फिर भी मौलिक प्रश्न यह है कि क्या यात्रा कांग्रेस के लिए चुनावी सफलता ला सकती है। यह अलग बात है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने कहा है कि यात्रा का उद्देश्य सत्ता हासिल करना नहीं है, परन्तु इसमें भी कोई संदेह नहीं है कि जब तक ऐसा नहीं होता, सामाजिक सद्भाव का लक्ष्य हासिल करना मुश्किल होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि कांग्रेस देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी है, जिसका क्षेत्रों में पदचिह्न है- 2019 के आम चुनावों में उसने 403 लोकसभा सीटों में चुनाव लड़ा तथा उसने 52 सीटें जीतीं, 196 में दूसरे स्थान पर रही और कुल वोटों का 19.5 प्रतिशत प्राप्त किया।

कांग्रेस 12 राज्यों-पंजाब, असम, कर्नाटक, केरल, हरियाणा, महाराष्ट्र, झारखंड, गोवा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में मुख्य विपक्षी पार्टी है।यह सात राज्यों-अरुणाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तराखंड में भाजपा के साथ सीधे मुकाबले में है, जहां 543 लोकसभा सीटों में से 102 सीटें हैं।क्षेत्रीय दलों की राष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण उपस्थिति या ताकत नहीं है।कायाकल्प और रूपांतरित कांग्रेस के बिना, विपक्ष 2024 के चुनावों में इन राज्यों में भाजपा की किस्मत में सेंध लगाने की उम्मीद नहीं कर सकता है।

आम आदमी पार्टी (आप) ने 2019 में लोकसभा में सिर्फ एक सीट जीती थी और अधिकांश निर्वाचन क्षेत्रों में तीसरे स्थान पर रही थी।टीएमसी ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 34 की तुलना में 2019 में 22 सीटें जीतीं, टीआरएस ने 2014 में 11 की तुलना में 2019 में 17 में से नौ सीटें जीतीं।विपक्षकांग्रेस को समर्थन न देकर या उसके साथ गठबंधन न कर भाजपा विरोधी वोटों को ही बांट देंगे।हालांकि, अभी इसमें संदेह है कि कांग्रेस 2024 में भाजपा के खिलाफ विपक्षी एकता का आधार बनने में सक्षम है। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद से लागातार चुनावी हार से गुजरती कांग्रेस के समक्ष इस समय तीन प्रमुख समस्याएं हैः पहला, सत्ता का केंद्रीकरण, और शीर्ष पर निर्णय लेना: दूसरा, संगठनात्मक कमजोरी;और तीसरा, एकता की कमी।

पार्टी अध्यक्ष के रूप में एक गैर-गांधी के निर्वाचन के बावजूद, आलाकमान की संस्कृति और गांधी परिवार की उपस्थिति और दबदबा अभी भी जारी है - जिसके परिणामस्वरूप शीर्ष पर निर्णय लिए जाते हैं और स्थानीय नेताओं की अनदेखी की जाती है।कांग्रेस कार्यकारिणी समिति के चुनाव लगभग 25 वर्षों से नहीं हुए हैं, आखिरी चुनाव 1998 में हुआ था। संगठनात्मक रूप से, पार्टी के मजबूत संघीय ढांचे को इंदिरा गांधी ने 1970 में सत्ता के केंद्रीकरण और वैयक्तिकरण के माध्यम से नष्ट कर दिया था। उन्होंने निर्णय केएक पिरामिड संरचना का निर्माण किय।प्रतिनिधित्व के सिद्धांत के परित्याग के साथ, कांग्रेस समितियों और पार्टी कार्यालयों को चुनाव के बजाय नियुक्ति द्वारा भरा गया था।सत्ता के केंद्रीकरण के कारण जमीनी स्तर पर पार्टी का विघटन हुआ।

नेतृत्व की स्पष्ट रेखा के बिना, ऐसे गुट उभर आये हैं जिन्होंने पार्टी की आंतरिक एकता और सामंजस्य को नष्ट कर दिया है।स्वतंत्रता के तुरंत बाद की अवधि के दौरान, गुटीय समूहों ने आंतरिक लोकतंत्र सुनिश्चित करने के उपाय किये थे। वर्षों से, गुटबाजी ने पार्टी को कमजोर कर दिया है, जिससे सत्ता का नुकसान हुआ है। महज सत्ता में होने से मदद नहीं मिलती।पार्टी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री पद को लेकर प्रतिस्पर्धी समूहों के बीच विभाजित रहती है।वरिष्ठ नेताओं केसमूह जी-23, जिन्होंने चुनावी हार की एक श्रृंखला के बाद, संगठनात्मक सुधारों और एक विशेष और सामूहिक निर्णय लेने की प्रणाली की मांग की, ने पार्टी को और विभाजित कर दिया है।

भारत जोड़ो यात्रा पार्टी में सुधार नहीं कर सकती।फिर भी ऐसा करने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि यात्रा में 21 समान विचारधारा वाले राजनीतिक दलों को श्रीनगर में सामूहिक कार्यक्रम में शामिल होने के लिए आमंत्रित करने से स्पष्ट राजनीतिक जोर है।ऐसे विशाल समापन समारोह के आयोजन के साथ, कांग्रेस को यात्रा समापन रैली में विपक्ष की ताकत दिखाने की उम्मीद है।आमंत्रित राजनीतिक दलों में तृणमूल कांग्रेस, जनता दल (यूनाइटेड), तेलुगु देशम पार्टी, माकपा, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी और बसपा शामिल हैं। आम आदमी पार्टी को आमंत्रित नहीं किया गया है।जो भी हो, कांग्रेस के साथ विपक्ष की एकता की संभावनाओं को अभी अनेक बाधाओं को पार करना है।(संवाद)