पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में पहले ही चुनाव हो चुके हैं।सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा जिस पर कांग्रेस के प्रतिनिधियों और शीर्ष नेतृत्व ने जोर दिया है, वह उन राज्यों में पार्टी संगठन को मजबूत करने की अनिवार्यता है जहां 2023 में दूसरे और तीसरे चरण में विधानसभा चुनाव होने हैं।शेष राज्य जहां चुनाव होने हैं वे हैं - कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम।इन छह राज्यों में से दो में राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सत्ताधारी पार्टी है;जबकि दो अन्य, यानी कर्नाटक और मध्य प्रदेश में, कांग्रेस ने 2018 के चुनावों के बाद सरकारें बनायीं, लेकिन भाजपा ने जल्द ही दलबदल का आयोजन करके चुनी हुई सरकारों पर कब्जा कर लिया।यदि भाजपा के बाहुबल का मुकाबला करने के लिए आवश्यक तैयारी की जाती है तो इस वर्ष कांग्रेस इन दोनों महत्वपूर्ण राज्यों को वापस पाने की क्षमता रखती है।
तेलंगाना और मिजोरम में कांग्रेस को अपने दम पर लड़ना है और उसका काम केवल विधानसभा में अपनी ताकत बढ़ाना है। 2023 की शुरुआत में राजनीतिक जमीनी हकीकत यह है कि छह राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को अकेले उतरना है।कर्नाटक में जद (एस) के साथ बातचीत हो सकती है, और अगर दोनों पार्टियों के बीच कुछ समझौता हो जाता है, तो यह राज्य में भाजपा के लिए एक बड़ी हार सुनिश्चित करेगा।पार्टी के भीतर आपसी कलह और भाजपा सरकार के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कारण चुनावी रूप से बैकफुट पर चली गयी भगवा के कारण स्थिति कांग्रेस के लिए अनुकूल दिख रहा है।यहां तक कि अगर चुनाव से पहले कांग्रेस और जद (एस) के बीच एक समझ संभव नहीं हुई तब त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में चुनाव के बाद गठबंधन बनाने के लिए कदम उठाये जा सकते हैं।
अभी हालांकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस पार्टी के लिए अग्रणी भूमिका के साथ पूर्ण विपक्षी गठबंधन की बात की है, यह व्यावहारिक रूप से संभव नहीं हो सकता है, और इसका प्रयास भी नहीं किया जाना चाहिए।विपक्षी खेमे में कांग्रेस के पक्के समर्थक हैं और उनके साथ कांग्रेस लोकसभा चुनाव पूर्व गठबंधन बना सकती है।ऐसा लगता है कि कांग्रेस नेतृत्व के पास सोलह ऐसी पार्टियों की सूची है जो राहुल गांधी के नेतृत्व से सहमत हैं।यह मोर्चायदि यह आकार लेता है तो अच्छा है;लेकिन इसका अन्य गैर-कांग्रेसी, गैर-भाजपायी दलों जैसे टीएमसी, बीआरएस और आप के साथ पूरक संबंध होना चाहिए, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाले मोर्चे में शामिल नहीं होंगे।
दरअसल, तेलंगाना को छोड़कर 2024 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस और इनमें से किसी भी दल के बीच कोई मुकाबला नहीं होगा। कांग्रेस की रणनीति वैकल्पिक कार्यक्रम के आधार पर इन दलों के साथ चुनाव के बाद गठबंधन करने की होनी चाहिए, जैसा कि 2004 के लोकसभा चुनावों के बाद हुआ था।वामपंथी दल - सीपीआई, सीपीआई (एम), सीपीआई (एमएल) लिबरेशन, फॉरवर्ड ब्लॉक और आरएसपी - एक अलग श्रेणी से संबंधित हैं।आरएसएस और संघ परिवार से लड़ने के लिए वामपंथी राहुल गांधी के आह्वान का लगातार समर्थन करते रहे हैं।2019 के चुनावों के बाद वामपंथियों के पास अब लोकसभा में कुल पांच सीटें हैं- सीपीआई (एम) के पास तीन और सीपीआई के पास दो।इन पांच सीटों में से चार सीटें, सीपीआई और सीपीआई (एम) द्वारा दो-दो, डीएमके के नेतृत्व वाले गठबंधन के हिस्से के रूप में अकेले तमिलनाडु से हैं।केरल से लेफ्ट के पास अपने बल पर सिर्फ एक सीट है।2024 में संभावनाएं केरल में वामपंथी सीटों और बिहार में सीपीआई और सीपीआई (एमएल) लिबरेशन को एक या दो सीटों में कुछ सुधार का संकेत देती हैं।
