बेशक, जिन लोगों को काम पर लगया गया है, उनके जीवनवृत्त (बायोडाटा) में चाटुकारिता एक प्रमुख योग्यता होनी चाहिए।प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के अनेक शत्रुओं को सामने लाया गया है, जिनमें विदेशी, ‘अभारतीय’ भारतीय, और गैर-भारतीय शामिल हैं। 'अभारतीय' भारतीय वे हैं जो भारतीय तो हैं लेकिन भारत के लिए दुर्भावना रखते हैं, विशेष रूप से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के प्रति।

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को "सूचनाओं के ढेर का" का शिकार बताया जा रहा है, और ऐसी मोदी विरोधी सूचनाओं को कुछ और नहीं बल्कि आक्रमण का ही एक और रूप बताया जा रहा है।कहा जा रहा है कि यह स्थिति उन विरोधी सूचनाओं के तत्काल सफाये की मांग करती है क्योंकि बचाव करने वाले कह रहे हैं कि भारत की विकास गाथा, जिसके प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य वास्तुकार हैं, पर हमले हो रहे हैं।

असली आख्यान,जिनके बारे में कहा जा रहा है कि उनमें“क्षेपक”जोड़े गये हैं, नरेंद्र मोदी को चारों ओर से घेर रहे हैं जिसके कारण मोदी सरकार में हर किसी की रातों की नींद हराम हो रही है।भारत की विकास गाथा को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी से जोड़ना 'मोदी बचाओ' अभियान का सार है।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और विदेश मंत्री जयशंकर सबसे आगे हैं।लोकतंत्र और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को जो कथित रूप नीचे गिराने में लगे हैं उन्हें नीचे गिराने में ये दोनों अत्यधिक समय और ऊर्जा खर्च कर रहे हैं।

डीके बरूआ ने 'इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा' का नारा दिया था।मोदी के किसी भी चापलूस के पास वैसी कल्पना और कौशल नहीं है, जबकिमोदी ही भारत और भारत ही मोदी जैसी अभिव्यक्ति को मिलाने के लिए रॉकेट साइंस की जरूरत नहीं है।इतना होने के बादजूद मोदी इससे पहले कभी भी इतने उपर गले तक दलदल में नहीं फंसे थे।

भारत सरकार मोदी विरोधी सूचना डंप को बेअसर करने के लिए अपना सब कुछ लगा रही है।मोदी के दुश्मन अब आश्चर्यजनक लाभ पाने की स्थिति में नहीं हैं।मोदी के दुश्मनों से लड़ने के लिए पूरी सरकारी मशीनरी लगा दी गयी है।

चर्चा हो रही है कि भारत के और भारत के लोकतंत्र के दुश्मन वही हैं जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बदनाम करते रहे हैं।यह 'इंदिरा इज इंडिया...' से अलग है, लेकिन अनिवार्य रूप से एक ही है, 'मोदी इज इंडिया...'।

अडानी के बारे में बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडियाः द मोदी द क्वेश्चन' हो, या 'हिंडनबर्ग रिसर्च के रहस्योद्घाटन', जिसने लोगों को अडानी के शेयरों को जल्दबाजी में बेचवा दिया, सेभारत की लोकतांत्रिक साख और मोदी की प्रतिष्ठा दोनों को ठेस पहुंची, और जो आपस में जुड़ी हुई हैं।दोनों की रक्षा करनी होगी।

कोई बलि का मेमना नहीं हो सकता है और इसलिए वैगनों का चक्कर लगाना अनिवार्य हो जाता है।मोदी की वास्तव में बदनामी की गयी है, और ऐसे कारणों से जिन्हें साबित करना मुश्किल है कि गलत हैं या तथ्यों को तोड़-मरोड़कर सामने लाया गया है।सवाल यह है कि क्या किसी व्यक्ति को, जो इतना ऊँचा है, एक अपराध के लिए केवल इसलिए छूट दी जानी चाहिए क्योंकि वह स्वयं की रक्षा के बारे में वैसे ही बोल एकत्रित कर लिए हैं जैसे कहा जाये कि "लोकतंत्र की रक्षा की जानी चाहिए"?

शायद लोकतंत्र बच जायेगा, और आने वाले समय में लड़ने के लिए जीवित रहेगा, अगर लोकतंत्र के लबादे का इस्तेमाल कर अधिक समय तक सत्ता में बने रहने की कोशिश करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कार्रवाई की जाती है। क्या किसी को यह आभास है कि यह लोकतंत्र नरेंद्र मोदी के बाद नहीं बचेगा?क्या वह भारत की विकास गाथा के लिए अपरिहार्य हैं?

उनके दिलों की गहराई में और जिनकी धमनियों में रक्त बहता है, वो युवा जल्द ही यह पूछना शुरू कर देंगे कि केवल एक व्यक्ति को उसकी अपनी ही करनी से उत्पन्न मुसीबतों से बचने में मदद करने के लिए एक पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को क्यों तैयार किया गया है?वैसे व्यक्ति को क्यों कार्यवाही का सामना नहीं करना चाहिए चाहे वह कार्रवाई ही क्यों न हो?

लोकतंत्र के लबादे में छिपा खलनायक आखिर कब तक छिपा रहेगा?यह कहना कि हिंडनबर्ग ने गंदा खेल खेला, और फिर अन्य द्वारा इसी बात को दोहराते रहने से कैसे यह आम स्वीकृति में बदल जायेगी?वहां, सूचनाओं के ढेर में, पता लगाने के लिए सत्य के तत्व तो होने ही चाहिए, है ना?

क्या सरकार में किसी ने भी हिंडनबर्ग या जॉर्ज सोरोस द्वारा लगाये गये किसी भी आरोप का खंडन किया है?हिंडनबर्ग को अनैतिक और अविश्वसनीय घोषित किया गया है क्योंकि 'वह' शॉर्ट-सेल करता है;जबकि सोरोस को खारिज कर दिया गया है क्योंकि वह न केवल "बूढ़ा, अमीर और स्वच्छंद" है, बल्कि "खतरनाक" भी है।

क्या वह एक निरर्थक व्यक्ति हैं?वह किसके लिए खतरनाक हैं और क्यों?और वैसे भी यदि कोई व्यक्ति "खतरनाक" है तो इसका मतलब यह नहीं कि किसी अन्य दोषी व्यक्ति को छोड़ दिया जाना चाहिए। आखिर ऐसी स्थिति में तर्क और सत्य की खोज का क्या होगा?

जैसी कि अब तक की कहानी है, भारत की सारी ताकत और भारत के सभी संसाधनों को एक ऐसे व्यक्ति की सुरक्षा के लिए ब्लॉक कर दिया गया है, जिस पर अपने अधिकार का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया है।सही कहा जाये तो यह उनके निष्पक्ष नाम पर दाग है और उन्हें अपना नाम साफ करने के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए और इसे मतदाताओं की कल्पना पर नहीं छोड़ना चाहिए।लोकतंत्र को जो चोट पहुंचायी गयी है उसके लिए शायद यही रामबाण होगा।(संवाद)