इस झटके की तीव्रता इस बात से समझी जा सकती है कि रिपोर्ट आने के 24 घंटे के अन्दर गौतम अडानी तीसरे सबसे अमीर कारोबारी की पोजीशन से फिसलकर सातवें स्थान पर आ गये।लेकिन यह दुख की बात है कि उनके फिसलने से बैंकिंग क्षेत्र और अडानी कंपनियों में अपना पैसा लगाने वाले करोड़ों निवेशकों को भी जोरदार आर्थिक झटका लगा तथा उन्होंने 11 लाख करोड़ रुपये गंवाया।यह स्वतंत्र भारत में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला है।
ध्यानाकर्षण की विशेष बात यह कि यह नरेंद्र मोदी के शासन के दौरान हुआ है, जिन्होंने प्रधान मंत्री के पद पर रहते हुए भ्रष्टाचार और छल को खत्म करने का वायदा किया था।धोखाधड़ी की प्रकृतिस्पष्ट करती है कि राजनीतिक संरक्षण के बिना यह नहीं किया जा सकता था।हर्षद मेहता प्रकरण को लोग अभी तक भूल नहीं पाये हैं, और अबहिंडनबर्ग द्वारा उजागर की गयी धोखाधड़ी इसे भारत में किया गया सबसे खराब प्रकार का स्टॉक हेरफेर घोटाला बनाती है।इसने बैंकों और स्वयं बैंकिंग प्रणाली को कमजोर कर दिया है।बैंक एक आम व्यक्ति के वित्तीय ट्रस्ट के संरक्षक नहीं रह गये हैं।
अडानी ने भारत के विकास में मदद करने की दलील पर धोखाधड़ी का रास्ता अपनाना पसंद किया।अडानी की चालाकी का सबसे बुरा शिकार एलआईसी हुआ है जिसने अडानी की 5 कंपनियों में लगभग 77000 करोड़ का निवेश किया था।एलआईसी सूत्रों की मानें तो निगम को करीब 18 हजार करोड़ का नुकसान हुआ है।पिछले चालीस वर्षों के दौरान हुए मेहता और अन्य बड़े स्टॉक-मार्केट घोटालों की तरह, अडानी ने भी बैंकिंग प्रणाली की कमजोरियों का फायदा उठाया।
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से निकटता के कारण अडानी की सफलता को कोई नकार नहीं सकता। यह एक खुला रहस्य है कि मोदी ने अडानी को बढ़ावा दिया है।अडानी का जबरदस्त उदय तब शुरू हुआ जब उन्होंने 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी को समर्थन की पेशकश की।उनके पास सरकारी एहसानों और संरक्षण की लंबी सूची है।जाहिर तौर पर उनके लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से कर्ज लेना कोई बड़ी समस्या नहीं थी।सीएम के रूप में मोदी के कार्यकाल के दौरान, समूह का राजस्व 2002 में 765 मिलियन डॉलर से बढ़कर मार्च 2014 में 8.8 बिलियन डॉलर हो गया था। यह अभूतपूर्व वृद्धि हुई है क्योंकि अडानी ने 1988 में अहमदाबाद में अपना व्यवसाय स्थापित किया था।
अडानी अपने बंदरगाह और विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड) परियोजनाओं के लिए मोदी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार से कौड़ी के मोल भूमि प्राप्त करने में सक्षम था –मात्र प्रति वर्ग मीटर 1 रुपये से 32 रुपये के बीच, जो अन्य कंपनियों द्वारा जमीन के लिए भुगतान किए जाने की तुलना में बहुत कम था।उन्होंने राज्य में इकाइयां स्थापित कीं।
बहरहाल, सीएलएसए (क्रेडिट लियोनिस सिक्योरिटीज एशिया) ने भारतीयों को आश्वासन दिया है कि भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति अडानी के वित्तीय संचालन से प्रभावित नहीं होगी।इसका अनुमान है कि अडानी समूह के कुल ऋण में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक ऋण का हिस्सा 40 प्रतिशत है।समूह की शीर्ष 5 कंपनियों में से केवल 3 के पास बैंक ऋण का अपेक्षाकृत उच्च हिस्सा है।लेकिन दो मुख्य प्रश्नों का उत्तर दिया जाना बाकी है;छोटे जमाकर्ताओं का क्या होगा और क्या उनका पैसा सुरक्षित है?दूसरा यह कि अडानी कंपनियों के शेयरों में छोटे निवेशकों के वित्तीय हिस्से की रक्षा कैसे और कौन करेगा?