2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों और उसके बाद के चार वर्षों के राजनीतिक घटनाक्रमों के एक गहन विश्लेषण से पता चलता है कि भाजपा हिंदी क्षेत्र में कम से कम 100 सीटेंखो सकती है। जिसके कारण लोकसभा में भाजपा की वर्तमान संख्या 303 से घटकर लगभग 200 सीटों पर आ जायेगी।अगर ऐसा होता है, तो इसका मतलब है कि केंद्र में एक वैकल्पिक गैर-भाजपा सरकार की गुंजाइश होगी।उस सरकार का नेतृत्व कौन करेगा यह 2024 के चुनावों के बाद प्रत्येक गैर-भाजपा पार्टी की संबंधित ताकत पर निर्भर करेगा।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा के लिए 100 सीटों का जिक्र किया, लेकिन यह बहुत आशावादी आंकड़ा है।कुमार की भविष्यवाणियां विपक्षी दलों के एक बहुत ही आरामदायक चुनाव-पूर्व गठबंधन के आधार पर हैं, जो असहज जमीनी हकीकत को ध्यान में रखते हुए शायद फलीभूत न हो।चुनाव पूर्व पूर्ण विपक्षी गठबंधन बनाने का कोई भी लगातार प्रयास 2024 के चुनावों में नरेंद्र मोदी सरकार को गिराने की संभावनाओं को ही खतरे में डालेगा।
ऐसी स्थिति में गैर-भाजपा विपक्ष कोकांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन के व्यावहारिक विकल्प के साथ सामंजस्य स्थापित करना चाहिए। टीएमसी, बीआरएस और आप जैसे भाजपा विरोधी दलों के दूसरे समूह, जो इस कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन का हिस्सा नहीं हो सकते हैं, त्रिशंकु लोकसभा की स्थिति में चुनाव के बाद की व्यवस्था के लिए उपलब्ध होगा।फिर, तीसरा समूह है, जिसमें आंध्र प्रदेश में वाईएसआरसीपी और ओडिशा में बीजेडी शामिल हैं।ये दोनों पार्टियां अब गैर-भाजपा विपक्ष से दूर रह रही हैं, हालांकि दोनों पार्टियां आने वाले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में अपने गृह क्षेत्र में भाजपा के हमलों को लेकर सतर्क हैं और वे जमीनी स्थिति के आधार पर 2024 के बाद की अपनी चुनावी रणनीति तय करेंगे।
पूर्वोत्तर में क्षेत्रीय दलों का भी यही हाल है।इन दलों की प्रवृत्ति केंद्र में शासन करने वाली राष्ट्रीय पार्टी के साथ गठबंधन करने की होती है।अभी, अधिकांश क्षेत्रीय दल भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए)के सदस्य हैं, और वे अपने-अपने राज्यों में सत्तारूढ़ संयोजनों में भागीदार बनने में भाजपा की मदद कर रहे हैं।केंद्र में भाजपा के अल्पसंख्यक दल बनने और कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के सत्ताधारी दल बनने के बाद स्थिति बदल जायेगी।
संक्षेप में, लोकसभा चुनाव से पहले की चुनावी स्थितिअस्थिर है, परन्तु कांग्रेस के रायपुर पूर्ण सत्र से मिले संकेत सौभाग्य से सकारात्मक हैं।कांग्रेस महासचिव के सी वेणुगोपाल ने कथित तौर पर एक मीडियाकर्मी से कहा कि अगर कांग्रेस को 2024 के चुनावों में लगभग 150 सीटें मिलती हैं, तो उसे स्वचालित रूप से विपक्ष का नेतृत्व मिल जायेगा।यही सही तरीका है।कांग्रेस को आने वाले विधानसभा चुनावों में उत्कृष्ट प्रदर्शन करना है।यदि कांग्रेस कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने में सक्षम होती है, तो ऐसी अनुकूल गति पैदा होगी कि अड़ियल टीएमसी भी हाँ कहने के लिए मजबूर हो जायेगी।(संवाद)
रायपुर अधिवेशन में कांग्रेस ने 2024 के लिए अपनायी एक व्यावहारिक रणनीति
2023 के प्रमुख विधानसभा चुनाव जीतकर ही करेगी विपक्षी नेतृत्व का दावा
नित्य चक्रवर्ती - 2023-03-01 16:12
पिछले सप्ताह रायपुर में तीन दिवसीय कांग्रेस अधिवेशन में अपनाया गया राजनीतिक संकल्प पार्टी नेतृत्व की रणनीतिगत व्यावहारिकता को रेखांकित करता है।चाहे विपक्षी दलों के साथ गठबंधन की रणनीति हो या सामाजिक न्याय का एजंडा, नेतृत्व ने 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों में भाजपा से निपटने की समझ और दृष्टि दोनों दिखायी है। संकल्प ने प्रमुख मुद्दों से निपटने मेंपर्याप्त लचीलापन दिखाया है।ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कांग्रेस 2023 के छह विधानसभा चुनावों में से कम से कम चार में भाजपा को हराकर अपनी चुनावी ताकत साबित करने के बाद ही पूरे भाजपा विरोधी विपक्ष के नेतृत्व के लिए अपना दावा पेश करेगी।