इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के मानद् महासचिव डॉ जयेश लेले के अनुसार1800 से अधिक डॉक्टरों ने कोविड 19 में जानें गंवायीं - पहली लहर के दौरान 757 और दूसरी लहर के दौरान 839।बाकी 204 की बाद में मौत हो गयी।केरल के सभी 29 कोविडशहीद डॉक्टरों को मुआवजा दिया गया है, तथा दिल्ली के 150 में से सिर्फ 27 डॉक्टरों को।

एक अन्य मामले में नवी मुंबई नगर निगम के आयुक्त द्वारा 31 मार्च 2020 को डॉ. भास्कर सुरगड़े को लॉक डाउन की अवधि के दौरान COVID-19 से पीड़ित रोगियों के इलाज के लिए अपनी डिस्पेंसरी खुली रखने के लिए एक नोटिस जारी किया था।दुर्भाग्य से 10 जून 2020 को कोविड के कारण उनका निधन हो गया। डॉ. भास्कर सुरगड़े की पत्नी किरण भास्कर सुरगड़े ने मुआवजे के लिए बॉम्बे उच्च न्यायालय के समक्ष याचिका दायर की।उच्च न्यायालय ने हालांकि डॉ सुरगड़े के परिवार को मुआवजे के लिए याचिका को इस आधार पर खारिज कर दिया कि डॉ सुरगड़े की सेवाओं को कोविड-19 कर्तव्यों के लिए अपेक्षित नहीं किया गया था और 31 मार्च 2020 को जारी किये गये नोटिस को उनकी मांग के नोटिस के रूप में नहीं माना जा सकता है।कोविड-19 रोगियों के उपचार के विशिष्ट उद्देश्य के लिए सेवाएं और नोटिस में औषधालय को कोविड-19 रोगियों के लिए खुला रखा जाना आवश्यक नहीं था।इस मुद्दे को अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका में सूचीबद्ध किया गया है।

सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, प्रथम दृष्टया योजना का उद्देश्य स्वास्थ्य पेशेवरों को कोविड-19 वायरस के संपर्क में आने के कारण सामाजिक सुरक्षा का एक उपाय प्रदान करना है, क्योंकि वे अपनी चिकित्सकीय कर्तव्य के निर्वहन के दौरान -सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के संस्थानों में –संक्रमण की संभावना रखते हैं।शीर्ष अदालत ने यह भी देखा कि यह मामला राष्ट्रव्यापी चिंता का मुद्दा उठाता है।

इस पूरे मामले ने एक गंभीर सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या कोविड-19 प्रभावित मरीजों को सेवाएं देने के उद्देश्य से विशेष रूप से अपेक्षित संस्थान के केवल वे डॉक्टर और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी ही मुआवजे के लिए हकदार हैं, या अन्य स्वास्थ्य सेवा कार्यकर्ता भी जिन्होंनेअत्यधिक स्वास्थ्य संकट के दौरान अपना जीवन दांव पर रखकर सरकारी आदेश के तहत अपनी सेवाएं प्रदान की हैं।किसी भी स्वास्थ्य आपात स्थिति में चिकित्सा कर्मियों का कर्तव्य है कि वे समाज के प्रति समर्पण के साथ अपने कर्तव्य का निर्वहन करें।हमने देखा है कि सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों के डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल स्टाफ, आशा कार्यकर्ता, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता सहित अधिकांश स्वास्थ्य कार्यकर्ता सार्वजनिक शिक्षा और सक्रिय उपचार के माध्यम से बीमारी को रोकने के लिए सबसे आगे थे।यह उन्होंने कुछ स्थानों पर मौखिक या शारीरिक अपमान की कीमत पर भी किया।

दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना के मामले में आज पीड़ित परिवार चौराहे पर खड़े दिख रहे हैं, जो किसी भी सभ्य समाज के लिए स्वीकार्य नहीं है।ऐसे कई उदाहरण हैं जहां मृत व्यक्ति एकमात्र कमाने वाला था।इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि ऐसे सभी स्वास्थ्य कर्मियों को, चाहे वे विशेष प्रयोजन के लिए अपेक्षित हों या नहीं, अविलम्ब बीमा लाभ दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्होंने बीमारों की सेवा करते हुए अपना जीवन लगा दिया।हजारों कर्मचारी जिन्हें कोविड के दौरान अल्पावधि के लिए काम पर रखा गया था, अब अधर में हैं।उनकी देखभाल करने की जरूरत है।आशा कार्यकर्ताओं और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को कम से कम नियमित कार्यकर्ता के रूप में मान्यता दी जाये।

भारत पहले से ही कई संचारी और गैर-संचारी रोगों का केंद्र है।प्रभावितों की देखभाल की जिम्मेदारी सरकार की है।वास्तव में यह बीमारी बहुत तेजी से फैलती है और लाखों लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर करती है क्योंकि कोई नौकरी या आजीविका का साधन नहीं बचा था।पहले बिना किसी नोटिस के लॉकडाउन लगाया गया और फिर सरकार ने गरीब परिवारों को मुआवजे की मांग पर ध्यान नहीं दिया।ट्रेड यूनियनों की मजदूरों के प्रत्येक परिवार को 7500/- रुपये प्रति माह देने की मांग को पूरी तरह से अनसुना कर दिया गया।बाद में केवल 5 किलोग्राम अनाज और एक किलोग्राम दालमदद के तौर पर दी गयी।यह दुनिया भर की अनेक सरकारों के विपरीत है जिन्होंने कोविड-19 के दौरान लोगों को विशेष भत्ते का भुगतान किया क्योंकि नौकरियां और आजीविका के साधन प्रभावित हुए थे।

भारतीय को इस स्थिति के प्रति जागना ही चाहिए और कोविडयोद्धाओं के प्रति सहानुभूतिपूर्ण रवैया विकसित करना चाहिए।व्यावहारिक मदद न होने पर फूलों की वर्षा या प्रशंसा के शब्दों जैसी नौटंकी का कोई मतलब नहीं है।उन सभी परिवारों को देय मुआबजे और सहयोग कि जरूरत है जिनके सदस्यों ने अपनी जान की कीमत पर लोगों की सेवा की और उनकी जानें बचायीं।(संवाद)