सीएलएसए का अनुमान है कि 2021-2022 कुल 2 लाख करोड़ रुपयेके बैंक ऋण में अडानी का ऋण 70,000-80,000 करोड़ रुपये है।तथ्य यह है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने अडानी समूह को निजी बैंकों की तुलना में दोगुना ऋण दिया।बैंकों के इस गैरजिम्मेदाराना कृत्य ने एलआईसी और एसबीआई में अपनी बचत डालने वाले करोड़ों भारतीयों के वित्तीय जोखिम को उजागर कर दिया है।
हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने बतायाअडानी समूह ने हेरफेर के माध्यम से अपने स्टॉक के मूल्य को कृत्रिम रूप से बढ़ा दियाऔर फिर उन शेयरों को गिरवी रखकर धन जुटाया है, इसलिए उन शेयरों में गिरावट की स्थिति में एसबीआई और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को भारी नुकसान का खतरा है।हिंडनबर्ग का चीन से सीधा संबंध भी है, इसलिए यह स्पष्ट करने की उसकी भी नैतिक जिम्मेदारी है कि उसनेअडानी की साजिश का पर्दाफाश क्यों नहीं किया।क्या इस गंदे खेल का पर्दाफाश नहीं करना किसी राजनीतिक बाध्यता के तहत था?
स्पष्ट रूप से भारत के लोगों के लिए इस स्पष्टीकरण को स्वीकार करना कठिन है कि बैंकिंग प्रणाली सुरक्षित है।पांच महीनों में यह दूसरी बार है जब किसी विदेशी संस्था ने अडानी समूह की आलोचनात्मक रिपोर्ट जारी की है जो तीव्र गति से विस्तार कर रहा है और जिसके मालिक गौतम अडानी को दुनिया के शीर्ष तीन अरबपतियों में से एक बना दिया था।पिछले सितंबर में, क्रेडिट रेटिंग एजेंसी फिच की एक शाखा, क्रेडिट साइट्स ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समूह मुनाफाखोरी में आकंठ डूबा है और डिफ़ॉल्ट की संभावना के कारण कर्ज के जाल में फंस सकता है।
स्वाभाविक रूप से अडानी का ट्रैक रिकॉर्ड हमेशा सवालों के घेरे में रहा है।इस तरह की धोखाधड़ी सीएलएसए जैसे संगठनों की आंखों से कैसे ओझल हो सकती है।भारत के केंद्रीय बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक के अधिकारियों को भी अडानी के कुकर्मों के बारे में पता था लेकिन इसने एक रहस्यमयी चुप्पी बनाये रखी।सेबी और अन्य संगठनों, यहां तक कि गृह मंत्रालय को भी सतर्क करना चाहिए था, विशेषकर तब जबकि भारत ने पहले ही कुछ व्यापारियों को मोदी सरकार के तहत बहुत पैसा कमाते और देश से भागते देखा था।स्टॉक एक्सचेंज के जानकारों के मुताबिक छोटे निवेशकों की गाढ़ी कमाई के करीब 2 लाख करोड़ रुपये डूब गये हैं।क्या शीर्ष बैंकिंग अधिकारियों को इस वित्तीय अपराध में मदद करने के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा?
