राजनीतिक विश्लेषक, शास्त्री, बुद्धिजीवी, आरएसएस और नरेंद्र मोदी के थिंक टैंक के साथी उन शब्दों और वाक्यांशों के निहितार्थसमझने में पसीना बहा रहे हैं जिन्हें राहुल ने अपनी यात्रा के बारे में इस्तेमाल किया था, जिसे उन्होंने अपनी तपस्या के रूप में लोगों के सामने पेश किया है।संघ कुनबा अपनी बुद्धि का उपयोग यह पता लगाने के लिए कर रहे हैं कि राहुल ने अपनी यात्रा से वास्तव में क्या हासिल किया।संघ कुनबा यात्रा को चुनावी लाभ के संकीर्ण चश्मे से देख रहा है।उनकी मुख्य चिंता यह है कि क्या इस यात्रा से कांग्रेस को चुनाव जीतने में मदद मिलेगी? वे यह भी जानना चाहते हैं कि क्या यात्रा वास्तव में कांग्रेस को एकजुट करेगी?

उन्हें इस कवायद की कोई चुनावी प्रासंगिकता नहीं दिखती और शायद इसीलिए वे गुजरात चुनाव परिणामों का हवाला देते हैं। उन्हें यह भी यकीन है कि अभी कुछ और गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेता कांग्रेस छोड़ना जारी रखेंगे। परन्तु ध्यान रहे कि 7 सितंबर को यात्रा शुरू होने के बाद से किसी वरिष्ठ नेता ने पार्टी नहीं छोड़ी है।यहां तक कि जी-23 के नेता, जो आंतरिक रूप से राहुल के विरोधी हैं, ने उन्हें अपने नेता के रूप में स्वीकार नहीं करने के अपने मिशन को छोड़ दिया है।उन्हें यात्रा के राजनीतिक महत्व और गतिशीलता का अहसास हो गया है।

ये नेता पूरी तरह से संयम बनाए हुए हैं। यद्यपि राहुल जाहिर तौर पर चुनावी राजनीति को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक नहीं हैं, परन्तु यह नहीं भूलना चाहिए कि राजनेता तो राजनीतिक सत्ता का आनंद लेने के लिए राजनीति के धंधे में हैं।स्पष्ट रूप से बुद्धिजीवियों और विशेषज्ञों को अपनी पूर्वकल्पित धारणाओं और अनुमानों से परे देखना चाहिए, इस भविष्यवाणी पर भी कि राहुल ने पार्टी को गांधी परिवार के नियंत्रण में रखने के लिए यह यात्रा निकाली है।

मई 2022 में उदयपुर में तीन दिवसीय "चिंतन शिविर" में भारत जोड़ो यात्रा निकालने की घोषणा की गयी थी।शिविर को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा था कि कांग्रेस को यह स्वीकार करने की जरूरत है कि उसका लोगों से नाता टूट गया है।उन्हें यह एहसास हो गया था कि आरएसएस और भाजपा दक्षिणपंथी मंशा और विचारधारा से जुड़ा एक वैसा आख्यान स्थापित कर रहे हैं जो धर्मनिरपेक्ष मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थानों को पूरी तरह से खत्म कर देगा।लोकतांत्रिक लोकाचार की रक्षा और संरक्षण के लिए यह अनिवार्य था कि कांग्रेस चुनावी लाभ से परे देखते हुए भगवा घुसपैठ के मुकाबले एक नया आख्यान शुरू करे।

यात्रा का परिभाषित मिशन आरएसएस और भाजपा के आख्यानों का मुकाबला करना है जो हिंदुत्व की राजनीति पर आधारित हैं।यही कारण था कि यात्रा के दौरान राहुल ने उनकी बांटने वाली और नफरत की राजनीति पर जमकर हमला बोला तथा आम लोगों से यात्रा में शामिल होने का आह्वान किया।भयावह भगवा कथानक, जिसका उद्देश्य मूल रूप से मुसलमानों और हिंदुओं को एक दूसरे के विरुद्ध खड़ा कर आतंकवाद की दलील पर हिंदुओं का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करना है, से केवल चुनावी अखाड़े और मैदान में नहीं लड़ा जा सकता।इसे चकनाचूर करने के लिए आम लोगों के साथ उनका भावनात्मक जुड़ाव होना चाहिए।

