए यह ईसीपी को किसी भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को अयोग्य घोषित करने का अधिकार नहीं देता है और संपत्ति का गलत विवरण दाखिल करने से अयोग्यता नहीं होती है। "अयोग्यता तभी हो सकती है जब मुकदमा दायर करने के 120 दिनों के भीतर अभियोजन शुरू किया जाता है और दो साल या उससे अधिक की सजा सुनायी जाती है। यह अब संभव नहीं है, ”उन्होंने कहा।

इसके अलावा, अगर इमरान खान ने कम संपत्ति के बयान दर्ज कराये, तो उनके खिलाफ चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 137 के तहत इस तरह के बयान दर्ज करने के 120 दिनों के भीतर मुकदमा चलाया जा सकता था, उन्होंने कहा। पीटीआई प्रमुख ने 31 दिसंबर 2021 को अपना बयान दिया था और इसलिए अभियोजन 30 अप्रैल 2022 तक शुरू हो सकता था। राजा के अनुसार ऐसा नहीं किया गया।

इसकी अगली कड़ी के रूप में, पूरे देश में सैकड़ों-हजारों इमरान समर्थकों ने हंगामा शुरू किया, जो 'अपने कप्तान पर नवीनतम हमले पर अपनी निराशा दर्ज करने' के लिए सड़कों पर उतर आये। उनके अनुसारअयोग्यता या तकनीकी नॉकआउट का सवाल मतदाताओं का अपमान था।
पाकिस्तान मुस्लिम लीग के नवाज शरीफ तथा पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नवाज और यूसुफ रजा गिलानी ने भी अतीत में विभिन्न तकनीकी आधारों पर एक ही भाग्य का सामना किया था।

अयोग्यता के मुद्दे नेपाकिस्तान में एक जोरदार बहस को जन्म दिया है, जिसनेलोकप्रिय राजनीतिक प्रतिभागियों को परेशान कर दिया है क्योंकि या तो यह कानून के शासन को मजबूत कर सकता है या केवल एक लेवल प्लेयिंग फील्ड (समान अवसर) प्रदान करने का एक और प्रयास साबित हो सकता है जिसके लिए समय-समय पर एक नये लक्ष्य पर नये फॉर्मूले के साथ परीक्षण किये जाते रहे हैं।राजनीतिक विश्लेषकों ने राज्य संस्थानों की शक्तियों के प्रयोग की सीमाओं पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इन फैसलों ने राजनीतिक और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर कर दिया है।(संवाद)