हिंडनबर्ग ने गौतम अडानी पर 'बेशर्म' स्टॉक मूल्य हेरफेर और सीमा पार वित्तीय और लेखांकन धोखाधड़ी पाय जिसमें अपतटीय टैक्स हेवनका दुरुपयोग भी शामिल है। इसने अडानी को अपने निष्कर्षों को अदालत में गलत साबित करने की चुनौती भी दी है।इसने अडानी को अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए 88 सवाल मुहैया कराये।लेकिन अडानी इसकी चुनौती स्वीकार करने का साहस नहीं कर सके।यह उनके घोटाले में शामिल होने का पर्याप्त सबूत है।
हिंडनबर्ग ने कॉरपोरेट गवर्नेंस पर कई लाल झंडे भी लगाये।इसने कहा कि दो साल की जांच में समूह की सूचीबद्ध और निजी संस्थाओं के बीच संबंधित पार्टी के लेनदेन में गंभीर अनियमितताएं और एक कुख्यात स्टॉक ब्रोकर से जुड़े स्टॉक मूल्य हेरफेर का खुलासा हुआ था, जिसे भारतीय बाजारों से प्रतिबंधित कर दिया गया था।"शेयर बाजार में हेराफेरी के सबूतों पर आश्चर्य नहीं होना चाहिए।(मार्केट वॉचडॉग) सेबी ने अडानी एंटरप्राइजेज के स्टॉक को पंप करने के लिए अडानी प्रमोटर्स सहित 70 से अधिक संस्थाओं और व्यक्तियों पर वर्षों से जांच और मुकदमा चलाया है, ”हिंडनबर्ग ने कहा।
हालांकि अडानी ने जोरदार तरीके से इनकार किया परन्तु दिन के अंत में उसके शेयरों की कीमत में 18.5 प्रतिशत की गिरावट हुई।अडानी समूह द्वारा हाल ही में अधिग्रहित तीन कंपनियां- अंबुजा सीमेंट, एसीसी और एनडीटीवी भी सूख गयीं।स्थिति से उबारने के प्रयास के रूप में अडानी समूह ने "मिथ्स ऑफ़ शॉर्ट सेलर" शीर्षक से 18-पृष्ठ की प्रस्तुति भी जारी की, जिसमें दो प्रमुख दावे किये गये: पहला, यह कहा गया किनौ सार्वजनिक सूचीबद्ध संस्थाओं में से आठ का ऑडिट बिग सिक्स ऑडिटरों में से एक द्वारा किया गया था, जिसमें अर्नस्ट एंड यंग और वाल्टर चांडियोक एंड कंपनी शामिल हैं। असूचीबद्ध मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड (एमआईएएल) का ग्रांट थॉर्नटन द्वारा ऑडिट किया जाता है।
लेकिन अहम बात यह है कि अडानी ने हिंडनबर्ग के इस आरोप का खंडन नहीं किया कि अडानी एंटरप्राइजेज के वैधानिक ऑडिटर शाह धनधारिया थे।पिछले साल फिच ग्रुप के स्वामित्व वाली एक निश्चित आय वाली रिसर्च फर्म क्रेडिटसाइट्स ने अपनी रिपोर्ट में समूह को "अत्यधिक लीवरेज्ड" कहा था और सुझाव दिया था कि यह "अडानी के विशाल व्यापारिक साम्राज्य को उधेड़ कर सकता है"।समूह स्तर पर एक उच्च ऋण के अलावा, अमेरिकी अनुसंधान फर्म ने इस बात पर प्रकाश डाला कि समूह की कई फर्में मुफ्त नकदी प्रवाह भी उत्पन्न नहीं कर रही हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है।
अडानी प्रकरण पर संसदीय जांच होनी चाहिए।(संवाद)
अडानी समूह की कंपनियों को मोदी सरकार के संरक्षण का मामला
स्टॉक में हेराफेरी की जांच के लिए गठित हो संसदीय समिति
अरुण श्रीवास्तव - 2023-01-31 12:18
एक झटके में दुनिया के तीसरे सबसे अमीर गौतम अडानी का साम्राज्य, जिसे उन्होंने बेईमानी और क्रोनी कैपिटल की इमारत पर खड़ा किया था, नीचे गिर गया।यह हमला अमेरिका स्थित हिंडनबर्ग रिसर्च से आया है, जिसने अडानी पर "दशकों के दौरान एक बेशर्म स्टॉक हेरफेर और लेखा धोखाधड़ी योजना में लिप्त" होने का आरोप लगाया था।