वह जानते थे कि केवल कांग्रेस ही इस कार्य को कर सकती है क्योंकि अन्य राजनीतिक दलों का भाजपा और मोदी सरकार के प्रति अलग-अलग दृष्टिकोण है।अतिराष्ट्रवाद और हिंदुत्व की चादर में लिपटे आरएसएस और मोदी नफरत और सांप्रदायिकता की राजनीति को निचले स्तर तक पहुंचा चुके हैं।आरएसएस-बीजेपी कथानक का मुकाबला इस कुत्सित मानसिकता को दूर कर और विकल्प प्रदान कर ही किया जा सकता है तथाराहुल वास्तव में ऐसा कर भी रहे हैं।

राहुल की राजनीतिक और वैचारिक लाइन के संभावित खतरे से भाजपा घबरायी हुई है, तथा यात्रा पहला कदम है।उनकी सफलता का संकेत आम लोगों की प्रतिक्रिया से मिलती है, तथा विहिप के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय की भारत जोड़ो यात्रा निकालने के लिए राहुल गांधी की तारीफ उनमें से एक है। राय ने कहा कि यह "सराहना के योग्य" है कि एक युवा इस मौसम में देश भर में पैदल चल रहा है और इसे समझने की कोशिश कर रहा है।राहुल को अयोध्या में राम जन्मभूमि के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास से भी आशीर्वाद मिला, जिन्होंने एक पत्र के माध्यम से उनकी सफलता की कामना की थी।

उनकी यात्रा के केंद्रीय संदेश ने लोगों की कल्पना में घर कर लिया है।उत्तर भारतीय राज्यों में हजारों ग्रामीणों की सहज भागीदारी यात्रा को वास्तव में महत्वपूर्ण बनाती है।भाजपा के थिंक टैंक को यकीन था कि यात्रा हरियाणा और पंजाब में फ्लॉप शो साबित होगी, लेकिन इन दोनों राज्यों में प्रतिक्रिया कल्पना से परे थी।राहुल की सूझबूझ का फायदा हुआ।उन्होंने उन मुद्दों का उपयोग किया जो गरीबों, वंचितों और मध्यम वर्ग के जीवन को बर्बाद कर रहे हैं।उन्होंने बेरोजगारी, गिरती अर्थव्यवस्था, असामान्य मूल्य वृद्धि, क्रय शक्ति में गिरावट और बढ़ती असमानता का इस्तेमाल किया।अपने राजनीतिक संदेश देने के लिए यात्रा का उपयोग करने के बजाय उन्होंने इसे मोदी की राजनीति और प्राथमिकताओं के खतरों के बारे में लोगों को जागरूक करने के लिए सबसे प्रभावी गैर-राजनीतिक मंच के रूप में इस्तेमाल किया।

हालांकि उनकी पार्टी के नेताओं ने अक्सर कहा कि यात्रा कांग्रेस को पुनर्जीवित करेगी और कायाकल्प करेगी, राहुल ने उनकी टिप्पणियों को प्रतिध्वनित नहीं किया।उन्होंने हमेशा व्यवस्था को शुद्ध करने और नफरत की राजनीति से लड़ने पर जोर दिया।फिर भी इसने कांग्रेस के लिए पुनर्जीवनदातृ औषधि का काम किया।पार्टी के कार्यकर्ता जो अपने दड़बों में जा घुसे थे, बाहर सड़कों पर आये और राहुल के साथ हो लिये।आम लोगों के लिए उनका संदेश आशा की किरण बनकर आया।बड़ी संख्या में आम लोगों, मजदूरों, किसानों, दिहाड़ी मजदूरों की भागीदारी इसका प्रमाण है।

धर्मनिरपेक्ष और उदारवादी ताकतें राहुल के कदम पर अभी भी भ्रम पाल रही हैं, परन्तु संघ ने उनके मिशन को समझने और उनके प्रयासों को बेअसर करने के लिए देश भर में बैठकों की एक श्रृंखला आयोजित करने के लिए अपने फ्रंट संगठनों को तैनात किया है। वे यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं कि राहुल की रणनीति कहीं संघ की कहानी खत्म न कर दे।संघ को डर है कि लोकसभा में बहुमत होने के बावजूद भाजपा ने अपने ही कथानक पर ही पकड़ खो दी है।

