प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, जिन्होंने एक समय में अपने अस्तित्व को भी दाँव पर लगा दिया था, बाद में इसे एक गर्म आलू की तरह गिरा दिया और भारतीय रिजर्व बैंक पर दोष मढ़ दिया क्योंकि यह स्पष्ट हो गया कि पूरी बात एक असफलता थी।उनकी रणनीति को अब सर्वोच्च न्यायालय के साथ संस्थागत समर्थन प्राप्त हुआ है, जिसमें कहा गया है कि निर्णय के पहले उचित परामर्श प्रक्रियाएं की गयी थीं।

जहां एक ओर अधिकांश उद्देश्यों की विफलता स्पष्ट है, सत्तारूढ़ दल, सरकार और नौकरशाह डिजिटलीकरण को बड़ी उपलब्धि के रूप में प्रदर्शित कर रहे हैं, जबकि इसे बढ़ावा देने की पहल नोटबंटी की एक संदेहास्पद निर्णय के साथ किया गया था। अनेक आंकड़े निकालकर बताये जा रहे हैं कि किस प्रकारडिजिटल भुगतान के दायरे का विस्तार हुआ जिसे विमुद्रीकरण का सबसे बड़ा परिणाम बताया जा रहा है। दावा तो यह भी किया जा रहा है कि डिजिटलीकरण के कारण काले धन को सफेद करने के रास्ते रूक गये, अर्थात् अवैध धन को नियमित करने के लिए उपयोग किए जाने वाले चैनल बंद हो गये हैं।

इस दावे के समर्थन में, सरकार का दावा है कि डिजिटल भुगतान का मूल्य 2016 में 6,952 करोड़ रुपये से बढ़कर अक्टूबर 2022 में 12 लाख करोड़ रुपये हो गया है। परन्तु बड़ा दुःखद तथ्य यह है कि अर्थव्यवस्था में काले धन का प्रवाह, विशेष रूप से रियल एस्टेट और निर्माण में, जो बेहिसाब धन के लिए सबसे पसंदीदा माध्यम रहा है, अभी भी जारी है।

लोकल सर्कल्स के एक सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, नोटबंदी के छह साल बाद भी रियल एस्टेट लेनदेन में काले धन का प्रचलन बना हुआ है।विमुद्रीकरण के बाद से अपने छठे साल के सर्वेक्षण में, लोकल सर्कल्स ने पाया कि रियल एस्टेट लेनदेन का एक बड़ा हिस्सा अभी भी नकद द्वारा किया जा रहा है।लोकल सर्कल्स ने भारत के 342 जिलों में 32,000 से अधिक नागरिकों से प्रतिक्रियाएँ एकत्र कीं।इनमें से 11,499 ने पिछले सात वर्षों में अपनी अचल संपत्ति की खरीद से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर दिया।उनमें से 44 प्रतिशत ने नकद में भुगतान का एक हिस्सा बनाने की बात स्वीकार की।

सर्वेक्षण से पता चला कि 8 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने नकद में कुल राशि के आधे से अधिक का भुगतान किया था,जबकि 15 प्रतिशत ने संपत्ति/भूमि के मूल्य का 30-50 प्रतिशत नकद में भुगतान किया था।अन्य 10 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने 10-30 प्रतिशत नकद में भुगतान किया था।कुल 35 प्रतिशत लोगों ने अपनी अचल संपत्ति के लेन-देन का ब्योरा नहीं दिया।

संपत्ति से संबंधित लेन-देन पिछले साल के सर्वेक्षण के अनुसार भी नकद उपयोग का शीर्ष क्षेत्र था।उस समय, कुल उत्तरदाताओं में से 70 प्रतिशत ने स्वीकार किया था कि उन्होंने पिछले सात वर्षों में अपनी संपत्ति की खरीद के भुगतान के लिए नकद में लेनदेन किया था।भूमि और संपत्ति का लेन-देन नकद में होता रहता है क्योंकि इससे संपत्ति के मालिक पूर्ण करों का भुगतान करने से बचते हैं।

दैनिक जीवन में भी, घरेलू मदद, घर की मरम्मत, और अन्य खर्चों का भुगतान बड़े पैमाने पर बिना रसीद के नकद में किया जाता था।सर्वेक्षण में उत्तरदाताओं से उन सेवाओं की श्रेणियों के नाम बताने को कहा गया जिनके लिए उन्होंने पिछले वर्ष बिना रसीद के नकद भुगतान किया था।चुनने के लिए तीन श्रेणियां और उनके संयोजन थे।48 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने कहा कि वे मुख्य रूप से घरेलू नौकरों के वेतन का भुगतान करने और घर की मरम्मत जैसी सेवाओं के लिए नकदी का उपयोग करते हैं।इसके अलावा, अतिरिक्त 20 प्रतिशत ने कहा कि वे अपने घरेलू सहायकों को भुगतान करने के लिए नकदी का इस्तेमाल करते हैं।

पहले विमुद्रीकरण और बाद में महामारी के कारण देश में नकदी के उपयोग का प्रचलन कम हो गया था, जहां लोगों को ऑनलाइन ऑर्डर देने और भुगतान करने तक सीमित कर दिया गया था।फिर भी, बिना रसीद और काले धन के बड़े पैमाने पर नकदी के उपयोग के साथ, अन्य विवादास्पद दावों के बावजूद, विमुद्रीकरण की सफलता पर जूरी अभी भी बाहर है।

डिजिटल लेन-देन में उछाल के बावजूद 18 मार्च 2022 तक अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रचलन 9.2 प्रतिशत बढ़कर 31 लाख करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया, जबकि एक साल पहले की अवधि में यह 28.5 लाख करोड़ रुपये था।सरकार द्वारा नवंबर 2016 के की नोटबंदी की घोषणा के बाद से जनता के पास नकदी में 68 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2020 में एटीएम से नकद निकासी भी 251,075 करोड़ रुपये से बढ़कर मार्च 2022 तक 262,539 करोड़ रुपये हो गयी है।यह आंशिक रूप से जन धन खातों के माध्यम से विभिन्न लाभार्थी योजनाओं के संवितरण और कोविड प्रतिबंधों को वापस लेने के कारण, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में एटीएम से नकदी निकासी में वृद्धि के लिए जिम्मेदार है।(संवाद)