राहुल पर संघ कुनबे ने ताने कसे, यहां तक कि इस कड़ाके की सर्दी में भी उनके द्वारा टी शर्ट पहनने पर। लेकिन इसका भी उल्टा असर हुआ। इससे गरीबों के साथ अपनी पहचान बनाने में राहुल का मिशन पूरा हुआ।राजनीतिक आख्यान में एक स्पष्ट बदलाव ने संघ-भाजपाको चिंतित कर दिया हैइसलिए वे किसी भी कीमत पर राहुल गांधी को एक परिपक्व नेता के रूप में न उभरने देने के लिए हर कोशिश कर रहे हैं।वे महसूस करते हैं कि अब उनका और उपहास नहीं किया जा सकता।

त्रिपुरा में अमित शाह के भाषण में यह चिंता प्रकट हुई।शाह ने राहुल पर तंज कसते हुए कहा कि 1 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर भक्तों के स्वागत के लिए तैयार होने की घोषणा को बाबा कान खोलकर ध्यान से सुन लें।शाह ने अपने बयान के जरिए यह बताने की कोशिश की कि 2024 में धर्म और हिंदुत्व प्रमुख चुनावी मुद्दे होने जा रहे हैं।

भारत जोड़ो यात्रा निस्संदेह आम लोगों की कल्पना में पैठ बनाने में सफल रही।यात्रा ने राहुल की छवि खराब करने के लिए उनके बारे में फैलाए गए "झूठ" को ध्वस्त कर दिया है।यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि रही है क्योंकि इसने उन्हें परिपक्व और दूरदर्शी नेता के रूप में पेश किया है।अब तक लोगों का मानना था कि विपक्ष का कोई नेता नहीं है जो मोदी का विरोध कर सके, परन्तु अब वैसा नेता कांग्रेस के पास राहुल के रूप में है, एक ऐसा परिवर्तन जो राकांपा अध्यक्ष शरद पवार के अवलोकन में देखा जा सकता है जिन्होंने कहा, "गांधी के प्रति लोगों का दृष्टिकोण बदल गया है।वह आने वाले भविष्य में विपक्षी दलों के बीच आम सहमति बनाने में मदद करेंगे।”

यात्रा के प्रमुख लाभों में से एक है एक नये राहुल गांधी का उभरना।नये वामपंथ की सैद्धांतिक अंतर्दृष्टि से सुसज्जित राहुल धीरे-धीरे संघ-भाजपा आख्यान को मिटाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। हरियाणा के पानीपत में उन्होंने एक अंतर्दृष्टि प्रदान की “मैंने राहुल गांधी को मार डाला है।वह आपके दिमाग में है।वह मेरे दिमाग में बिल्कुल नहीं है।वह चला गया। चलागया।आप जिस व्यक्ति को देख रहे हैं, वह राहुल गांधी नहीं हैं।आप उसे देख सकते हैं।आप इसे नहीं समझते... तो हिंदू शास्त्र पढ़ें।शिव-जी (भगवान शिव) के बारे में पढ़ें, आप समझ जाएंगे।चौंकिए मत।राहुल गांधी आपके मस्तिष्क में हैं, मेरे नहीं।वह भाजपा के सिर में है, मेरे नहीं।'' ऐसे वक्तव्य के व्यापक निहितार्थ हैं।

नया राहुल गांधी एक रूपक है जो संघ और भाजपा को परेशान कर रहा है। यह कुनबा अपनी बेहतरीन बुद्धि का इस्तेमाल करने के बावजूद राहुल में आए बदलावों को समझने में नाकाम है।इस मोड़ पर केवल चुनावी जरूरतों के लिए पुराने राहुल को राजनीतिक पटल पर लाने का कोई भी प्रयास न केवल विनाशकारी बल्कि अनुत्पादक साबित होगा।संघ के कथानक को खत्म करने में उनकी सफलता अंततः कांग्रेस को अपने पुराने सामाजिक गठबंधन को वापस पाने और अपने पैरों पर खड़े होने का गवाह बनेगी।भारत जोड़ो यात्रा निश्चित रूप से मिशन की परिणति नहीं है।यह तो एक नयी शुरुआत की शुरुआत करती है।(संवाद)